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कुछ पंक्तियां इस ब्लॉग के बारे में :

प्रिय पाठक,
हिन्दी के प्रथम ट्रेवल फ़ोटोग्राफ़ी ब्लॉग पर आपका स्वागत है.….
ऐसा नहीं है कि हिन्दी में अच्छे ब्लॉग लिखने वालों की कमी है। हिन्दी में लोग एक से एक बेहतरीन ब्लॉग्स लिख रहे हैं। पर एक चीज़ की कमी अक्सर खलती है। जहां ब्लॉग पर अच्छा कन्टेन्ट है वहां एक अच्छी क्वालिटी की तस्वीर नहीं मिलती और जिन ब्लॉग्स पर अच्छी तस्वीरें होती हैं वहां कन्टेन्ट उतना अच्छा नहीं होता। मैं साहित्यकार के अलावा एक ट्रेवल राइटर और फोटोग्राफर हूँ। मैंने अपने इस ब्लॉग के ज़रिये इस दूरी को पाटने का प्रयास किया है। मेरा यह ब्लॉग हिन्दी का प्रथम ट्रेवल फ़ोटोग्राफ़ी ब्लॉग है। जहाँ आपको मिलेगी भारत के कुछ अनछुए पहलुओं, अनदेखे स्थानों की सविस्तार जानकारी और उन स्थानों से जुड़ी कुछ बेहतरीन तस्वीरें।
उम्मीद है, आप को मेरा यह प्रयास पसंद आएगा। आपकी प्रतिक्रियाओं की मुझे प्रतीक्षा रहेगी।
आपके कमेन्ट मुझे इस ब्लॉग को और बेहतर बनाने की प्रेरणा देंगे।

मंगल मृदुल कामनाओं सहित
आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त

डा० कायनात क़ाज़ी

Wednesday, 30 December 2015

प्रातःकाल का शहर-ऑरोविल



Matrimandir

पांडिचेरी से 12 कि.मी. दूर स्थित ऑरोविल (इसे प्रातःकाल का शहर भी कहते हैं) एक ऐसा शहर है जहाँ विभिन्न राष्ट्रीयताएँ और संस्कृतियाँ मिलती हैं। यह शहर विभिन्न देशो से आए लोगों का घर है और यह सही अर्थों में एक अंतर्राष्ट्रीय शहर है। श्री अरबिन्दो  की साथी “दा मदर” ने एक ऐसे शहर की कल्पना की थी जिस पर कोई भी राष्ट्र अपना दावा ना कर सके, एक ऐसा शहर जो मानवता को समर्पित हो।

Image Source www.auroville.org



 "माँ" नाम से अधिक प्रसिद्ध मीरा अल्फासा द्वारा स्थापित ऑरोविले  शहर का निर्माण 1968 में श्री अरबिंदो सोसायटी की एक परियोजना के रूप में शुरु किया गया था। इस शहर की स्थापना का आधार एक सार्वभौमिक स्थान बनाने का विचार था जहाँ सभी देशों और संस्कृतियों के पुरुषों और महिलाओं में सदभावना बनी रहे और विश्व प्रगति का सपना साकार हो सके।

ऑरोविल शहर में विभिन्न क्षेत्र सम्मिलित हैं जैसे- शांति क्षेत्र, औद्योगिक क्षेत्र, आवासीय क्षेत्र, इंटरनेशनल ज़ोन, सांस्कृतिक क्षेत्र और ग्रीन बेल्ट। इस शहर का मुख्य आकर्षण है मातृमंदिर जो इसकी भव्यता के कारण सैलानियों को अपनी ओर खींचता है। मात्र मन्दिर सोने की गोल आकृतियों से बना एक गुम्बद है, जिसके अन्दर बैठ कर लोग ध्यान लगते हैं। पर्यटकों को अन्दर  जाने की इजाज़त नहीं है. मात्र मन्दिर में अन्दर जाने के लिए अलग से अनुमति लेनी होती है। आप जब ऑरोविल जाएं तो 10 मिनट की विडिओ फिल्म ज़रूर देखें जिससे आपको इस स्थान की अधिक जानकारी मिलेगी। 


Auro the swimming Beach

यही नज़दीक में ऑरो बीच स्थित है, यह एक स्विमिंग बीच है। जो अपनी खूबसूरती के कारण यात्रियों और पर्यटकों को आकर्षित करता है।



 

यहाँ कई बीच रिसोर्ट, गैस्ट हाउस और रेस्टोरेन्ट  भी मौजूद हैं। अगर आप ऐसे बीच पर जाना चाहते हैं जहाँ बहुत शान्ति हो तो सेरेनिटी बीच जाएं।

पॉन्डिचेरी क्योंकि कई सभ्यताओं  का संगम है इसलिए यहाँ खाने पीने की बड़ी वेरायटी मिलती है। शुद्ध दक्षिण भारतीय शाकाहारी भोजन से लेकर, चेट्टीनाड  मांसाहारी भोजन, उत्तर भारतीय भोजन और फ्रैंच फ़ूड सब कुछ मिल जाता है।जब आप यहाँ आएँ तो एक्टेसी कैफे का पिज़्ज़ा ज़रूर टेस्ट करें। पॉन्डिचेरी में बैकवाटर का मज़ा भी लिया जा सकता है।

फिर मिलेंगे दोस्तों, भारत दर्शन में किसी नए शहर की यात्रा पर,तब तक खुश रहिये,और घूमते रहिये,
एक शेर मेरे जैसे घुमक्कड़ों को समर्पित 
"सैर कर दुनियाँ की ग़ाफ़िल ज़िन्दिगानी फिर कहाँ, ज़िन्दिगानी  गर रही तो नौजवानी फिर कहाँ "
आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त 
डा० कायनात क़ाज़ी 

Monday, 7 December 2015

एक सांझ मेहरानगढ़ फ़ोर्ट में बैठी कठपुतली वाली के साथ.....


