गुजरात से लाइव: कहानी नमक की....
हम जैसे-जैसे कच्छ की और बढ़ रहे हैं हवा में नमक की मौजूदगी महसूस होने लगी है। हम समुन्दर से बहुत दूर नहीं हैं। हमारे उलटे हाथ की तरफ कुछ मीलों के फासले पर समुद्री रेखा शुरू होती है। सड़क के आस पास नमक के मैदान दिखने लगे हैं जहाँ बड़ी-बड़ी क्यारियां बना कर उनमे पानी को सुखाया जा रहा है। ये बड़ी प्राचीन पद्धति है। भारत को ऐसे ही नहीं दुनिया का तीसरे नंबर का नमक के उत्पादन में अग्रणी माना जाता। यहाँ की भूमि में नमक की मात्रा की अधिकता होती है इसीलिए कुछ और पैदा नहीं हो सकता। यहाँ के किसानों ने इसका तोड़ निकल और नमक की ही खेती करनी शुरू कर दी। लिटिल रण ऑफ़ कच्छ में एक जगह है जिसे खारा घोड़ा कहा जाता है। यह गुजरात के सुरेन्द्रनगर ज़िले में आता है।
यहाँ अंग्रेजों ने नमक का उत्पादन शुरू किया जिसे बाद में हिंदुस्तान साल्ट लिमिटेड ने आगे बढ़ाया। यहाँ 23,000 हज़ार एकड़ में नमक का उत्पादन किया जाता है। जबकि इस छोटे से गांव की जनसंख्या केवल 10 हज़ार है। पूरा का पूरा गांव नमक के काम में लगा हुआ है। इस गांव में ब्रिटिश साम्राज्य के कुछ अंश अभी भी दिखाई देते हैं। जैसे भारत का पहला शॉपिंग मॉल यहीं बना। सन् 1905 में सर बुल्कले ने इस मॉल को बनवाया। आज भी यहाँ 8-10 दुकाने बाकी हैं जो कि गांववालों की ज़रूरत की चीजों की पूर्ति एक ही छत के नीचे करती हैं।
मुझे गांव कुछ ख़ाली-ख़ाली सा लगा मालूम किया तो पता चला की सभी लोग पास ही बनी साल्ट फैक्ट्री में काम करने गए हुए हैं। हम ने नमक की फैक्ट्री का रुख किया। हम जैसे जैसे आगे बढ़ते जा रहे थे हमें नमक के ऊँचे ऊँचे ढ़ेर दिखने लगे थे। यह ढ़ेर सफ़ेद और भूरे रंग के थे।
खेतों में पानी को जमा करके उस पानी को धुप से प्राकृतिक तरीके से सुखाने जाता है। जब पानी वाष्प बन कर उड़ जाता है तो ऊपर ऊपर नमक की एक मोटी परत बन जाती है जिसे सावधानी से उठा लिया जाता है। खेतों से जमा किया यह नमक यहाँ फैक्ट्री में लाकर ऊँचे ऊँचे ढ़ेरों में जमा किया जाता है जिसे कुछ दिन के लिए ऐसे ही छोड़ दिया जाता है।
बाद में जेसीबी की मदद से यह नमक, जिसमे की अभी बड़ी मात्रा में मिट्टी के अंश मौजूद हैं को फैक्ट्री के अंदर प्रोसेसिंग के लिए लेकर जाया जाता है। जहाँ मशीनों से नमक की धुलाई होती है और उस में से अशुद्धियों को निकाला जाता है।
नमक साफ़ होने के बाद यह अंदर एक बड़े हॉल में पैकिंग के लिए पहुँचता है जहाँ पर बहुत सारे लोग बैठ कर मेनुअल तरीके से इसकी पैकिंग करते हैं। यहाँ पुरा का पूरा परिवार पैकिंग के काम में लगा होता है।
तो क्यों दोस्तों है न मज़ेदार नमक की कहानी।
फिर मिलेंगे दोस्तों, भारत दर्शन में किसी नए शहर की यात्रा पर, तब तक खुश रहिये, और घूमते रहिये,
आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त
डा० कायनात क़ाज़ी
