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कुछ पंक्तियां इस ब्लॉग के बारे में :

प्रिय पाठक,
हिन्दी के प्रथम ट्रेवल फ़ोटोग्राफ़ी ब्लॉग पर आपका स्वागत है.….
ऐसा नहीं है कि हिन्दी में अच्छे ब्लॉग लिखने वालों की कमी है। हिन्दी में लोग एक से एक बेहतरीन ब्लॉग्स लिख रहे हैं। पर एक चीज़ की कमी अक्सर खलती है। जहां ब्लॉग पर अच्छा कन्टेन्ट है वहां एक अच्छी क्वालिटी की तस्वीर नहीं मिलती और जिन ब्लॉग्स पर अच्छी तस्वीरें होती हैं वहां कन्टेन्ट उतना अच्छा नहीं होता। मैं साहित्यकार के अलावा एक ट्रेवल राइटर और फोटोग्राफर हूँ। मैंने अपने इस ब्लॉग के ज़रिये इस दूरी को पाटने का प्रयास किया है। मेरा यह ब्लॉग हिन्दी का प्रथम ट्रेवल फ़ोटोग्राफ़ी ब्लॉग है। जहाँ आपको मिलेगी भारत के कुछ अनछुए पहलुओं, अनदेखे स्थानों की सविस्तार जानकारी और उन स्थानों से जुड़ी कुछ बेहतरीन तस्वीरें।
उम्मीद है, आप को मेरा यह प्रयास पसंद आएगा। आपकी प्रतिक्रियाओं की मुझे प्रतीक्षा रहेगी।
आपके कमेन्ट मुझे इस ब्लॉग को और बेहतर बनाने की प्रेरणा देंगे।