एक सांझ मेहरानगढ़ फ़ोर्ट वाली  कठपुतली वाली के साथ.....  
जोधपुर के मेहरानगढ़ फ़ोर्ट की आन बान और शान के बारे में आप मेरी पिछली पोस्ट  में पढ़ ही चुके हैं। इस वैभव पूर्ण किले में आपको राजपूती कला और संस्कृति की झलक कई रूपों में देखने को मिलती है। जहां क़िले में एक छोटा सा बाजार है जहां से आप लहरिया दुपट्टे,पगड़ियाँ, राजस्थानी जूतियां और आभूषण खरीद सकते हैं वहीँ क़िले के बाहर की बॉन्ड्री से सटे खुले अहाते में एक पेड़ की छांव तले एक राजस्थानी आदिवासी महिला अपनी रंग बिरंगी कठपुतलियों से राजस्थान की गौरव गाथा सुनाती दिख जाएगी। 




जनाब यह रंगों से सजी बेजान कठपुतलियां भर नहीं है। आप दम भरने को ठहरें तो जान पाएंगे कि वह आदिवासी महिला इन रंगबिरंगी कठपुतलियों को नचा नचा कर राजस्थान के राजपूतों की गौरव गाथा अपने बंजारे गीत के बोलों से सुना रही है। 



इन गीतों में राजा है, प्रजा है और है उनके शौर्य की गाथा। एक ऐसी गाथा जिसमे ऊंटों का एक विशेष स्थान है। इन गीतों में प्रेम है तो वियोग भी है। साहस है तो त्याग भी है। 


राजपूताने की सरज़मीन की इन कहानियों में शौर्य अपने चरम पर देखने को  मिलता है। इसमें महिलाऐं भी पुरुष के साथ बराबरी से हिस्सा लेती हैं। 


और संगीत तो यहाँ के कण कण में बसा हो जैसे।


इन कठपुतियों का नाच देख कर आने जाने वाले बरबस ही ठहर जाते हैं। अपने हाथों से कपड़े और गोटे से कठपुतली बनाने की हज़ारों वर्ष पुरानी इस कला को आप भी सराहे बिना नहीं रह पाएंगे। मैंने अपने घर के लिए और अपने मित्रों के लिए राजस्थान की निशानी बतौर कई कठपुतलियां खरीदीं। 
आप जहां भी जाएं वहां के लोकल कलाकारों द्वारा बनाई हुई चीज़ें ज़रूर खरीदें। ऐसा करके आप उस स्थान से जुड़ी कलाओं को तो सपोर्ट करेंगे ही साथ ही उन कलाकारों को भी प्रोत्साहन मिलेगा। और इन सबके बदले में जो आपको मिलेगा उसका आप अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते। 
मैं देश के जिस भी हिस्से में जाती हूँ वहां से जुड़ी कला का एक नमूना ज़रूर साथ लाती हूँ और आज हालत यह है कि मेरे घर के हर एक कोने में पूरा भारत बसता है। 
मेरे घर आने वाले मेहमान आश्चर्य से पूछते है कि मैं वह सब चीज़ें लाती कहाँ से हूं ? तो मैं बड़ी शान से बताती हूं हर उस जगह का नाम जहाँ से मैंने उसे चुना था। 
आप ऐसे ही बने रहिये मेरे साथ 


आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त 

डा० कायनात क़ाज़ी 

 “I am blogging for #ResponsibleTourism activity by Outlook Traveller in association with BlogAdda

The holy river Ganges without water

गंगा: एक दिन बिना पानी के 

भोर का नीला उजालापूरब में सिंदूरी लालिमा, वायु में सुगन्धी अगरबत्तियों की महक, मंदिर की घंटियाँ, दूर से आती शंखनाद, हर हर गंगे की स्वर लहरी, कलकल बहता गंगाजल और घाटों पर जुटती श्रद्धालुओं की भीड़ जैसे मेला लगा हो। यह महान द्रश्य है हरिद्वार स्थित हर की पौड़ीका जहाँ की सुबह रोज़ ही आध्यात्म की ऊर्जा से भरी होती है।

The Holy River Ganges


Har Ki Paudi,Haridwar

लोग देश के कोने-कोने से हरिद्वार आते हैं। यह वह पवित्र स्थान है जहाँ पर गंगा अपने स्त्रोत गौमुख-हिमनद से निकल कर लम्बी और पथरीली यात्रा पार कर समतल भूमि को स्पर्श करती है। यहीं से गंगा मैदानी क्षेत्रों में प्रवेश कर समृद्धि और जीवन लाती है।

करोड़ों श्रद्धालु देश विदेश से इस मेले में माँ गंगा में स्नान करने आते हैं। ऐसी मान्यता है कि गंगा में डुबकी लगाने से सारे पाप धुल जाते हैं। पूरी दुनिया से करोडों तीर्थयात्री, भक्तजन और पर्यटक यहां इस समारोह को मनाने के लिए एकत्रित होते हैं और गंगा नदी के तट पर शास्त्र विधि से स्नान इत्यादि करते हैं। जहाँ सूरज की पहली किरण के आने से पहले से लेकर देर रात तक श्रद्धालुओं की भीड़ जुटी रहती है। जन्म और मृत्यु से जुड़े अनेक संस्कार यही आकर संपन्न किये जाते हैं।

A lady performing rituals at Har Ki Paudi, Haridwar

कोई अपने बच्चे का मुण्डन करवाने आया है ,कोई विवाह के बाद परिवार में आए नए सदस्य को लेकर अपने खानदानी पण्डे द्वारा पूजा संपन्न करवाने आया है तो कोई किसी अपने की अस्थियाँ गंगा जी में विसर्जित करके उनके लिए मोक्ष की कामना कर रहा है। कोई हाथों में फूल और दीपक लिए अपने पुरखों की आत्मा की शान्ति के लिए पूजा में लीन है।


A day without water:The Holy River Ganges

इस सुंदर नज़ारे को देखना कितना सुखद है। पर क्या हम कभी यह सोचते हैं कि हम जब गंगा में होली डिप लगाने जाते हैं तो अपने पीछे अनजाने में ही कितनी ही ऐसी चीज़ें हैं जिसे गंगा में बहा आते हैं। क्या कभी कोई यह सोचता है कि उनके द्वारा बहाई हुई चीज़ें गंगा को कितना प्रदूषित करती हैं। गंगा में सैंकड़ों टन मलबा जमा हो रहा है। अगली बार जब आप गंगा या किसी और नदी में कुछ बहाएं तो एक बार जरूर सोचें।

