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कुछ पंक्तियां इस ब्लॉग के बारे में :

प्रिय पाठक,
हिन्दी के प्रथम ट्रेवल फ़ोटोग्राफ़ी ब्लॉग पर आपका स्वागत है.….
ऐसा नहीं है कि हिन्दी में अच्छे ब्लॉग लिखने वालों की कमी है। हिन्दी में लोग एक से एक बेहतरीन ब्लॉग्स लिख रहे हैं। पर एक चीज़ की कमी अक्सर खलती है। जहां ब्लॉग पर अच्छा कन्टेन्ट है वहां एक अच्छी क्वालिटी की तस्वीर नहीं मिलती और जिन ब्लॉग्स पर अच्छी तस्वीरें होती हैं वहां कन्टेन्ट उतना अच्छा नहीं होता। मैं साहित्यकार के अलावा एक ट्रेवल राइटर और फोटोग्राफर हूँ। मैंने अपने इस ब्लॉग के ज़रिये इस दूरी को पाटने का प्रयास किया है। मेरा यह ब्लॉग हिन्दी का प्रथम ट्रेवल फ़ोटोग्राफ़ी ब्लॉग है। जहाँ आपको मिलेगी भारत के कुछ अनछुए पहलुओं, अनदेखे स्थानों की सविस्तार जानकारी और उन स्थानों से जुड़ी कुछ बेहतरीन तस्वीरें।
उम्मीद है, आप को मेरा यह प्रयास पसंद आएगा। आपकी प्रतिक्रियाओं की मुझे प्रतीक्षा रहेगी।
आपके कमेन्ट मुझे इस ब्लॉग को और बेहतर बनाने की प्रेरणा देंगे।

मंगल मृदुल कामनाओं सहित
आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त

डा० कायनात क़ाज़ी

Sunday, 21 February 2016

रोमांच और प्रकृति से जुड़ें -गिरी कैम्प सोलन, हिमाचल प्रदेश

Giri camp

शहरी भाग दौड़ से भरी ज़िन्दगी में अगर बोरियत आ घेरे तो उसे दूर करने का सबसे सरल उपाय है कि कुछ दिन प्रकृति की गोद में गुज़ारे जाएं। जहां न कोई ऑफिस का ईमेल करने  की चिंता हो और न ही फेसबुक पर अपडेट करने की बेचैनी। एक ऐसी जगह जहां फ़ोन भी सिर्फ़ ज़रूरत भर का काम करे। कहते हैं इतने सारे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से घिरे रहने के कारण हमारे अंदर की जो Biological clock है, वह गड़बड़ा जाती है। उसे वापस से ठीक चलाने के लिए दो दिन का प्रकृति का सानिध्य काफ़ी होता है।

 जब मुझे मौक़ा मिला गिरी कैम्प जाने का तो मैंने भी अपनी Biological clock को फिर से सुचारू करने की ठान ली। और निकल पड़ी हिमाचल के ऊँचे नीचे घुमावदार पहाड़ी रास्तों पर।


Giri camp

 गिरी कैम्प हिमाचल के सोलन जिले में पड़ता है। दिल्ली से चंडीगढ़ और चंडीगढ़ से हिमालयन एक्सप्रेस वे से होते हुए सोलन पहुंचा जा सकता है। सोलन के बाद से ही इस यात्रा का असल रोमांच शुरू होता है। सोलन से राजगढ़  रोड पर बीस किलोमीटर चलने के बाद लगभग 12 किलोमीटर का कच्चा पहाड़ी रास्ता शुरू होता है  और आगे जाकर गिरी नदी की तलहटी से जा मिलता है। यहाँ आकर कच्ची रोड भी समाप्त हो जाती है  और असल ट्रेकिंग शुरू होती है। नदी के सहारे सहारे हम लगभग 2-3 किलोमीटर तक चलते हैं और फिर एक ऐसी जगह पहुँचते हैं जहाँ पर कच्ची सड़क भी समाप्त हो जाती है। 
अब?

Adventure activity @ Giri Camp

Try hands on target@ Giri Camp

हम सब हैरान और थके हुए एक दूसरे की शकल देखते हैं। हमें रिसीव करने आए गिरी कैम्प के एक कर्मचारी के चेहरे पर शांत मुस्कान तिरती चली जाती है। नदी के एक किनारे हम खड़े हैं और नदी के दूसरी ओर गिरी कैम्प दिखाई देता है। कैम्प के बाहर अनुराग  जी, (कैम्प के मालिक ) हमारी अगवानी में खड़े हैं और हमारी ओर हाथ हिला कर हमारा स्वागत कर रहे हैं।
 मैंने पूछा -नाव कहाँ है ?
उसने कहा -नाव नहीं है।
 फिर ?
हम नदी को पार कैसे करेंगे ?
एक दूसरे का हाथ थाम कर -उसने कहा।
 आप घबराएं नहीं, यह नदी बहुत शांत है।
 और फिर हम हैं न....
Have fun in the water of Giri river