मंगल मृदुल कामनाओं सहित
आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त

डा० कायनात क़ाज़ी

Wednesday, 28 October 2015

हिंदुस्तान का दिल देखो कैरावैन के साथ.…



Caravan from outside


इतने वर्षों की मेरी यात्राओं के दौरान एक कमी जो मैंने हमेशा महसूस की है वह है-पाबन्दी की। कहीं से जल्दी निकलने की और कहीं पर जल्दी पहुंचने की। 
 मैने खुद से यह सवाल बार-बार किया है कि हम सब आख़िर घूमने क्यों जाते हैंऐसा क्या मिलता है कहीं घूमने जाने मे, जो आपको अपने घर मे, अपने शहर मे नही मिलता। बहुत सोचने के बाद मैने यह पाया है कि हम घूमने इसलिए जाते हैं कि हम अपने मन कोअपने दिलो दिमाग़ को हमारी रोज़ कि आपाधापी भरी ज़िंदगी से थोड़ा सुकून दे सकें, ब्रेक दे सकें। फिर से तरोताज़ा हो सकें। हम सब ऐसा सोच कर ही छुट्टियों का प्लान करते हैं कि रोज़ के अपने सेट रूटीन से थोड़ा ब्रेक लिया जाए। कुछ दिन प्राकृति के साथ सुकून से गुज़ारे आए। जहां पर ऑफिस जाने कि हड़बड़ाहट ना हो, कहीं टाइम से पहुंचने की बेचैनी ना हो
शायद खुद को पंख फैला कर उड़ने का, बंधनों से मुक्ति काआज़ादी का अनुभव करवाना चाहते हैं हम सभी। कुछ दिन बिना किसी बोझ और मानसिक तनाव के। शायद हम सभी ऐसा ही कुछ सोच कर घूमने का प्लान करते हैं। पर वास्तव में होता क्या होहम छुट्टी प्लान करते हैं,पहले से टिकट बुक करते हैं, कहां कहां जाएंगे उसकी सारी जानकारी जुटाते हैं और फिर होटल बुक करते हैं, जैसे दो दिन शिमला, एक दिन कुल्लू और दो दिन मनालीऔर फिर इसी हिसाब से हर जगह होटल भी बुक करते हैं और यह बिल्कुल भूल जाते हैं कि हम जिन बंधनों और तनावों से बचने के लिए छुट्टी पर जा रहे थे व बंधन तो हम खुद अपने साथ लिए जा रहे हैं शिमला पहुंचने से पहले ही चिंताएं घेर लेती हैं कि टाइम से नही पहुंचे तो कहीं होटलवाला रूम किसी और को ना दे दे। फिर शिमला पूरी तरह से एंजाय भी नही किया होता कि टाइम से कुल्लू पहुंचने की चिंता घेर लेती है, और अगर खुद ड्राइव कर रहे हों हो फिर चिंता और बढ़ जाती है। टाइम से पहुंचने कि चिंता, रात ज़्यादा ना हो जाए इसकी चिंता। फिर जैसे तैसे कुल्लू पहुंच भी गए तो वहां भी सुकून से रहा नही जाता, और वहां से और आगे जाने फिर वापस घर पहुंचने कि चिंता लगातार हमारे दिमाग को घेरे रहती है। और इस तरह पूरा ट्रिप चिंता मे ही निकल जाता है। काश के कभी ऐसा होता कि कहीं पहुंचने कि चिंता ना होती, जहां रुकने का मन करे रुक गए, और जितने दिन ठहरने का मन करे ठहर गए। मैं अक्सर हिमालय मे घूमते हुएराजिस्थान मे घूमते हुए हमेशा से ऐसा सोचती थी। कुछ जगहें ऐसी होती हैं कि मन करता है कि यहां से जाया ही ना जाए। एक दो दिन और रुका जाए। पर मैं ऐसा कभी कर नही पाई। पहले से ही मेरा शेड्यूल इतना कसा हुआ होता था कि कहीं कोई गुंजाइश ना रहती। लेकिन इस बार जब मध्य प्रदेश पर्यटन के पर्यटन मेले में गई तो कुछ ऐसा देखने को मिला जिससे देख दिल खुश हो गया। मैं बात कर रही हूं- कैरावैन की। आऐं आपको भी इसका अंदर से दीदार करवाते हैं।
Caravan from inside-Drawing room
 कैरावैन एक ऐसी गाड़ी है,जोकि एक बस के बराबर लम्बी और चौड़ी है। जिसमे आपका पूरा का पूरा घर समाया हुआ है। आप अपने पूरे परिवार के साथ इसमे घूम सकते हैं। इसमे घूमते हुए आपको होटल बुक करने कि भी ज़रूरत नही है। आप का बेडरूम, ड्रॉयिंग रूम, बाथरूम यहां तक कि किचन भी इसी मे मौजूद है। इस कैरावैन में भारतीय कुकिंग के साथ साथ वेर्स्टर्न कुकिंग के लिए भी पूरा इंतज़ाम किया गया है। 
indore kitchen@Caravan
यहां के सिटिंग एरिआ में बैठ कर आप बाहर के नज़रों का मज़े से आनंद ले सकते हैं। 
Sitting area@Caravan

आप जहां चाहें वहां रोक कर प्रकृति की सुंदरता का आनंद ले सकते हैं और खाना भी बना सकते हैं। ज़रा सोच के देखिये किसी नदी के किनारे घांस के मैदान में एक तरफ आपने अपना कैरावैन खड़ा किया हो और खुले आकाश के नीचे आराम कुर्सी पर बैठ कर शाम की चाय की चुस्कियों का मज़ा लेते हुए सनसेट को देखना कितना ख़ुशनुमा एहसास होगा,और ऐसे में आपके साथ आपका कोई ख़ास हो तो वो शाम कितनी दिलफरेब बनजाएगी।

इस कैरावैन मे आठ लोगों के लिए जगह है। अगर आपका परिवार छोटा है तो आप छोटा कैरावैन भी ले सकते हैं। इसमे आधुनिक सुख सुविधाओं का पूरा ख़्याल रखा गया है। यहां एलसीडी टीवी, डी टी एच और वाई-फ़ाई भी मौजूद है। यह समझिए कि आप को चलता फिरता स्टूडियो अपार्टमेंट मिल रहा है। जहां है बैठने के लिए आरामदायक सोफ़ा। पढ़ने के लिए स्टडी टेबल है। 
TV Lounge@Caravan

