काश, वक्त ठहर जाता
कायनात
काजी
(मध्य प्रदेश के भोजपुर
स्थित बेतवा नदी से लौट कर)
नदी के कलरव के बीच एक शांति थी
खुले आसमान के बीच, पक्षियों के कलरव के बीच
एक अजीब सी शांति...
ऐसा लग रहा था मानों शोर थक कर सो गया हो..
रात के सन्नाटे की तरह
खामोश...
पत्थरों पर बैठा एक आदमी नदी में काटा डाले
तन्मय होकर मछली के फंसने का इंतजार कर रहा था
नदी के तेज बहाव ने खुरदरे पत्थरों को भी
चिकना कर दिया था
हम वहीं पत्थरों पर बैठ गए...
पानी पत्थरों से टकराता हुआ बह रहा था..
अविरल... शांत... निश्छल...
सूरज सिर पर था
हम जहां बैठे थे, वहां पेड़ो की छाया पड़
रही थी.
मैने अपने जूते उतारे, पैंट के पांचे उपर
चढाए..
और पानी में पैर डाल कर बैठ गई...
निगाहें आसमान पर टिका दी...
आमीन,
यह जगह कितनी सुंदर है...
बैठना कितना सुखद
मां की गोद सरीखा...
पानी की कल-कल किसी सुरमई गीत सरीखी
सुनाई दे रही थी
पानी का स्पर्श
तन से मन तक को भिगो रहा था...
मेरी तरह आप भी अगर मन के कानों से इसे
सुनोगो
तो ये पानी, ये हवाएं
ये प्रकृति का स्पर्श
सब गीत गाते मिलेगे...
हर चीज में लय है..
सुर है.. ताल है.. रिद्म है...
जरूरत है बस इसे महसूस करने की...
जहां हम बैठे थे वह स्थान न चौडा था न संकरा
पानी की धार देखकर ऐसा लगा
जैसे बेतवा
किसी नव यौवना सी सकुचाती सी बह रही है..
मैने पानी की तस्वीरें ली
पानी का वेग बहुत सुंदर था..
सुंदरता इतनी कि कैमरा इसे कैद न कर पाए...
दुधिया पानी छोटे-छोटे पत्थरों से घुमड़ कर
बह रहा था...
शायद इसे ही अंग्रेजी में कहते हैं मिल्की
इफेक्ट...
सहसा मेरे शरीर में एक खुशनुमा सिहरन सी हुई
एक नया सा अनुभव हुआ
अरे यह क्या
मेरे पैरों से कोई छोटी सी मछली सरसराती हुई
निकल गई
स्पर्श... बिलकुल नया, अनजाना सा
विद्युत की तरह, तन को झनझना देने वाला
प्रीतम के पहले स्पर्श सा
मादक.. मोहक..
स्मृति में सदा जीवित रहने वाला..
ऊपर नीला आसमान
क्वार का साफ आसमान
यहां-वहां तैरते बादलों के आवारा टुकडे
अठखेंलिया करते हुए
लगता था ये वक्त यहीं ठहर जाए...
लेकिन यह तो दुनिया की रीति है
आए हैं तो जाना ही पड़ेगा...
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