Polluted Ganges



Polluted Ganges


Polluted Ganges



ऐसे ही घूमते रहिये और स्वच्छता का ध्यान रखिये। 

आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त 
डा ० कायनात क़ाज़ी 

Wednesday, 2 December 2015

डल लेक पर तैरती फ्लोटिंग वेजिटेबल मार्केट-श्रीनगर

कश्मीर पांचवां दिन 

इस श्रंखला की पिछली पोस्ट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें : कश्मीर चौथा दिन 


Floating Vegetable Market on Dal Lake

श्रीनगर की पहचान मानी जाने वाली डल लेक यहां के लोगों की ज़िन्दगी का अभिन्न हिस्सा है। इस लेक में शिकारा राइड लेने वाले सैलानी सिर्फ़ इसके बाहरी हिस्से का चक्कर लगा कर चले आते हैं। बाहर से छोटी दिखने वाली डल लेक अपने भीतर एक दुनियां समेटे हुए है, एक ऐसी दुनिया जिसमे घर है, पानी पर तैरते फ्लोटिंग खेत हैं, लोटस के बाग़ हैं, मीना बाजार है और कश्मीरी हस्थकला से जुड़ी छोटी छोटी इकाइयां भी हैं। इस दुनियां की झलक आपको किसी टूर पैकेज में नहीं मिलेगी। यह दुनियां है इन कश्मीरियों की और उनकी प्यारी डल लेक की। डल लेक इन कश्मीरियों की जान है। इसे देखने के लिए आपको थोड़ा भीतर जाना होगा। इनके रंग में रंगना होगा, और एक सैलानी का चोला उतारना होगा। मैंने महसूस किया है कि जो लोग कश्मीर जाते हैं उनके भीतर कहीं न कहीं एक आशंका पलती रहती है, एक अनकहा अविश्वास उनके साथ चलता है। अगर आप कश्मीर को नज़दीक से देखना चाहते हैं तो उसका एक  मन्त्र है। वह है विश्वास। 


On the way to Floating Vegetable Market on Dal Lake

आप इन कश्मीरियों पर भरोसा कीजिये फिर देखिये कैसे यह लोग आपको अपनी दुनिया से रूबरू करवाते हैं। मेरे दिल में भी एक अरसे से तमन्ना थी कि जब कश्मीर जाउंगी तो डल लेक के अंदर बसने वाली दुनियां देखूंगी। सो मैंने तय किया कि एक सुबह डल के भीतर लगने वाली वेजिटेबल मार्केट देखा जाए। यहां तक पहुंचने के लिए आपको शिकारा से जाना होगा। जिसे आपको एक रात पहले ही तय करना होगा। डल के अंदर लगने वाली यह मार्केट सुबह-सुबह ही लगती है। 


Vegetable sellers rushing to the market 


Lush green surroundings inside the Dal Lake will take your breath away

इसको देखने आपको सूर्योदय से पहले निकलना होगा। मैंने एक रात पहले ही शिकारा वाले गुलज़ार भाई से तय कर लिया। यह लोग पैसे बहुत मांगते हैं इसलिए थोड़ा मोल भाव ज़रूर करें। गुलज़ार भाई मुझे 600 रूपए में वेजिटेबल मार्केट लेकर जाने को राज़ी हो गए। तय हुआ की वह सुबह पांच बजे शिकारा लेकर घाट नंबर पांच पर मेरा इन्तिज़ार करेंगे। डल के भीतर की दुनियां देखने की इतनी बेचैनी थी की मैं रात भर आराम से सो भी न सकी और अलार्म बजने से पहले उठ गई। जल्दी जल्दी अपना कैमरा उठाया, जूते  पहने और कमरे  से बाहर आ गई। नीचे आकर देखा तो होटल का गेट बंद था। इधर उधर ढूंढा पर कोई न था। और सड़क के उस पार गुलज़ार भाई खड़े थे। क्या करूं कुछ समझ नहीं आया। अब तो बस गेट पर चढ़ कर फलांगना होगा। बहुत अरसे से ऐसा कुछ किया नहीं था सोचा आज यह भी हो जाए। मैंने पांच फुट की ऊंचाई का गेट चढ़ा और गुलज़ार भाई ने सहारा देकर मुझे नीचे उतरने में मदद की, मुझे जल्दी इस बात की हो रही थी कि डल में सुबह सुबह लगने वाली यह वेजिटेबल मार्केट कुछ ही देर में ख़त्म हो जाती है। इसलिए अगर समय से न पहुंची तो मुझे अच्छी तस्वीरें नहीं मिलेंगी। देख रहे हैं न आप एक फोटोग्राफर को एक अच्छी तस्वीर के लिए क्या क्या करना होता है। 


A good bargainer will win

बुलावार्ड रोड पर अभी भी रात का सन्नाटा पसरा हुआ है. हवा में ठंडक है। मैंने जल्दी जल्दी घाट की सीढ़ियां पार कीं सावधानी से शिकारा में जा बैठी और हम डल के भीतर, और भीतर की ओर बढ़े चले जा रहे थे। फ़िज़ा में ठंडी हवाओं के साथ मस्जिदों से आती एक के बाद एक आज़ानों की आवाजें घुल रही थीं। हम डल के पानियों पर तैरती होउसबोटों से आती अलसाई पीली रोशनियों को जगाते हुए आगे बढ़ रहे थे। यह नज़ारा बड़ा ही दिलफरेब था। समंदर-सा गहरा डल का पानी अपने दामन पर कितनी ही बड़ी-बड़ी हाउस बोट का वज़न सेहता है और मुस्कुराता है। हम जैसे-जैसे डल के अंदरुनी इलाक़े में जाते जाते हैं हमे बड़े बड़े लिली के फ्लोटिंग खेत नज़र आते हैं। कुछ दूरी पर सब्ज़ियों के फ्लोटिंग खेत शुरू हो जाते हैं। 


Floating lilly fields inside the Dal Lake


खेतों के पार कहीं कहीं छोटे छोटे लकड़ी के घर बने हुए हैं। जिनके बाहर आंगन भी हैं। मुझे बड़ी  हैरानी हुई। जिस डल लेक की गहराई देख कर थोड़ी सिहरन पैदा होती है उसके बीचों बीच लोग बड़े आराम से रहते हैं। हमने लगभग बीस मिनट का फासला तय किया होगा कि हमें छोटी छोटी नावों पर कश्मीरी लोग सब्ज़ियां लेजाते हुए दिखने लगे। यह सभी डल में मुख्तलिफ दिशाओं में फैले हुए खेतों से सब्ज़ियां तोड़ कर लाते हैं और यहां बेचते हैं। कोई अपनी नाव में हरी सब्ज़ियां बेचने आया है तो कोई कद्दू और लौकी बेचने आया है। 