Reading area@Caravan

Outdoor kitchen @Caravan

Restroom@Caravan

 भारत में कैरावैन टूरिज़्म की अनोखी शुरुवात हुई है हिन्दुस्तान के दिल से। मध्य प्रदेश टूरिज़्म ने पर्यटकों की बदलती ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए भारत के लिए नया माने जाना वाला कौन्सेप्ट कैरावैन टूरिज़्म शुरू किया है। विदेशों मे तो यह चलन बहुत पुराना है पर भारत के लिए अभी नया है। कैरावैन मे भ्रमण करने के दौरान आपकी सुरक्षा का ख़ास ध्यान रखा गया है इसलिए कैरावैन में एक ड्राइवर और क्लीनर की व्यवस्था भी की गई है। जिससे ड्राइव करने के झंझट से भी छुटकारा मिलता है। अगर आप रात में ट्रॅवेल ना करना चाहें तो एमपी टूरिज़्म के किसी भी होटल की पार्किंग मे अपना कैरावैन लगा कर रात बिता सकते हैं। यह पूरी तरह सुरक्षित होते हैं। वैसे आपके क़ीमती समान के लिए अंदर लॉकर भी दिया गया है। अंतर्राष्ट्रीय गुणवत्ता वाला यह कैरावैन आपका मन मोह लेगा। आप भी जीवन में एक बार इससे यात्रा करना ज़रूर चाहेंगे। यह अनुभव अपने आप में बड़ा ही अनोखा है। मुझे विश्वास है कि कुछ वर्षों में कैरावैन टूरिज़्म हमारे देश में पर्यटन का तरीका ही बदल देगा। यह एक ऐसा विकल्प है जिसके ज़रिये हम अपने घर के बुज़ुर्गों को भी आराम के साथ घूमने ले जा सकते हैं। 

फिर मिलेंगे दोस्तोंघुमक्कड़ी से जुड़े किसी नए अफ़साने के साथ

तब तक के लिए खुश रहियेघूमते रहिये।

और ऐसे ही बने रहिये मेरे साथ.

आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त

डा० कायनात क़ाज़ी



Thursday, 8 October 2015

एक सुरमई शाम डल झील के नाम...

कश्मीर पहला दिन

एक सुरमई शाम डल झील के नाम...
Houseboats at Dalgate, Dal Lake

हमारा होटल बुलावार्ड रोड पर ही था। बुलावार्ड रोड डल झील के सहारे सहारे चलता है। डल झील का विस्तार 18 किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। इस झील के तीन तरफ पहाड़ हैं। ऐसा माना जाता है कि अगर कश्मीर एक ताज है तो डल झील उस ताज में जड़ा नगीना है। ऐसा तो हो ही नहीं सकता कि कोई कश्मीर देखने आए और डल झील देखे बिना वापस चला जाए। डल झील शुरू होती है डल गेट से। यहां पर झील थोड़ी पतली है और उसके किनारों पर कई सारे होटल बने हुए हैं। बुलावार्ड रोड पर क़तार से होटल बने हुए हैं और साथ ही एक भरा-पूरा मार्केट भी है। कश्मीरी हेन्डीक्राफ्ट से सजी हुई दुकानें बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करती हैं। डल गेट से शुरू होकर डल झील आगे जाकर एक विशाल जलराशि मे बदल जाती है। डल गेट से ही एक तरफ बुलावार्ड रोड और दूसरी तरफ क़तार मे फेली हाउस बोट पर्यटकों का स्वागत करती हैं। बुलावार्ड रोड पर ही थोड़ी-थोड़ी दूरी पर घाट बने हुए हैंजहां से आप शिकारा लेकर डल मे शिकारा राइड के लिए जा सकते हैं।

KK@Shikara Ghat, Dal Lake


 हम ने हमारे होटल के सामने वाले घाट से शिकारा लिया। यहां मोल भाव करना ज़रूरी है। शिकारा वाले बहुत ज़्यादा पैसे मांगते हैं। अगर आप थोड़ा मोलभाव करेंगे तो फायदे मे रहेंगे। और फिर यह बात पूरे कश्मीर पर लागू होती है। सभी आपसे अनाप-शनाप पैसे मांगते हैं। इसलिए हमेशा मोलभाव करें। हम ने शिकारा राइड के लिए एक शिकारा तय की। यह शाम का वक़्त है। डल का माहौल सैलानियों की भीड़ से गुलज़ार है। ठंडी-ठंडी हवा चल रही है। पिछले कुछ सालों मे डल झील की सफाई पर विशेष ध्यान दिया गया है। यह झील काफ़ी गहरी है। हमारे शिकारा को चलाने वाले का नाम गुलज़ार है। कश्मीरियों मे एक बात खास तौर पर महसूस की है मैने, यह सभी बहुत ज़्यादा बोलते हैं और बहुत कम सुनते हैं। बस अपनी अपनी कहते हैं।