हम जैसे-जैसे कच्छ की और बढ़ रहे हैं हवा में नमक की मौजूदगी महसूस होने लगी है। हम समुन्दर से बहुत दूर नहीं हैं। हमारे उलटे हाथ की तरफ कुछ मीलों के फासले पर समुद्री रेखा शुरू होती है। सड़क के आस पास नमक के मैदान दिखने लगे हैं जहाँ बड़ी-बड़ी क्यारियां बना कर उनमे पानी को सुखाया जा रहा है। ये बड़ी प्राचीन पद्धति है। भारत को ऐसे ही नहीं दुनिया का तीसरे नंबर का नमक के उत्पादन में अग्रणी माना जाता। यहाँ की भूमि में नमक की मात्रा की अधिकता होती है इसीलिए कुछ और पैदा नहीं हो सकता। यहाँ के किसानों ने इसका तोड़ निकल और नमक की ही खेती करनी शुरू कर दी। लिटिल रण ऑफ़ कच्छ में एक जगह है जिसे खारा घोड़ा कहा जाता है। यह गुजरात के सुरेन्द्रनगर ज़िले में आता है।
यहाँ अंग्रेजों ने नमक का उत्पादन शुरू किया जिसे बाद में हिंदुस्तान साल्ट लिमिटेड ने आगे बढ़ाया। यहाँ 23,000 हज़ार एकड़ में नमक का उत्पादन किया जाता है। जबकि इस छोटे से गांव की जनसंख्या केवल 10 हज़ार है। पूरा का पूरा गांव नमक के काम में लगा हुआ है। इस गांव में ब्रिटिश साम्राज्य के कुछ अंश अभी भी दिखाई देते हैं। जैसे भारत का पहला शॉपिंग मॉल यहीं बना। सन् 1905 में सर बुल्कले ने इस मॉल को बनवाया। आज भी यहाँ 8-10 दुकाने बाकी हैं जो कि गांववालों की ज़रूरत की चीजों की पूर्ति एक ही छत के नीचे करती हैं।
मुझे गांव कुछ ख़ाली-ख़ाली सा लगा मालूम किया तो पता चला की सभी लोग पास ही बनी साल्ट फैक्ट्री में काम करने गए हुए हैं। हम ने नमक की फैक्ट्री का रुख किया। हम जैसे जैसे आगे बढ़ते जा रहे थे हमें नमक के ऊँचे ऊँचे ढ़ेर दिखने लगे थे। यह ढ़ेर सफ़ेद और भूरे रंग के थे।
खेतों में पानी को जमा करके उस पानी को धुप से प्राकृतिक तरीके से सुखाने जाता है। जब पानी वाष्प बन कर उड़ जाता है तो ऊपर ऊपर नमक की एक मोटी परत बन जाती है जिसे सावधानी से उठा लिया जाता है। खेतों से जमा किया यह नमक यहाँ फैक्ट्री में लाकर ऊँचे ऊँचे ढ़ेरों में जमा किया जाता है जिसे कुछ दिन के लिए ऐसे ही छोड़ दिया जाता है।
बाद में जेसीबी की मदद से यह नमक, जिसमे की अभी बड़ी मात्रा में मिट्टी के अंश मौजूद हैं को फैक्ट्री के अंदर प्रोसेसिंग के लिए लेकर जाया जाता है। जहाँ मशीनों से नमक की धुलाई होती है और उस में से अशुद्धियों को निकाला जाता है।
नमक साफ़ होने के बाद यह अंदर एक बड़े हॉल में पैकिंग के लिए पहुँचता है जहाँ पर बहुत सारे लोग बैठ कर मेनुअल तरीके से इसकी पैकिंग करते हैं। यहाँ पुरा का पूरा परिवार पैकिंग के काम में लगा होता है।
तो क्यों दोस्तों है न मज़ेदार नमक की कहानी।
फिर मिलेंगे दोस्तों, भारत दर्शन में किसी नए शहर की यात्रा पर, तब तक खुश रहिये, और घूमते रहिये,
आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त
डा० कायनात क़ाज़ी
वाकई नमक का सैरनामा अद्भुत है... शुक्रिया
ReplyDeleteशुक्रिया प्रशांत जी।
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