डर और रोमांच की एक लहर हम सब को हैरान कर गई थी। हम में से किसी ने भी ऐसा पहले कभी नहीं किया था। हमने बड़ी मुश्किल से अपने डर पर काबू पाया और नदी पार करने का फैसला किया। उन हिमाचली लड़कों की बात में जो विश्वास था हमने उसे सच माना और एक दूसरे का हाथ थामे पानी में उतरने लगे। 
पानी ठण्डा जैसे बर्फ!!!
 एक सरसराहट करंट की तरह दौड़ गई। हम सब हंस रहे थे। शायद अपने डर को काबू करने की कोशिश कर रहे थे। हर अगले क़दम पर पानी गहरा और गहरा हो रहा था। नदी के बींचों-बीच पानी मेरी कमर से ऊपर आ चुका था। हमने संभल-संभल कर क़दम बढ़ाए और  बड़ी आसानी से नदी पार की।
 किनारे तक पहुँचते-पहुँचते जिस पानी को देख कर डर लग रहा था उस पानी से थोड़ी जान-पहचान बन गई थी। गिरी कैम्प में तीन कॉटेज  और अनेक टेन्ट थे।
Play games@ Giri Camp

हरी घांस के मैदान पर  लाल रंग के सजीले छोटे-छोटे कैम्प किसी जंगली फूल की तरह बहुत सुन्दर दिख रहे थे।
 यह जगह बहुत सुन्दर है। नदी के किनारे थोड़ा  ऊंचाई पर बना गिरी कैम्प और उसके चारों ओर देवदार के पेड़ों से ढंके पहाड़ों की ऊँची ऊँची चोटियां।

Swim in the transparent water of Giri river
हमने दो दिन खुले आकाश तले  कैम्प में गुज़ारे। जिस नदी के बहाव को देख कर हम थोड़ा डर रहे थे, उसी नदी में हमने सारा समय गुज़ारा। कई वाटर स्पोर्ट्स खेले। यह नदी इतनी शांत है कि बच्चे भी स्विमिंग का मज़ा ले सकते हैं। 
Sing your favourite song at bonfire 

गिरी कैम्प के मालिक एक अच्छे होस्ट हैं और अतिथियोँ के  स्वागत में कोई कसर नहीं छोड़ते। फिर वह स्वादिष्ट खाना हो या चांदनी रात में बॉन फायर का इंतिज़ाम। यहाँ  आपके मनोरंजन का पूरा ध्यान रखा गया  है। गिरी कैम्प के छोटे से बगीचे में कई अमरूद के पेड़ हैं।  खूब मीठे फल आते हैं। आप मज़े से मीठे-मीठे अमरुद पेड़ से तोड़  कर खा सकते हैं। 
क्यूंकि यहाँ सब कुछ प्रकृति के अनुरूप है इसलिए बहुत लग्ज़री की उम्मीद साथ लेकर न जाएं।
 वैसे तो यहाँ वेस्टर्न स्टाइल के बाथरूम्स बने हुए हैं पर नदी का साफ चमचमाता पानी आपको नदी में स्नान करने के लिए खींच ही लेगा। हमारे देश में इतनी साफ़ और स्वच्छ नदियां बची ही कहाँ हैं। जिनका पानी शीशे की तरह साफ़ हो। आप घंटों बैठ कर इस नदी के प्रवाह को देख सकते हैं। कल कल करती इसके पानी की आवाज़ें आपका दिन बना देंगीं। 

Try your hands on small raft@ Giri Camp
यहाँ पास ही जंगल में ट्रैक करके कई वाटरफॉल्स भी देखे जा सकते हैं। प्रकृति के नज़दीक बिताये यह दो दिन आपको हमेशा याद रहेंगे।