Blue Hour at Dal Lake

डल झील पर शाम उतर आई है। सूरज थक हर कर आराम करने की सोच रहा है। आसमान पर सिंदूरी लालिमा के साथ सुरमई अंधेरा छाने लगा है। इस सिंदूरी और सुरमई के बीच कहीं छितिज पर फालसेई रंग भी अपनी धनक छोड़ रहा है। लगता है आज क़ुदरत कलर पैलेट लेकर बैठी है और बड़ी लापरवाही से कूंची से आसमान में रंग भर रही है। यह नज़ारा सूरज छिपने से लेकर आसमान मे अंधेरा छाने के बीच चंद मिनटों मे सिमटा होता है। इस खूबसूरती को  सिर्फ़ आंखों से भोगा जा सकता है। पानी की सतह से छूकर आती ठंडी हवाएं जब तन को छूती हैं तो एक अजीब सिहरन पैदा होती है। यह अहसास बहुत रोमांटिक है। यहां की हर चीज़ मे रोमांस हैप्रेम है, खूबसूरती है.... कितने ही नव विवाहित जोड़े डल झील में हाथों में हाथ थामे शिकारा राइड का आनंद लेते दिख जाते हैं। 

Photo session on Shikara

शिकारा मे घूमते हुए कई रोचक चीज़ें देखने को मिलती है। यहां पूरा का पूरा बाज़ार अपने नज़दीक घूम रहा होता है। कश्मीरी ड्रेस मे फोटो खींचने के लिए पूरा का पूरा फोटो स्टूडियो शिकारा मे ही चल रहा होता है। आप मात्र पांच मिनट मे कश्मीरी ड्रेस मे फोटो खिंचवा सकते हैं और जितनी देर मे आप अपनी राइड पूरी करके वापस आएंगे आपको आपकी तस्वीरों के प्रिंट तैयार मिलेंगे।
 है ना मज़ेदार बात।
हमारी इस राइड मे फ्लोटिंग लिली देखना शामिल थे और गोल्डन लेक भी शामिल थी। मैंने गुलज़ार भाई से पूछा कि इस लेक को गोल्डन लेक क्यूं कहते हैंतब उन्होने बताया की गोल्डन लेक को गोल्डन इसलिए कहा जाता है की जब सूरज ढलता है और रात घिर आती है तब इस लेक के तीन तरफ हाउस बोट से आती पीली रोशनियां लेक को गोल्डन बना देती हैं।
House boats at Golden Lake

हम जब शिकारा राइड के आखरी पड़ाव गोल्डन लेक मे पहुंचे तो गुलज़ार भाई की बात सच निकली। यहां पानी पर तैरती पीली रोशनियों की छाया इसे वाक़ई गोल्डन बनाती हैं। मेरे तीन तरफ क़तार मे सजी हाउस बोट पीली रोशनियों में नहा रही थीं। इन हाउस बोट मे ठहरे सैलानी खुले आकाश तले दो हाउस बोट के बीच बने रेस्टोरेंट मे बैठे गर्म-गर्म चाय का मज़ा ले रहे थे। इन लोगों को चाय पीता देख हमे भी चाय की तलब हो आई। तो जनाब डल झील मे इसका भी इंतज़ाम है। यहां लेक के बीचों बीच एक छोटा सा फ्लोटिंग रेस्टोरेंट भी है। जहां से आप चाय पकोडे, चिप्स कोल्ड ड्रिंक आदि खरीद सकते हैं। डल झील मे शिकारा राइड करते हुए आप का मन अगर फ्रूटचाट खाने का करे तो उसका इंतज़ाम भी यहां मौजूद है। कोई शिकारा पर पूरा का पूरा फ्रूट चाट का स्टाल लिए आपकी तरफ चला आएगा।  डल झील मे घूमते हुए आप शॉपिंग भी कर सकते हैं। डल झील के अंदर एक मीना बाज़ार भी है। यहां से कश्मीरी शाल और ज्वेलरी भी खरीद सकते हैं। यह पूरा का पूरा बाज़ार फ्लोटिंग है। इस बाज़ार का नाम मीना बाज़ार कैसे पड़ा इसके पीछे भी एक रोचक कहानी है। मीना बाज़ार का ताल्लुक़ मुगलों से है। मुगलों के ज़माने मेबेगमों के लिए जिस बाज़ार को सजाया जाता था उसका नाम मीना बाज़ार रखा जाता था। इस तरह के बाज़ार मे महिलाओं से जुड़े समान ही बेचे जाते थे। इन बाज़ारों की रोनक़ देखने लायक़ होती थी।
Night view of Dal Lake from Bulaward Road