A pumpkin seller on the way to floating market


Sometimes exchange offer works better


किसी की नाव फूलों से भरी हुई है तो कोई टमाटर की सौदेबाज़ी में बिजी है। यह एक अद्भुत नज़ारा था। ऐसा भारत में कहीं और नहीं दिखाई देता। बाजार की यह हलचल कुछ ही देर में निपट जाती है और लोग वापसी की राह लेते हैं। आसमान पर घने बादल छाए हुए हैं। यहां डल में एक बेकरी भी है। कश्मीरी लोग चाय के साथ तंदूरी रोटी खाते हैं। वापसी में मैंने देखा कि एक जगह 4-5 किश्तियों को रोक कर यह सब्ज़ी व्यापारी गप्पें लड़ा रहे हैं और कश्मीरी चाय का आनंद ले रहे हैं। कश्मीरियों में कश्मीरी क़ेहवा के अलावा कई तरह की चाय मशहूर हैं। जिसमे नून चाय प्रमुख है। यह चाय नमकीन होती है।  



Relaxing hours

डल लेक जहां एक तरफ़ श्रीनगर की पहचान माना जाता है वहीँ इनलोगों का भावनात्मक जुड़ाव भी है इस जगह से, इसलिए भूल कर भी इन लोगों के सामने डल के पानी को गन्दा न कहें। 
वैसे इस वेजिटेबल मार्किट तक आप बाई रोड भी जा सकते हैं, यह मुझे वहां पहुंच कर ही मालूम पड़ा। सब्ज़ी मार्केट का एक सिर किसी सड़क से जुड़ा हुआ था। मैंने मालूम किया तो पता चला कि यह सड़क हज़रतबल तक जाती है। यह बात आपको कोई शिकारा वाला नहीं बताएगा। लेकिन मेरी सलाह है कि यह रास्ता सड़क के बजाए शिकारा से ही तय करना अच्छा है। 

Beautiful house inside the Dal Lake

डल  लेक में  यहां वहां बिखरे कई ख़ूबसूरत नज़ारे आपको देखने को मिल जाएंगे। कोई फूलों से भरा शिकारा आपके नज़दीक ले आएगा जिसमे मौसमी फूल होंगे, तो कोई हाथ का बना कश्मीरी कालीन बेचना चाहेगा। इनलोगों के लिए डल लेक में शिकारा चलाना बिलकुल वैसा ही है जैसा हमारे लिए सड़क पर कार चलाना। 




 यह था कश्मीर का एक और रंग। आप ऐसे ही बने रहिये मेरे साथ। 


Flowers will make everyone happy



तब तक के लिए खुश रहिये और घूमते रहिये।


आपकी हमसफर आपकी दोस्त


डा० कायनात क़ाज़ी

Monday, 23 November 2015

भारतीय अरेबिक स्थापत्यकला का उत्कृष्ठ नमूना श्रीनगर की जामा मस्जिद

कश्मीर चौथा दिन 
इस श्रंखला की पिछली पोस्ट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें : कश्मीर तीसरा दिन 

Main building of Jamia Masjid


कश्मीर में सूफिज़्म की जड़ों की तलाश अभी बाक़ी है मेरे दोस्त। इस सफर का अगला पड़ाव है यहाँ की  जामा मस्जिद। भीड़ भाड़ से भरे पुराने शहर यानी की डाउन टाउन में यह जगह सुकून देने वाली है। मैं डाउन टाउन की ऊंची नीची सड़कों को लांघती हुई जामा मस्जिद पहुंचती हूं। जामा  मस्जिद के दरवाज़े पर बने भारतीय सेना का बंकर मेरा बेदिली से स्वागत करता है। पूरे भारत में बेधड़क घूमने वाली मुझ यायावर के लिए यह एक अच्छा संकेत नहीं है। लोगों से खचाखच भरे मुहल्ले के बीच  बंकर होना आंखों को थोड़ा चुभता है।

Beautiful Indo-Saracenic architecture @Jamia Masjid


 हमारे देश में स्मारकों के बाहर सुरक्षा तो होती है पर बंकर बना कर फ़ौज को चौबीसों घण्टे पहरा देना पड़े ऐसे बुरे हालात तो कहीं नहीं हैं। बंकर के बाहर फौजी अपनी शिफ़्ट बदल रहे थे। मेरे दिमाग़ में एक सवाल था जिसकी जिज्ञासा में शांत करना चाहती थी। मैंने अपने ऑटो वाले से पूछा,- ख़ुदा के घर के बाहर यह बंकर क्यों ?क्या ज़रूरत है इसकी ?
मेरा ऑटो वाला एक 19 -20 बरस का कश्मीरी नौजवान था। वह बड़े ही जोश से बोला,-" जुम्मे के रोज़ यहां बहुत लोग नमाज़ अदा करने आते हैं और हमारे नेता मीर वाइज़ उमर फ़ारूख़ तक़रीर करते  हैं।"
मुझे उसकी बात समझ नहीं आई। क्यूंकि जुम्मे की नमाज़ से पहले धार्मिक गुरु लोगों को सम्बोधित करते हैं और जीवन से जुड़ी अच्छी बातों को बताते हैं, ऐसा सभी जगह होता है। मैंने वज़ाहत करनी चाही,-" इसके लिए बंकर की क्या ज़रूरत है ?" 
उसने बताया,-"तक़रीर के बाद पथराव होता है, इसलिए।"
पथराव ? मुझे हैरानी हुई। 
पथराव क्यों ? मैंने पूछा। 
इस्लाम को बचाने के लिए ? वह बोला 
मगर किससे ? इस्लाम में कहां लिखा है कि पथराव करो ? मैंने पूछा 
बहन, आप समझी नहीं ,वह पुरअमन तरीक़े से पथराव होता है, उसने मुझे समझाया। 
मैं वाक़ई नहीं समझी , यह पुरअमन तरीक़े से पथराव क्या  होता है ? 
पथराव पुरअमन कैसे हो सकता है? मेरी समझ से परे था। यह था कश्मीर का एक और रूप … 
इस बातचीत से यह ज़रूर साफ हो गया कि यहां भारतीय सेना के बंकर की ज़रूरत क्यों है। मैंने ख़ुदा के घर में दाख़िल होते हुए इस हसीन वादी के लिए अमन और चैन की दिल से दुआ की। ख़ुदा यहां के भोले भाले लोगों को सद्बुद्धि दे। 


