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कुछ पंक्तियां इस ब्लॉग के बारे में :

प्रिय पाठक,
हिन्दी के प्रथम ट्रेवल फ़ोटोग्राफ़ी ब्लॉग पर आपका स्वागत है.….
ऐसा नहीं है कि हिन्दी में अच्छे ब्लॉग लिखने वालों की कमी है। हिन्दी में लोग एक से एक बेहतरीन ब्लॉग्स लिख रहे हैं। पर एक चीज़ की कमी अक्सर खलती है। जहां ब्लॉग पर अच्छा कन्टेन्ट है वहां एक अच्छी क्वालिटी की तस्वीर नहीं मिलती और जिन ब्लॉग्स पर अच्छी तस्वीरें होती हैं वहां कन्टेन्ट उतना अच्छा नहीं होता। मैं साहित्यकार के अलावा एक ट्रेवल राइटर और फोटोग्राफर हूँ। मैंने अपने इस ब्लॉग के ज़रिये इस दूरी को पाटने का प्रयास किया है। मेरा यह ब्लॉग हिन्दी का प्रथम ट्रेवल फ़ोटोग्राफ़ी ब्लॉग है। जहाँ आपको मिलेगी भारत के कुछ अनछुए पहलुओं, अनदेखे स्थानों की सविस्तार जानकारी और उन स्थानों से जुड़ी कुछ बेहतरीन तस्वीरें।
उम्मीद है, आप को मेरा यह प्रयास पसंद आएगा। आपकी प्रतिक्रियाओं की मुझे प्रतीक्षा रहेगी।
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डा० कायनात क़ाज़ी

Thursday 8 December 2016

कुम्भलगढ़ फेस्टिवल की छटा है निराली

कुम्भलगढ़ फेस्टिवल की छटा है निराली



Gair Dance at Kumbhalgarh Festival
सच कहूँ तो पहले कभी सुना नही था मैंने यह नाम। कुम्भलगढ़ को जानती ज़रूर थी लेकिन उसके विशालतम दुर्ग के लिए न कि फेस्टिवल के लिए, और इतना जानती थी कि ग्रेट वाल ऑफ़ इंडिया भी यहीं है।  राजस्थान टूरिज़्म की तरफ से जब न्योता आया तो जिज्ञासा हुई कि कैसा होगा यह फेस्टिवल।  हमेशा की तरह गूगल पर जाकर जानकारी जुटाने की कोशिश की। पर बहुत कुछ हाथ नही लगा। यू टयूब पर एक वीडियो देखकर तो सोच में पड़ गई की जाऊं कि न जाऊं। सच कहूं तो वीडियो देखकर कुछ ख़ास नही लगा था। ट्रैवेलर का पहला उसूल याद किया कि जब तक मैं अपनी आँखों से न देख लूँ तब तक भरोसा नही करूंगी। इसलिया फ़ैसला किया कि खुद जाकर देखूंगी।  वसे भी कुम्भलगढ़ जाना मेरी विशलिस्ट मे पहले से था। तो क्यों न फेस्टिवल के वक़्त जाया जाए।


Dafli dance at Kumbhalgarh Festival
कुम्भलगढ़ जाना जाता है अपनी सबसे लम्बी दीवार के लिए। पूरी दुनिया मे चीन की ग्रेट वॉल ऑफ चायना के बाद यह दीवार अपनी लंबाई के लिए मशहूर है। और यह क़िला इसलिए मशहूर है कि यह अजय है, अभेद है। इस दुर्ग को आज तक कोई भी जीत नही पाया है। इसके बनाना वालों ने इसे बड़ी होशयारी से बनाया है। सामरिक द्रष्टि से यह दुर्ग बहुत ही महत्वपूर्ण है।  इस दुर्ग के बारे मे बहुत कुछ है बताने को इसलिए दुर्ग की दास्तान अगली पोस्ट मे बताऊंगी। फिलहाल हम बात करेंगे कुम्भलगढ़ फेस्टिवल की।

उदयपुर तक मैं फ्लाइट से पहुँची और वहाँ से आगे रोड ट्रिप। उदयपुर से निकलते ही खूबसूरत पहाड़ी रास्ता शुरू हो जाता है। हमारे दोनो ओर अरावली पर्वत की श्रंखला चलती है। उदयपुर से जुड़ा अरावली का यह हिस्सा बहुत खूबसूरत है। अरावली पर्वत श्रंखला उत्तर मे पड़ने वाली एक लंबी श्रंखला है जोकि दिल्ली मे रायसीना हिल्स से शुरू होकर हरयाणा, राजस्थान और गुजरात तक जाती है। इन हरे भरे पहाड़ों को देख कर कोई नही कहेगा कि हम राजस्थान मे हैं।