KK@Giri camp
फिर मिलेंगे दोस्तोंअगले पड़ाव में हिमालय के 

कुछ अनछुए पहलुओं के साथ,

तब तक खुश रहिये, और घूमते रहिये,

आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त

डा० कायनात क़ाज़ी


Wednesday, 17 February 2016

एक सुहाना सफर एप्पल वैली के बीच से

एक सुहाना सफर एप्पल वैली के बीच से 



कश्मीर की एक ख़ासियत है। आप श्रीनगर से किसी भी दिशा में निकल जाएं कुदरत के हसीन नज़ारे बाहें फैलाए आपका स्वागत करेंगे। जो भी लोग कश्मीर घूमने आते हैं वह श्रीनगर के बाद पहलगाम देखने भी ज़रूर जाते हैं। पहलगाम अनंतनाग ज़िले में पड़ता है। यह स्थान समुद्र तल से 72,000 फिट की ऊंचाई पर बसा है। श्रीनगर से पहलगाम जाने के दो रास्ते हैं। एक रास्ता (National Highway-1A) झेलम नदी के किनारे किनारे चलता है और पम्पोर में केसर के खेतों के बीच  से होता हुआ अवन्तिपुरा के खंडहरों के पास से होकर पहलगाम जाता है । दूसरा रास्ता काकपोरा होते हुए जाता है। मेरी सलाह यह है कि आप जाते हुए पम्पोर वाले रास्ते से जाएं और वापसी में मटटन होते हुए श्रीनगर आएं। ऐसा करने से आप जाते हुए अवन्तिपुरा और एप्पल वैली देख पाएंगे और लौटे हुए मटटन का मार्तण्ड़ सूर्य मन्दिर भी देख सकेंगे। श्रीनगर और पहलगाम के बीच भी कई सारे ऐसे स्थान हैं जिन्हे कुछ देर ठहर कर देखा जा सकता है। आप कोशिश करें कि श्रीनगर से सुबह जल्दी निकलें। वरना आपका काफी समय ट्रैफिक में निकल जाएगा। 



श्रीनगर की भीड़ भाड़ से निकल कर जैसे ही आप अनंतनाग की ओर बढ़ेंगे आपको दूर दूर तक फैले ढ़ालदार खेत नज़र आएंगे। अगर आप फ़रवरी के माह में जाएंगे तो इन खेतों में केसर के सजीले जमुनी फूल दिखेंगे, और साथ ही दिखेंगे खेतों में काम करते हुए कश्मीरी किसानों के परिवार। लेकिन आप अगर गर्मी के मौसम में जा रहे हैं तो यहां सिर्फ खेत ही नज़र आएंगे। 
हम धीरे धीरे आगे बढ़ते हैं. पाइन के ऊँचे ऊँचे पेड़ों से हवा के झोंके भीनी भीनी खुशबू लेकर आते हैं। लगभग तीस किलोमीटर की दूरी पर अवन्तिपुरा मंदिर के अवशेष पड़ते हैं। इस मंदिर का निर्माण राजा अवन्ति वर्मन ने सन् 855 से 883 ईस्वीं में करवाया था। राजा अवन्ति वर्मन का सम्बन्ध उत्पला राजवंश से था। 


यह एक विशाल शिव मंदिर है। लेकिन अब यह सिर्फ अवशेष रूप में ही बचा है। पुरातत्व विभाग ने यहाँ बने एक छोटे से पार्क का रखरखाव का ज़िम्मा लिया हुआ है। इस स्थान को देखने के लिए आपको 5 रूपए का टिकट भी लेना होगा। 
यहां से थोड़ा आगे जाने पर हम National Highway-1A छोड़ देंगे और एप्पल वैली की और मुड़ जाएंगे। यहां से शुरू होती है कश्मीर की कंट्री साईट। खेत खलिहानो में लहलहाते धान के पौधे और लकड़ी के बने घर।  यहां थोड़ा आगे जाने पर झींगुर की आवाज़ें सन्नाटे को तोड़ती हैं। यह आवाज़ें पहचान है अखरोट और एप्पल के बाग़ों की। 


यहाँ सड़क के दोनों और सेब के बाग़ हैं। यह पूरा क्षेत्र सेब की खेती के लिए जाना जाता है। आप गाड़ी रोक कर इन बाग़ों में जा भी सकते हैं। लेकिन सेब तोड़ नहीं सकते। इसके लिए जुर्माना भरना पड़ेगा। सेबों से लधे हुए पेड़ देखने में बहुत सुन्दर दीखते हैं। आप चाहें तो घर लेजाने के लिए यहां से सेब खरीद भी सकते हैं। 


हमने काफी समय यहाँ बिताया और फिर पहलगाम के लिए आगे बढ़ गए। सड़क के चारों ओर अखरोट के पेड़ किसी मुस्तैद प्रहरी की तरह खड़े थे। हम एक के बाद एक गांव लांघते हुए पहलगाम की ओर बढ़ रहे थे। जहां अवन्तीपुरा तक झेलम नदी हमारे साथ साथ चल रही थी वहीँ पहलगाम पहुँचने पर लिद्दर नदी ने हमारा स्वागत किया। 


फिर मिलेंगे दोस्तों, भारत दर्शन में हिमालय के किसी नए रंग के साथ,


तब तक खुश रहिये,और घूमते रहिये,

एक शेर मेरे जैसे घुमक्कड़ों को समर्पित

 "सैर कर दुनियाँ की ग़ाफ़िल ज़िन्दिगानी फिर कहाँ,
ज़िन्दिगानी गर रही तो नौजवानी फिर कहाँ"

आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त

 डा० कायनात क़ाज़ी