Lady praying in the courtyard@Jamia Masjid 

आएं अंदर चलकर इस खूबसूरत ईमारत को देखते हैं। इस मस्जिद का निर्माण सुल्तान सिकंदर ने करवाया था। इस मस्जिद का ताल्लुक़ सूफ़ीज़्म से ऐसे है कि इसे बनवाने की हिदायत सुल्तान सिकंदर को शाह ए हमदान के बेटे मीर मुहम्मद हमदानी ने दी थी। बाद में उनके पुत्र ज़ैनुल अबिदीन ने  इसे और बड़ा बनवाया। यह एक विशाल मस्जिद है जिसमे एक वक़्त में लगभग तैतीस हज़ार लोग नमाज़ अदा कर सकते हैं। यह मस्जिद भारतीय और अरेबिक वास्तुकला का उत्कृष्ठ नमूना है। हम सदर दरवाज़े से दाख़िल होते ही इसके बड़े कोर्टयार्ड में पहुंचे। यह दालान बड़े बड़े लकड़ी के खम्बों से घिरा हुए हैं। इस मस्जिद में लगभग 377 लकड़ी के खम्बे हैं। जिनके बीच कश्मीरी क़ालीन बिछे हुए हैं जिनपर लोग नमाज़ पढ़ते हैं। इन दालानों के पार एक खूबसूरत गार्डन है जिसके बीचों बीच एक फुव्वारा है जिसके चारों तरफ बैठ कर लोग वुज़ू किया करते हैं। यहां बहुत शांति है। इस मस्जिद में महिलाऐं भी जा सकती हैं, लेकिन उनको सिर ढक कर जाना होता है। इस मस्जिद के दरवाज़े सभी के लिए खुले हैं। यहां कोई भी निसंकोच जा सकता है। मीर वाइज़ उमर फ़ारूख़ इस मस्जिद के मुख्य इमाम हैं। 

Local Kids @Jamia Masjid


आप ऐसे ही बने रहिये मेरे साथ.

हिमालय के अनेक रूपों में से एक के साथ...

कल हम चलेंगे सुबह-सुबह डल लेक के अंदर लगने वाली वेजिटेबल मार्केट देखने।

KK@Jamia Masjid


तब तक के लिए खुश रहिये और घूमते रहिये।

आपकी हमसफर आपकी दोस्त

डा० कायनात क़ाज़ी





Friday, 20 November 2015

आएं तलाशें डाउन टाउन श्रीनगर में सूफिज़्म की जड़ें

शाह-ए-हमदान और दस्तगीर साहेब 
Kashmir Day-3
इस श्रंखला की पिछली पोस्ट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें : कश्मीर दूसरा दिन 
कश्मीर तीसरा दिन 


Shah-e-Hamdan

दूसरा दिन डल लेक के आसपास बने मुग़ल गार्डन्स देखने में निकल गया। श्रीनगर इतना बड़ा है कि आप इसे एक दिन में नहीं देख सकते है। इसलिए मैंने पहले दिन सिर्फ गार्डन्स ही देखे। आज में आपको ले चलती हूं पुराने श्रीनगर में। जहां हम ढूंढेंगे मध्य एशिया से भारत में आए सूफ़ीज़्म की जड़ों को। 
A lady praying @Shah-e-Hamdan

कहते हैं भारत में सूफ़ीज़्म पंद्रहवीं शताब्दी के आसपास आया। जब मध्य एशिया से इस्लाम का विस्तार हुआ और वहां के योद्धाओं ने पूरे विश्व में इस्लाम के प्रचार के लिए अपने पांव फैलाए तो चारों तरफ एक अजीब मंज़र था। धार्मिक कट्टरता ने शांत देश में उथल पुथल मचा दी। धर्म के इन प्रचारकों के बीच ऐसे भी कुछ लोग थे जो धार्मिक कट्टरता के ख़िलाफ़ थे और विस्तारवाद की राजनीति को छोड़ना चाहते थे। ऐसे ही लोगों ने सक्रिय राजनीति को छोड़ गांव देहात का रास्ता अपनाया और मानवता को अपना मूल मन्त्र माना। यह लोग सत्ताधारियों से अलग थे। यह विलासिता से दूर आम आदमी के सुख दुःख के साथी बने। इन्होने इस्लाम का सही मायनों में प्रचार और प्रसार किया। यह फूट डालो नीति के बजाए सब को साथ लेकर चलने में विश्वास रखते थे। यह रेशम के वस्त्र न पहन कर मामूली ऊनी लबादे पहनते थे यह लोग हर वक़्त इबादत में लगे रहते।  अल्लाह और अल्लाह के रसूल की अच्छी बातों का ज़िक्र किया करते थे। घाटी में इस्लामिक कट्टर पंत के प्रभाव को कम करने में इन सूफ़ियों ने ज़हर मोहरा (Antidote) का काम किया। इन के दरवाज़े हर इंसान के लिए खुले थे। यह जाति बिरादरी, ऊंच नीच, काला गोरा, हिन्दू मुस्लिम से परे इंसानियत को तरजीह देते थे। कश्मीर में उन दिनों जैन मुनि और बौद्ध भिक्षु भी हुआ करते थे। भारतीय साधू और पर्शियन सूफियों में बहुत समानता थी इसलिए यह यहीं के हो कर रह गए। इनकी सोच कश्मीरियत से बहुत मेल खाती थी। इसीलिए कश्मीर की घाटी में लोगों के बीच यह ऐसे मिल गए जैसे दूध में शकर। पर्शिया से आने वाले प्रमुख सूफ़ी थे सय्यद जलाल उद्दीन बुखारी, बुलबुल शाह, सैयद ताजुद्दीन, सैयद हुसैन सामनानी, शाह-ए-हमदान आदि। ऐसा कहा जाता है कि शाह-ए-हमदान इन सूफ़ी विद्वानो में सबसे प्रमुख थे और उनके द्वारा कश्मीर घाटी में इस्लाम का खूब प्रचार हुआ जिससे घाटी में पैंतीस हज़ार जैन और बौद्ध लोगों ने स्वेच्छा से इस्लाम धर्म अपनाया। ऐसा माना जाता है कि  शाह-ए-हमदान का मज़ार घाटी में बने अन्य सूफ़ी मज़ारों में सबसे प्राचीन है। 