 A dancer performing Chakri dance at Kumbhalgarh Festival
उदयपुर से लगभग तीन घंटों मे हम कुम्भलगढ़ पहुँचते हैं। कुम्भलगढ़ पहाड़ों के बीच बसा एक ऐसा स्थान है कि जहाँ एक इतना बड़ा दुर्ग भी हो सकता है इसका अंदाज़ा भी नही लगाया जा सकता। राणा कुम्भा ने इस दुर्ग का निर्माण करवाया। राणा कुम्भा के नाम पर ही इस दुर्ग का नाम पड़ा। महाराणा प्रताप की जन्मस्थली भी यही अभेद दुर्ग है। इस दुर्ग ने कई राजाओं का समय देखा।

कुम्भलगढ़ पहुंचते पहुँचते शाम घिर आई थी। शाम को कुम्भलगढ़ फेस्टिवल के अंदर सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। यह कार्यक्रम कुम्भलगढ़ फ़ोर्ट के प्रांगण मे ही होता है। हमने फ्रेश हो कर फ़ोर्ट का रुख़ किया। राणा कुम्भा कला और संगीत के प्रेमी थे, उन्ही की याद मे यहाँ कुम्भलगढ़ फेस्टिवल मनाया जाता है। राजस्थान के कोने कोने से का कलाकारों को बुलाया जाता है। कुम्भलगढ़ फ़ोर्ट ऊंची पहाड़ी पर बना है। जब तक हम फ़ोर्ट के बिल्कुल क़रीब नही पहुँच गए फ़ोर्ट दिखाई ही नही दिया। और पास आते ही पीली रोशनी मे जगमगाते फ़ोर्ट की लंबी दीवार नज़र आने लगी। सोने सी पीली चमक मे दूर तक नज़र आती दीवार ने मेरे क़दम वहीं रोक लिए। यह लंबी दिवार ही कुम्भलगढ़ की पहचान है।



 Kumbhalgarh Fort-The grate wall of India-World Heritage site by UNESCO
विशाल दुर्ग अपनी पूरी शान के साथ खड़ा हुआ था। और उस दुर्ग के चारों ओर लागभग 36 किलोमीटेर की लंबी दीवार खड़ी थी।  मैने कुछ तस्वीरें क्लिक की और दुर्ग के सदर दरवाज़े से प्रवेश किया।

अंदर वाक़ई उत्सव का माहौल था। फूलों से सजावट की गई थी। यज्ञशाला के सामने प्रांगण मे लोक कलाकार अपनी कलाओं का प्रदर्शन कर रहे थे।  काले कपड़ों मे नृत्य करने वाली काल्बेलिया डान्सर्स, रंग बिरंगी पोशाक मे चकरी नृत्य करने वाली महिलाएँ। भील जनजाति द्वारा प्रस्तुत नृत्य, झालोर से आए बड़ी-बड़ी ढ़पली बजाने वाला समूह। घूमर नृत्य, घेरदार लाल पोशाक और लाठी के साथ गैर नृत्य करते भील जनजाति के लोग।


अलग अलग रूपों मे सजे बहुरुपीए। कोई रावन बना हुआ था तो कोई विष्णु का अवतार।  रावन के अट्टहास को देख बच्चे भी एक बार को सहेम गए। दस सिरों वाले लंकापति रावन का रोब देखने वाला था।

राजस्थान के दूर दराज़ के क्षेत्रों शेत्रों से आए आदिवासियों के नृत्य मे प्रकृति प्रेम दूर से ही झलकता है।  शरीर पर पैंट किए, सिर पर मोरपंखी मुकुट पहने यह आदिवासी विभिन्न मुद्राओं से जंगल और वहाँ के जीवन की मनोरम छटा बिखेर रहे थे। कच्ची घोड़ी यहाँ का प्रसिद्ध नृत्य है जोकि शादियों के समय में किया जाता है। इस नृत्य का संबंध शेखावटी क्षेत्र से है।

इन सब को देखने आस पास के गाँवों से महिलाएँ बच्चे बड़ी संख्या मे जुटते हैं। राजस्थान टूरिज़्म इस अवसर पर अपने प्रदेश की लोक संस्कृति से रूबरू करवाने मे कोई कसर बाक़ी नही रखता। यहाँ पगड़ी बाँधने की प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है।

रंग बिरंगे साफे सब प्रतिभागियों को दिए जाते हैं।  प्रतियोगिता से पहले उन्हें डेमो भी दिया जाता है, कि किस प्रकार साफा बंधा जाता है। उसके बाद पुरुष और महिलाओं मे साफा बाँधने की प्रतियोगिता का आयोजन होता है।राजस्थानी पगड़ी कैसे बांधी  जाती है इसके लिए विडियो आपके लिए।  इस प्रतियोगिता मे एक विजेता पुरुषों मे से और एक विजेता महिलाओं मे से चुना जाता है।

नेपथ्य मे विशाल दुर्ग और नीला खुला आसमान इस रंगारंग उत्सव का साक्षी बनता है। और इस तरह तीन दिनो तक राजस्थान की कला और लोक संस्कृति की झलक नज़दीक से देखने को मिलती है।  दिन भर चलने वाले यह कार्यक्रम शाम होने तक ख़त्म हो जाते हैं और लोग शाम को होने वाले प्रोग्रामों की तैयारी मे लग जाते हैं।