हमारी यह राइड मीना बाज़ार से होते हुए वापस घाट तक पहुंच कर ख़त्म हो गई थी।  हमें डल झील मे घूमते हुए दो घंटे बीत गए थे, पर पता ही नही चला था। रात घिर आई थी और बुलावार्ड रोड पर सड़क के किनारे रोज़ लगने वाला बाज़ार सज चुका था। यहां आसपास के गांवों से आए हुए दस्तकार अपना सामान वाजिब दामों पर बेचते हैं। यहां लकड़ी पर नक़्क़ारशी से बने हुए सजावटी सामान खूब मिलते हैं। यहां पर पेपरमैशी से बने सजावट के सामान भी मिलते हैं। अगर यही सामान आप इम्पोरियम से ख़रीदेंगे तो यह आपको तिगुनी क़ीमत पर मिलेंगे, और अगर आप यह सामान इन दस्तकारों से खरीदेंगे तो इसका सीधा फायदा इन लोगों को होगा। मैंने यहां से पेपरमैशी से बनी घंटियांछोटे-छोटे बॉक्स और कश्मीर की पहचान शिकारा खरीदे। 
Chinar Leaf a symbol of Kashmir 

मैने ग़ौर किया की यहां की कला मे बेलबूटे, और खास तौर पर चिनार के पत्ते को खास तौर पर जगह दी जाती है। चिनार कश्मीर वादी की पहचान है। पूरे कश्मीर मे चिनार के पेड़ बहुतायत मे पाए जाते हैं। गर्मियों मे जहां यह सब्ज़ हरे रंग के होते हैं तो वहीं पतझड़ का मौसम आने पर यह हरे से पीले हो जाते हैं और सर्दी की आहट के साथ यह पीले से लाल हो जाते हैं। जब वादी मे ठंड बढ़ने लगती है और हरयाली धीरे-धीरे गायब होने लगती है तब यह चिनार के पेड़ लाल पत्तों से भर जाते हैं। लगता है जैसे वादी मे किसी ने आग लगा दी हो। कश्मीर वादी के यह रंग भी देखने लायक़ है। लगता है जैसे ऑटम का शेडकार्ड बिखेर दिया हो किसी ने। पीला,गाढ़ा पीलानारंगीलालकत्थई...सारे रंग एक ही फैमिली के। एक के बाद एक शेड गहराते हुए। पतझड़ के इन रंगों का साथ देने गर्मियों का नीला चमकीला आसमान भी मटमैला हो जाता है। वाह री क़ुदरत। तेरा हर रंग, हर रूप अनोखा है।
डल झील पर मेरी यह शाम हमेशा के लिए मेरी यादों में बस गई, पर अभी तो यह शुरुवात है ऐसे कितने और अनुभव होना बाक़ी हैं इस यात्रा में। 
आज का दिन यहीं ख़त्म हुआ, कल देखने जाना है श्रीनगर के प्रसिद्ध मुग़ल गार्डन्स को।