wooden carving work@ Shah-e-Hamdan

 आज भी कश्मीर घाटी में कई सूफी संतों की मज़ारें हैं जहां सभी धर्मों के लोग जाते हैं। पुराने श्रीनगर में जाए के लिए सबसे अच्छा साधन है ऑटो रिक्शा, मैंने एक ऑटो वाले से बात की और वह मुझे पुराने श्रीनगर लेकर गया। मैं जानना चाहती थी कि इतने सैकड़ों सालों पुराना सूफिज़्म अब भी उसी स्वरुप में है या कि कुछ बदला है।  मेरी यह जुस्तुजू मुझे शाह-ए-हमदान का मज़ार ले पहुंची। इसे ख़ानका-ए-मौला भी कहते हैं। यह झेलम नदी के तट पर बसा है। मुझे ऑटो वाले ने बताया कि अभी पिछली साल जब श्रीनगर में बाढ़ आई तो जहां लोगों के घर एक एक मंज़िल तक डूब चुके थे वहीं शाह-ए-हमदान जो कि झेलम के तट पर ही बसा है उसे कुछ नहीं हुआ, यह चमत्कार है। 

KK@Shah-e-Hamdan

मैंने महसूस किया कि कश्मीर के लोगों में यहां के सूफी संतों के लिए अपार श्रद्धा है। हम डाउन टाउन की तंग गलियों को पार कर शाह-ए-हमदान पहुंच गए थे। दरगाह के बाहर लोग कबूतरों का दाना बेच रहे थे। हमने भी दाना ख़रीदा। मज़ार के बाहर इंडियन आर्मी का बंकर बना हुआ था। हाथ में रायफल लिए मुस्तैदी से तैनात जवान किसी अनहोनी की आशंका में रात दिन यहां खड़े रहते हैं। मेरी नज़र उस जवान से मिली मैंने एक सम्मान भरी मुस्कान से उस जवान को अभिवादन किया और दरगाह में चली गई। दरगाह में चहल पहल थी। मैंने इधर उधर नज़र दौड़ा कर जायज़ा लिया। कश्मीर के अलावा भारत भर में पाए जाने वाली दरगाहों पर सप्ताह के किसी एक दिन लोग ज़्यादा दिखाई देते हैं। या फिर बाहर से आने वाले श्रद्धालु दिख जाते हैं लेकिन यहां का मंज़र थोड़ा अलग था। यहां बाहर से आने वाले सिर्फ हम थे बाक़ी जितने भी थे सब लोकल लोग थे और जिस तरह वह दरगाह में आ जा रहे थे उससे लग रहा था कि यहां यह लोग रोज़ ही आते होंगे। श्राईन में जाना इनके जीवन का हिस्सा है। मैं लगभग 10-15 सीढ़ियां उतर कर दरगाह के प्रांगण में पहुंच गई। महिलाओं का अंदर जाना माना है। मैंने बाहर से ही ज़्यारत की।शाह-ए-हमदान की चौखट पर ज़ंजीरों से एक पीतल का पेन्डेन्ट जैसा लटका हुआ था जिसे आने जाने वाले पकड़ कर अपनी मुरादें मांग रहे थे। मैंने भी ख़ुदा के दरबार में हाथ उठा कर इस हसीन वादी में अमन और चैन के लिए अपनी अर्ज़ी लगा दी। शाह-ए-हमदान लकड़ी की नक्कारशी से बानी हुई एक खूबसूरत ईमारत है। इसके बिलकुल पीछे झेलम नदी बह रही है। ईमारत के प्रांगण में एक ऊंचे चबूतरे पर कबूतरों को दाना खिलाने की जगह है। इस प्राचीन ईमारत को बेहतर रखरखाव की ज़रूरत है। 


मेरा अगला पड़ाव है दस्तगीर साहेब। 
 दस्तगीर साहेब देखने के लिए मैं बहुत उत्साहित थी। यह श्राइन शाह-ए-हमदान से नज़दीक ही है। यह बाजार के बीचों बीच बनी हुई है। ऐसा माना जाता है कि इस दरगाह की ज़ियारत करने से सारे दुःख दर्द दूर हो जाते हैं,मन की मुराद पूरी होती है। इस दरगाह में स्त्री पुरुष दोनों जा सकते हैं। यहां फोटो खींचने के लिए इजाज़त लेनी होती है। मैं जब इस दरगाह में पहुंची तो वहां बहुत सारी कश्मीरी महिलाऐं जमा थीं। वह कागज़ की पर्चियों पर अर्ज़ियाँ लिख कर दरगाह की जालियों में बांध रही थीं। एक अजीब रुदन का माहौल था। महिलाओं के चेहरे आंसुओं से भीगे हुए थे। पूरा माहौल शोक से भरा हुआ था। इन दर्द में डूबी हुई तस्वीरों को क़ैद करने की हिम्मत मुझ मे न थी। 


An old Man Praying

यहां आकर मुझे अहसास हुआ कि कश्मीरी लोगों के जीवन में इन दरगाहों का इतना महत्व क्यों है। क्यूंकि इनके जीवन में दुःख है, अपनों से बिछड़ने का दर्द है, किसी के लौट कर आने का इन्तिज़ार है। 
आंसुओं के इस सैलाब को देख मेरा मन भारी हो गया और मैंने ख़ामोशी से वापसी की राह ली। यह था कश्मीर का एक और रंग … 
आप ऐसे ही बने रहिये मेरे साथ.…
हिमालय के अनेक रूपों में से एक के साथ... 
कल हम चलेंगे डाउन टाउन में बनी जामा मस्जिद देखने।
तब तक के लिए खुश रहिये और घूमते रहिये। 

आपकी हमसफर आपकी दोस्त 

डा ० कायनात क़ाज़ी 



Thursday, 12 November 2015

चश्मे, चिनार, गार्डेन्स और डल लेक आठ घंटों मे...

Kashmir day-2 

इस श्रंखला की पिछली पोस्ट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें : कश्मीर पहला दिन 

कश्मीर दूसरा दिन


Route Map-Places near Dal Lake


चश्मे, चिनार, गार्डेन्स और डल लेक आठ घंटों मे...