शाम को ठंडी ठंडी हवाओं के बीच यज्ञशाला के पिछले हिस्से मे एक ऊंचे स्टेज पर संस्कृति कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। पहले दिन प्रसिद्ध लोक गायक चुग्गे ख़ान साहब ने राजस्थानी मिट्टी की खुश्बू से सराबोर लोक गीतों से मन मोह लिया। उन्हें सुनने सैलानी तो मौजूद थे ही साथ ही आस पास के गाँवों से आई पारंपरिक पोशाकों मे सजी महिलाएँ भी बड़ी संख्या मे उपस्थित थी,और घूँघट के पीछे होने के बावजूद ये महिलाएँ न सिर्फ़ संगीत का आनंद ले रही थीं बल्कि चुग्गे ख़ान साहब से फरमाइशी गीत भी सुनने का आग्रह कर रही थीं। यह मंज़र देखने लायक़ था। चुग्गे ख़ान साहिब का संबंध राजस्थान के लोक गायक समुदाय माँगनियार से है। इनका सूफ़ी कलाम दिल को छू लेने वाला होता है। धवल चाँदनी रात मे खुले आकाश तले चुग्गे ख़ान साहब के गीतों को सुनते हुए शाम कैसे बीत गई पता ही नही चला।


 dance performance at Kumbhalgarh Festival
 अगले तीन दिनो तक यह सिलसिला चलता रहा। दिन के समय लोक नृत्य और रात के समय लोक गीतों और नृत्य नाटिका का आयोजन। अरावली पर्वत श्रंखला के बीच स्थित कुम्भलगढ़ के क़िले मे यह आयोजन किसी नगीने जैसा है। इसके बारे मे बहुत ज़्यादा लोग नही जानते लेकिन जो इसे अनुभव कर लेते हैं वो इसे भूल नही पाते। राजस्थान टूरिज़्म  इस कार्यक्रम का आयोजन करता है। वैसे तो मैंने बहुत सारे फेस्टिवल और महोत्सव देखे हैं लेकिन मुझे कुम्भलगढ़ फेस्टिवल इसलिए बहुत पसंद आया क्योंकि यह लोगों के द्वारा और लोगों के लिए आयोजित किया जाता है। यहाँ आम आदमी ही ख़ास है।

वो भीड़ का हिस्सा नहीं बल्कि सम्मानित अतिथि है। इसीलिए यहाँ गांवों से महिलाऐं, बच्चे बड़ी तादाद में आते हैं। शुक्र है कोई तो जगह ऐसी है जहाँ चीजें अपना उद्देश्य नहीं खो रही हैं। यहाँ हर रोज़ शाम को सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। नेपथ्य में पीली रोशनियों में जगमगाता कुम्भलगढ़ का दुर्ग और ऊँचे स्टेज पर परफॉर्म करते कलाकार, समां बांध लेते हैं।

 Contemporary dance performance at Kumbhalgarh Festival

इन कार्यक्रमों को देखने के बाद मैं यह दावे के साथ कह सकती हूँ कि आप जोधपुर में होने वाले राजस्थान इंटरनेशनल फोक फेस्टिवल RIFF को भूल जाएंगे। बस फ़र्क़ इतना है कि कुम्भलगढ़ फेस्टिवल राजस्थान इंटरनेशनल फोक फेस्टिवल (RIFF रिफ्फ़) जितना महँगा और आम आदमी की पहुँच से दूर नहीं है।

 A performer playing with fire at Kumbhalgarh Festival

यह मंच हर प्रकार के कलाकारों को अवसर देता है। फिर चाहे वो आग से कलाबाज़ियां हों या फिर क्लासिकल डांस फॉर्म्स के साथ कॉन्टेम्पोररी डांस ड्रामा का फ्यूज़न।

कैसे पहुंचे कुम्भलगढ़ 

कुम्भलगढ़ राजस्थान के राजसमंद ज़िले में पड़ता है। कुम्भलगढ़ सड़क, रेल और हवाई मार्ग से जुड़ा हुआ है।

हवाई यात्रा:

कुम्भलगढ़ लिए नज़दीकी एयरपोर्ट उदयपुर है जोकि कुम्भलगढ़ से 85 किमी दूर है।

रेल यात्रा:

कुम्भलगढ़ के लिए नज़दीकी रेलवे स्टेशन फालना है जोकि 80 किमी दूर है और उदयपुर रेलवे स्टेशन 88 किमी दूर है।

सड़क यात्रा:

कुम्भलगढ़ पहुँचने के लिए राजस्थान रोडवेज की बसों के अलावा टैक्सी भी ली जा सकती है।

कब जाएं?

कुम्भलगढ़ फेस्टिवल हर साल राजस्थान टूरिज़्म द्वारा आयोजित किया जाता है। यह नवम्बर माह में आयोजित किया जाता है। डेट्स के लिए राजस्थान टूरिज़्म की वेबसाइट चेक करके जाएं।


फिर मिलेंगे दोस्तों, भारत दर्शन में किसी नए शहर की यात्रा पर, तब तक खुश रहिये, और घूमते रहिये,

आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त

डा० कायनात क़ाज़ी

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