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कुछ पंक्तियां इस ब्लॉग के बारे में :

प्रिय पाठक,
हिन्दी के प्रथम ट्रेवल फ़ोटोग्राफ़ी ब्लॉग पर आपका स्वागत है.….
ऐसा नहीं है कि हिन्दी में अच्छे ब्लॉग लिखने वालों की कमी है। हिन्दी में लोग एक से एक बेहतरीन ब्लॉग्स लिख रहे हैं। पर एक चीज़ की कमी अक्सर खलती है। जहां ब्लॉग पर अच्छा कन्टेन्ट है वहां एक अच्छी क्वालिटी की तस्वीर नहीं मिलती और जिन ब्लॉग्स पर अच्छी तस्वीरें होती हैं वहां कन्टेन्ट उतना अच्छा नहीं होता। मैं साहित्यकार के अलावा एक ट्रेवल राइटर और फोटोग्राफर हूँ। मैंने अपने इस ब्लॉग के ज़रिये इस दूरी को पाटने का प्रयास किया है। मेरा यह ब्लॉग हिन्दी का प्रथम ट्रेवल फ़ोटोग्राफ़ी ब्लॉग है। जहाँ आपको मिलेगी भारत के कुछ अनछुए पहलुओं, अनदेखे स्थानों की सविस्तार जानकारी और उन स्थानों से जुड़ी कुछ बेहतरीन तस्वीरें।
उम्मीद है, आप को मेरा यह प्रयास पसंद आएगा। आपकी प्रतिक्रियाओं की मुझे प्रतीक्षा रहेगी।
आपके कमेन्ट मुझे इस ब्लॉग को और बेहतर बनाने की प्रेरणा देंगे।

मंगल मृदुल कामनाओं सहित
आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त

डा० कायनात क़ाज़ी

Monday 7 December 2015

एक सांझ मेहरानगढ़ फ़ोर्ट में बैठी कठपुतली वाली के साथ.....


एक सांझ मेहरानगढ़ फ़ोर्ट वाली  कठपुतली वाली के साथ.....  
जोधपुर के मेहरानगढ़ फ़ोर्ट की आन बान और शान के बारे में आप मेरी पिछली पोस्ट  में पढ़ ही चुके हैं। इस वैभव पूर्ण किले में आपको राजपूती कला और संस्कृति की झलक कई रूपों में देखने को मिलती है। जहां क़िले में एक छोटा सा बाजार है जहां से आप लहरिया दुपट्टे,पगड़ियाँ, राजस्थानी जूतियां और आभूषण खरीद सकते हैं वहीँ क़िले के बाहर की बॉन्ड्री से सटे खुले अहाते में एक पेड़ की छांव तले एक राजस्थानी आदिवासी महिला अपनी रंग बिरंगी कठपुतलियों से राजस्थान की गौरव गाथा सुनाती दिख जाएगी। 




जनाब यह रंगों से सजी बेजान कठपुतलियां भर नहीं है। आप दम भरने को ठहरें तो जान पाएंगे कि वह आदिवासी महिला इन रंगबिरंगी कठपुतलियों को नचा नचा कर राजस्थान के राजपूतों की गौरव गाथा अपने बंजारे गीत के बोलों से सुना रही है। 



इन गीतों में राजा है, प्रजा है और है उनके शौर्य की गाथा। एक ऐसी गाथा जिसमे ऊंटों का एक विशेष स्थान है। इन गीतों में प्रेम है तो वियोग भी है। साहस है तो त्याग भी है। 


राजपूताने की सरज़मीन की इन कहानियों में शौर्य अपने चरम पर देखने को  मिलता है। इसमें महिलाऐं भी पुरुष के साथ बराबरी से हिस्सा लेती हैं। 


और संगीत तो यहाँ के कण कण में बसा हो जैसे।


इन कठपुतियों का नाच देख कर आने जाने वाले बरबस ही ठहर जाते हैं। अपने हाथों से कपड़े और गोटे से कठपुतली बनाने की हज़ारों वर्ष पुरानी इस कला को आप भी सराहे बिना नहीं रह पाएंगे। मैंने अपने घर के लिए और अपने मित्रों के लिए राजस्थान की निशानी बतौर कई कठपुतलियां खरीदीं। 
आप जहां भी जाएं वहां के लोकल कलाकारों द्वारा बनाई हुई चीज़ें ज़रूर खरीदें। ऐसा करके आप उस स्थान से जुड़ी कलाओं को तो सपोर्ट करेंगे ही साथ ही उन कलाकारों को भी प्रोत्साहन मिलेगा। और इन सबके बदले में जो आपको मिलेगा उसका आप अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते। 
मैं देश के जिस भी हिस्से में जाती हूँ वहां से जुड़ी कला का एक नमूना ज़रूर साथ लाती हूँ और आज हालत यह है कि मेरे घर के हर एक कोने में पूरा भारत बसता है। 
मेरे घर आने वाले मेहमान आश्चर्य से पूछते है कि मैं वह सब चीज़ें लाती कहाँ से हूं ? तो मैं बड़ी शान से बताती हूं हर उस जगह का नाम जहाँ से मैंने उसे चुना था। 
आप ऐसे ही बने रहिये मेरे साथ 


आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त 

डा० कायनात क़ाज़ी 

 “I am blogging for #ResponsibleTourism activity by Outlook Traveller in association with BlogAdda

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