कश्मीर मे मेरा आज यह दूसरा दिन है। हमने फैसला किया कि आज श्रीनगर घूमा जाए। सुबह से लेकर शाम तक के आठ घंटों मे आधा श्रीनगर देखना है। श्रीनगर को हम दो हिस्सों मे बांट कर देख सकते हैं। एक हिस्सा जो डल लेक के आस पास बना हुआ है। जिसमे मुगलों के बनवाए हुए गार्डेन्स शामिल हैं और दूसरा हिस्सा डाउन टाउन श्रीनगर जिसे ओल्ड श्रीनगर भी कहते हैं। एक दिन मे पूरा श्रीनगर नही देखा जा सकता है। इसलिए पहले हम डल लेक के आस पास बने मुगल गार्डेन्स देखेंगे।


Chashme Shahi


श्रीनगर मशहूर है यहां पर बने गार्डेन्स के लिए। यह गार्डेन्स मुगल बादशाहों ने बनवाए थे। मुगलों को कश्मीर से बहुत लगाव था। मुग़लों ने कश्मीर पर लगभग 167 वर्षों तक राज किया। जिसकी छाप यहां पर खूब दिखाई देती है। मुगल मूल रूप से मध्य एशिया मे स्थित समरक़ंद और फ़र्गाना से आए थे। और जिस रेशम मार्ग से वे भारत मे दाखिल हुए थे वहीं नज़दीक ही कश्मीर वैली भी पड़ती थी। यह जगह मुगलों को खूब भा गई। क्योकि जिस जगह से व आए थे वहां की जलवायु से कश्मीर का मौसम मिलता जुलता था। मुगलों ने दिल्ली को अपनी सल्तनत तो बनाया पर कश्मीर से लगाव को दिल से ना निकाल पाए। दिल्ली मे रहते हुए उन्हें कश्मीर की वादियों का हुस्न अपनी ओर खींचता, और फिर दिल्ली की गर्मी भी मुगल बादशाहों से बर्दाश्त ना होती। इसलिए मुगलों ने कश्मीर को अपनी गर्मियों की आरामगाह के रूप मे विकसित किया। 


Chashm-e-Shahi


यहां मुगलों ने पर्शियन आर्किटेक्चर के हिसाब से टेरेस गार्डेन्स बनवाए। जिनमे मशहूर मुगल गार्डेन्स हैं; चश्मे शाही, निशात बाग, शालीमार बाग और परी महल। इन सभी गार्डेन्स की ख़ासियत है इन मे प्रयोग हुए प्राकृतिक जल स्त्रोत। ज़बरवान पहाड़ों के आंचल मे बने यह टेरेस गार्डेन्स सजाए गए हैं इनके बीच बहने वाली नहरों से। यह पानी के सोते अविरल बहते हुए इन बागों को सुंदरता प्रदान करते हैं और आगे जाकर डल झील मे मिल जाते हैं। यह पहाड़ी सोते जहां एक ओर इन बागों की सुदरता को गति प्रदान कर सजीव बनाते हैं वहीं डल झील मे मिलकर झील के पानी को निरंतर फ्रेश पानी पहुंचाते हैं। डल झील से होता हुआ यह पानी आगे जाकर झेलम नदी मे पहुंचता है। मुगलों द्वारा प्राकृतिक जल संसाधनों का इतना परभावी उपयोग सराहनीय है। यह अपने आप मे एक ईको सिस्टम है, जिससे ना जाने कितने अनगिनत जीव जन्तु, पशु पक्षी लाभान्वित हो रहे हैं। पर्शियन आर्किटेक्चर पर स्लामिक आर्किटेक्चर का प्रभाव  प्रमुखता से देखने को मिलता है।


Royal Spring


इस्लामिक आर्किटेक्चर क़ुरान मे वर्णित जन्नत के स्वरूप से बहुत परभावित है। क़ुरान मे जन्नत मे बने ऐसे बागों का ज़िक्र है जिनके बीच से नहरें बह रही होंगी। मुग़ल बादशाह धरती पर ऐसे ही स्वर्ग की रचना करना चाहते थे। इसीलिए मुग़ल वास्तुकारों ने भी ऐसे ही बागों की रचना करने की कोशिश की है। मुग़ल गार्डेन्स की वास्तुकला के यह नमूने कश्मीर के अलावा कई अन्य स्थानों मे भी पाए जाते हैं। आगरा के ताज महल मे बने बाग भी ऐसी ही वास्तुकला पर आधारित हैं। हम आज इन आठ घंटों मे इन्ही सारे स्मारकों को देखेंगे। हम सबसे पहले चश्मे शाही देखने गए। चश्मे शाही का अर्थ होता है -“शाही झरना चश्मे शाही मुग़ल गार्डन्स में सबसे पहले बना था। कहते हैं इस गार्डन को मुग़ल मलिका नूर जहां के भाई आसिफ ख़ान ने बनाया था। इसे रॉयल स्प्रिंग भी कहा जाता है। ज़बरवान पर्वत श्रंखला के दामन में तीन टेरेस में बना यह स्मारक बुलवर्ड रोड से चार किलोमीटर दूर स्थित है। यहां के स्थानीय लोग मानते हैं कि इस झरने में प्राकृतिक स्वास्थवर्धक तत्व मिले हुए हैं। यह एक खूबसूरत बाग है जिसके बीच मे से झरना बह रहा है। 


Pari Mahal




Pari Mahal




यहां पर लोग कश्मीरी ड्रेस मे फोटो खिंचवा रहे थे। चश्मे शाही के गेट से ही दाईं ओर से परी महल को रास्ता जाता है। चश्मे शाही से लगभग 3 किलोमीटर दूर पहाड़ की चड़ाई पार करने के बाद परी महल बना हुआ है। इसका निर्माण मुग़ल शहज़ादे दारा शिकोह ने करवाया था। और यह बात बहुत कम लोग जानते होंगे कि मुग़ल शहज़ादे दाराशिकोह को सितारों और ग्रहों में बहुत दिलचस्पी थी। और यह स्मारक ज्योतिष और खगोल विज्ञान के स्कूल के लिए बनाया गया था। ऊंचाई पर बने होने के कारण इसका प्रयोग पूरे श्रीनगर पर नज़र रखने के लिए भी किया जाता था। यह दुर्ग 12 टेरेस मे बना हुआ ही। यहां से पूरी डल लेक दिखाई देती है।