तब तक के लिए खुश रहिये, घूमते रहिये।


और ऐसे ही बने रहिये मेरे साथ.… 

आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त 


डा० कायनात क़ाज़ी   




Friday, 2 October 2015

हिमालय की पुकार…इस बार कश्मीर

हिमालय की पुकारइस बार कश्मीर




पूरे हिमालय मे एक तिलिस्म है जो मुझे अपनी ओर खींचता रहता है. अभी हिमाचल की यात्रा को कुछ ज़्यादा दिन भी नही गुज़रे हैं कि कश्मीर की यात्रा का विधान बन गया है. जबकि मैने पूरी कोशिश की थी कि बीच में एक बार दक्षिण भारत का एक चक्कर लगा कर आऊंगी पर ऐसा हो ना सका. और एक बार फिर मैं हिमालय की खूबसूरती से रूबरू होने निकल पड़ी हूं कश्मीर की वादियों मे.
यह टूर लगभग दस दिन का टूर रहेगा.जिसमें मैने बहुत सारी जगहों को देखने का नही सोचा है. इस बार मैं जहां भी जाऊंगी सुकून से वक़्त गुज़ारुंगी, और तब तक उस जगह को नही छोड़ूंगी जब तक मेरा दिल नही भर जाता. मेरी इस यात्रा मे शामिल हैं यह जगहें:
1. श्रीनगर
2. पहलगाम
3. ऐपल वैली
4. अवन्तीपुरा मंदिर अवशेष
5. अरू वैली
6. लिद्दर वैली
7. मार्कंडे मंदिर, मट्टन, अनंतनाग
8. तांगमर्ग
9. गुलमर्ग
हमेशा की तरह मैं अपने कंप्यूटर पर बैठ कर जितनी रिसर्च कर सकती थी वो सब की. किसी जगह पर जाने से पहले वर्चूअली पहुंचने के लिए इंटरनेट बड़ा ही आसान तरीका है. मैं कोशिश करती हूँ कि उस जगह से जुड़ी ज़्यादा से ज़्यादा जानकारी जुटा लूं ताकि कोई असुविधा ना हो, और फिर कश्मीर जाने को लेकर थोड़ी सतर्कता भी ज़रूरी है. मुझसे पहले गए हुए लोगों के रिव्यूज़ और मशवरे मेरे बड़े काम आते हैं. वैसे तो मैं किसी एक ब्लॉगर को फॉलो नही करती पर बहुत सारे ब्लॉगरस के आर्टिकल और रिव्यू पढ़ती हूँइन सब से बड़ी मदद मिलती हैमेरी आइटिनरी पूरी तैयार है. बस यह तय नही किया है कि मैं किस जगह पर कितने दिन रुकने वाली हूं..ऐसा शायद मैने पहली बार किया है कि अपनी आइटिनरी को इतना लूज़ रखा है..शायद खुद पर एतमाद बढ़ने की वजह से ऐसा कर पाई हूं..कहते हैं बंधनों के कुछ सिरे खुले भी छोड़ने चाहिए..थोड़ी ताज़ी हवा आती जाती रहती है..जिस तरह इश्क़ के अलग-अलग लेवल्ज़ होते हैं शायद ट्रेवलिंग के भी अलग-अलग लेवल होते हैं..पहले आप ट्रेवल करने के ख्वाब भर देखते हैं और सोचा करते हैं कि एक दिन मैं वहां जाऊंगा,ऐसा करूंगा वैसा करूंगाकुछ साल शायद आप ऐसे ही ख़्यालों मे निकाल देते हैं. मैनें भी अपनी ज़िंदगी के शुरुवाती 20 साल ऐसे ही सपने संजोने में निकाले हैं, और उन बीस सालों के अगले पांच साल खुद के ट्रेवलर बनने की प्लॅनिंग मे निकाले हैं, और उन पांच सालों के अगले कुछ साल मैने ट्रेवल शुरू करने और ग्रुप मे ट्रॅवेल करने मे निकाले हैं.मुझे लगता है कि यह अलग अलग मुक़ाम हैं ट्रॅवेल के, जिनहें शायद सबको ही तय करना पड़ता होगाअब हर कोई तो इबने बतुता नही हो सकता जो पच्चीस साल की उम्र मे ही दुनिया देखने निकल पड़ा था और अगले पच्चीस बरस तक घर वापस नही लौटा था
जैसे इश्क़ के सात मुकाम होते हैं, दिलकशी,ऊन्स, मुहब्बत,अक़ीदत, इबादत,जुनून और मौत. वैसे ही ट्रेवल के भी सात मुक़ाम होते हैं. जिस तरह मुझे ट्रेवल और फोटोग्राफी से लगाव है मुझे लगता है कि इश्क़ के यह सात मुक़ाम मेरे लिए ट्रेवल और फोटोग्राफी से इश्क़ के सात मुक़ाम बन गए हैं।