Panoramic View of Dal Lake from Pari Mahal


परी महल से वापसी मे हम ने बटॅनिकल गार्डेन देखा। इस गार्डेन को हॉर्टिकल्चर डिपार्टमेंट ने बनवाया है। यहां पर आप बोटिंग भी कर सकते हैं। बच्चों के खेलने के लिए यहां झूले भी बनवाए गए हैं।
अभी दोपहर का समय हुआ है, चश्मे शाही, परी महल और बटॅनिकल गार्डेन एक दिशा मे ही पड़ते हैं और एक दूसरे से बहुत नज़दीक हैं। हम वापस डल झील पर आ गए हैं। यहां पर वॉटर स्पोर्ट्स की भी व्यवस्था है। आप डल झील मे वॉटर स्कूटर भी चला सकते हैं। यह राइड घाट से लेकर डल झील के बीच मे बने चार चिनार टापू तक की होती है। जिसके लिए हमने 600 रुपय अदा किए। हमारा अगला पड़ाव है निशात गार्डेन जिसे निशात बाग भी कहते हैं।


Nishat Bagh


 निशात बाग़ फ़ारसी का शब्द है जिसका अर्थ होता है, एक ऐसा बाग़ जहां जाकर ख़ुशी मिले, और वास्तविकता में भी वहां जाकर हमें ख़ुशी का अनुभव हुआ भी। इस बाग़ को मुग़ल मलिका नूर जहां के बड़े भाई अब्दुल हसन आसिफ खान ने सन् 1634 में मुग़ल बादशाह जहांगीर के काल में बनवाया था। निशात बाग़ देखने के लिए आपको टिकट लेना होगा। यहां पर स्थानीए लोगो की बहुत भीड़ है। कश्मीरी लोग गर्मियों के 6 महीनों को बहुत एंजाय करते हैं। सभी पिकनिक के मूड मे नज़र आते हैं। कश्मीरी लोग निशात गार्डेन मे बने बड़े-बड़े बग़ीचों मे पूरे परिवार के साथ पिकनिक माना रहे थे। कश्मीरी महिलाऐं अपने घरों से ही खाने पका कर लाई थीं और साथ ही स्टोव भी लाई थीं। जिन पर खाना गर्म करके खिलाया जा रहा था। 


Kashmiri girl@Nishat Bagh


बच्चे निशात बाग़ मे बनी नहरों मे पानी से खेल रहे थे। पानी के इन छोटे बड़े होज़ मे बच्चों को पानी से अटखेलियां करता देख कर मुझे अहसास हुआ कि यह तो उस ज़माने के वॉटर पार्क रहे होंगे। जिनको मुगलों ने अपने सैर सपाटे के लिए बनवाया होगा।
निशात बाग के नज़दीक ही एक शॉपिंग एरिया है जहां पर कश्मीरी हैंडीक्राफ्ट और खाने पीने की बहुत-सी दुकाने हैं।
अगर आप डल लेक मे सनसेट की तस्वीर लेना चाहते हैं तो निशात बाग़ के सामने बने घाट से शाम के वक़्त शिकारा राइड लें। यहां से सनसेट का नज़ारा बहुत खूबसूरत आता है।

इस वक़्त शाम होने को है और हमें अभी शालीमार गार्डेन भी देखना है। निशात गार्डेन से लगभग 4 किमी की दूरी पर शालीमार गार्डेन है। इस गार्डेन को मुग़ल बादशाह जहांगीर ने अपनी बेगम नूरजहां को खुश करने के लिए सन् 1619 में बनवाया था। यह भी एक टेरेस गार्डेन है जोकि पार्शियन वास्तुकला के हिसाब से बना हुआ है लेकिन इस गार्डन में सिर्फ तीन टेरेस हैं। शालीमार बाग़ को मुग़ल वास्तुकला का बेहतरीन नमूना कह सकते हैं। पहला गार्डन आम लोगों के लिए बनाया गया था। वहां पर एक संगेमरमर की ईमारत भी है जिसे दीवाने आम कहते हैं। इस गार्डन में भी बीच से नहर बह रही है। इसके ऊपर वाले टेरेस पर दीवाने खास है कहा जाता है की यहां तक सिर्फ ख़ास लोग ही जाया करते थे। तीसरे टेरेस के साथ ही जनानखाना लगा हुआ है। शाहजहां ने यहां एक काले मार्बल की बारादरी भी बनवाई थी। मैं जब बारादरी में पहुंची तो कहीं से बड़ी ही मीठी बांसुरी की आवाज़ आ रही थी। थोड़ा तलाशने पर पाया कि बारादरी के एक कोने में दो कश्मीरी युवक अपनी धुन में खोए बांसुरी के सुर छेड़ रहे हैं। यहां चारों तरफ चिनार के ऊंचे ऊंचे पेड़ हैं। 


Spring@Nishat Bagh



Shalimar Garden


कोई कोई पेड़ तो 400 साल पुराना है। इस बाग़ की ख़ूबसूरती शब्दों में ब्यान नहीं की जा सकती है। इस जगह की खूबसूरती को कैमरे में क़ैद करने के बाद भी मेरा मन कर रहा था कि काश के मैं इसका एक छोटा-सा टुकड़ा अपने साथ ले जा सकती। मैंने ज़मीं पर पड़े ज़र्द चिनार के पत्ते को उठा कर अपनी किताब में रख लिया और सोचा कि अपने साथ यहां की कुछ यादें तो मैं लेजा ही सकती हूं। शालीमार गार्डन के बाहर भी काफी सारी दुकानें हैं जहां से आप सोविनियर खरीद सकते हैं। मैंने भी पश्मीना की शॉल खरीदी जिस पर चिनार की पत्तियां बनी हुई थीं। 


Chinar leafs


आज का दिन मुग़लों वाले कश्मीर को देखने में कब गुज़र गया पता ही नहीं चला। पर यह तो कश्मीर का सिर्फ एक रंग है। अभी बहुत कुछ बाक़ी है। कल हम जाएंगे डाउन टाउन कश्मीर। हमारे देश में आए सूफ़ीज़्म की जड़ें तलाशने।

तब तक के लिए खुश रहिये, घूमते रहिये।

और ऐसे ही बने रहिये मेरे साथ.

आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त


डा० कायनात क़ाज़ी