ट्रेवल और फोटोग्राफी से इश्क़ के सात मुकाम
1.             दिलकशी- आकर्षण attraction
2.             ऊन्स- infatuation
3.             मुहब्बत-लव love
4.             अक़ीदत- credence
5.             इबादत- worship
6.             जुनून- obsession
7.             मौत- death
शायद मैं अभी तीसरे मुक़ाम पर हूं. ट्रेवल मे दिलकशी थी इसीलिए बचपन से ही इसके बारे मे सोचा करती थी. जब फिल्में देखती थी और कोई नज़ारा मुझे अच्छा लगता तो दिल करता की उड़ कर वहां पहुंच जाऊं...शायद सभी का दिल यही करता होगा पर मैं इसके अलावा एक बात और सोचा करती थी उस नज़ारे को देख करजहां एक तरफ उस दिलफ़रेब खूबसूरती मुझे अपनी ओर आकर्षित करती थी वहीं दूसरी ओर मैं सोचती कि यह तस्वीर क्लिक कहां खड़े हो कर की गई होगी? उस वक़्त कैमरामैन कहां होगा? जितना लुभावना वो मंज़र होता था उसे ज़्यादा दिलफ़रेब यह अहसास होता था कि काश मैं भी ऐसी तस्वीरें खींच पाऊंऔर आज मैं बिल्कुल वैसा ही कर पाती हूं जैसा की कभी सोचा करती थी दिलकशी और उन्स के दोनों मुक़ाम पार कर चुकी हूं और अब मुहब्बत के मुक़ाम पर हूं। मुझे मुहब्बत है फोटोग्राफी और ट्रेवल दोनों से। देखा जाए तो मैं इन दोनों को एक दूसरे से अलग मानती भी नहीं।

कश्मीर जाने से पहले मुझे कई लोगों ने माना किया कि वहां ना जाया जाए पर मेरा दिल ना माना. हमारे देश मे ऐसा कौनसा हिस्सा हो सकता है जहां जाया ना जा सके? और फिर भय तो वैसे भी मुझे छू कर भी नही गया है. मेरे कुछ कश्मीरी दोस्त और जाननेवाले हैं मैंने एक बार उनसे फोन करके हालत का जायज़ा लिया. सभी ने मुझे एक ही बात कही कि आप आराम से आ सकती हैं. कोई परेशानी नही है वादी मे .मैनें भी अल्लाह का नाम लिया और चल दिए श्रीनगर. हमारी फ्लाइट ने दोपहर को श्रीनगर एयरपोर्ट पर लैंड किया. एयरपोर्ट की बेनूरी ने हमारा स्वागत कियायह एयरपोर्ट एयरपोर्ट कम और मिलिटरी बेस ज़्यादा लग रहा था. मैने टूरिस्ट इन्फर्मेशन डेस्क से जाकर कुछ जम्मू कश्मीर टूरिज़्म के पैम्फलेट लिए, पर यह डेस्क भी बदइंतज़ामी का शिकार थी. वहां पर टूरिस्ट मैप नही था और ना ही और बुकलेट्स..जोकि आम तौर पर टूरिस्ट्स के काम की जानकारियां समैटे होती है. मुझे समझ नही आता कि राज्य सरकारें टूरिज़्म के नाम पर हर साल एक नया चमचमाता विज्ञापन तो टीवी पर दिखा लोगों को अपने प्रदेश घूमने आने की दावत तो बड़ी शान से देती हैं पर ग्राउंड ज़ीरो पर तैयारी क्यूं नही करती हैं? मैने सिर्फ़ एक रात के लिए होटल बुक किया हुआ था. बाक़ी दिनों के लिए कुछ पहले से बुक नही किया था. मैने एयरपोर्ट से बाहर निकल कर प्रीपेड टेक्सी बुक की और निकल पड़ी श्रीनगर की तरफ. एयरपोर्ट से मेरा होटल जोकि डल झील के पास बुलवार्ड रोड पर ही है, जिस की दूरी एयरपोर्ट से लगभग 17 किमी थी. हमने 45 मिनट मे यह दूरी तय की. होटल मे चेक इन किया और अपनी पहली शिकारा राइड के लिए डल झील की तरफ चल दिए.
आगे क्या हुआ ?
इंतिज़ार कीजिये अगली पोस्ट का। 
तब तक के लिए, घूमते रहिये और खुश रहिये। 

आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त 
डा ० कायनात क़ाज़ी