पूरे हिमालय मे एक तिलिस्म है जो मुझे
अपनी ओर खींचता रहता है. अभी हिमाचल की यात्रा को कुछ ज़्यादा दिन भी नही गुज़रे
हैं कि कश्मीर की यात्रा का विधान बन गया है. जबकि मैने पूरी कोशिश की थी कि बीच
में एक बार दक्षिण भारत का एक चक्कर लगा कर आऊंगी पर ऐसा हो ना सका. और एक बार फिर
मैं हिमालय की खूबसूरती से रूबरू होने निकल पड़ी हूं कश्मीर की वादियों मे.
यह टूर लगभग दस दिन का टूर रहेगा.जिसमें
मैने बहुत सारी जगहों को देखने का नही सोचा है. इस बार मैं जहां भी जाऊंगी सुकून
से वक़्त गुज़ारुंगी, और तब तक उस जगह को नही छोड़ूंगी जब तक मेरा दिल नही भर
जाता. मेरी इस यात्रा मे शामिल हैं यह जगहें:
1. श्रीनगर
2. पहलगाम
3. ऐपल
वैली
4. अवन्तीपुरा
मंदिर अवशेष
5. अरू
वैली
6. लिद्दर
वैली
7. मार्कंडे
मंदिर, मट्टन, अनंतनाग
8. तांगमर्ग
9. गुलमर्ग
हमेशा की तरह मैं अपने कंप्यूटर पर बैठ
कर जितनी रिसर्च कर सकती थी वो सब की. किसी जगह पर जाने से पहले वर्चूअली पहुंचने
के लिए इंटरनेट बड़ा ही आसान तरीका है. मैं कोशिश करती हूँ कि उस जगह से जुड़ी
ज़्यादा से ज़्यादा जानकारी जुटा लूं ताकि कोई असुविधा ना हो, और फिर कश्मीर जाने
को लेकर थोड़ी सतर्कता भी ज़रूरी है. मुझसे पहले गए हुए लोगों के रिव्यूज़ और
मशवरे मेरे बड़े काम आते हैं. वैसे तो मैं किसी एक ब्लॉगर को फॉलो नही करती पर
बहुत सारे ब्लॉगरस के आर्टिकल और रिव्यू पढ़ती हूँ…इन सब से बड़ी
मदद मिलती है…मेरी आइटिनरी पूरी तैयार है. बस यह तय नही किया है कि मैं किस जगह पर
कितने दिन रुकने वाली हूं..ऐसा शायद मैने पहली बार किया है कि अपनी आइटिनरी को
इतना लूज़ रखा है..शायद खुद पर एतमाद बढ़ने की वजह से ऐसा कर पाई हूं..कहते हैं
बंधनों के कुछ सिरे खुले भी छोड़ने चाहिए..थोड़ी ताज़ी हवा आती जाती रहती है..जिस
तरह इश्क़ के अलग-अलग लेवल्ज़ होते हैं शायद ट्रेवलिंग के भी अलग-अलग लेवल होते हैं..पहले
आप ट्रेवल करने के ख्वाब भर देखते हैं और सोचा करते हैं कि एक दिन मैं वहां
जाऊंगा,ऐसा करूंगा वैसा करूंगा…कुछ साल शायद आप ऐसे ही ख़्यालों मे
निकाल देते हैं. मैनें भी अपनी ज़िंदगी के शुरुवाती 20
साल ऐसे ही सपने संजोने में निकाले हैं, और उन बीस सालों के अगले पांच साल खुद
के ट्रेवलर बनने की प्लॅनिंग मे निकाले हैं, और उन पांच सालों
के अगले कुछ साल मैने ट्रेवल शुरू करने और ग्रुप मे ट्रॅवेल करने मे निकाले हैं.मुझे
लगता है कि यह अलग अलग मुक़ाम हैं ट्रॅवेल के, जिनहें शायद सबको ही तय करना पड़ता
होगा…अब हर कोई तो इबने बतुता नही हो सकता जो पच्चीस साल की उम्र मे ही
दुनिया देखने निकल पड़ा था और अगले पच्चीस बरस तक घर वापस नही लौटा था…
जैसे इश्क़ के सात मुकाम होते हैं, दिलकशी,ऊन्स,
मुहब्बत,अक़ीदत, इबादत,जुनून और मौत.
वैसे ही ट्रेवल के भी सात मुक़ाम होते हैं. जिस तरह मुझे ट्रेवल और फोटोग्राफी से
लगाव है मुझे लगता है कि इश्क़ के यह सात मुक़ाम मेरे लिए ट्रेवल और फोटोग्राफी से
इश्क़ के सात मुक़ाम बन गए हैं।
ट्रेवल और फोटोग्राफी से इश्क़ के सात
मुकाम
1.
दिलकशी- आकर्षण attraction
2.
ऊन्स- infatuation
3.
मुहब्बत-लव love
4.
अक़ीदत- credence
5.
इबादत- worship
6.
जुनून- obsession
7.
मौत- death
शायद मैं अभी तीसरे मुक़ाम पर हूं. ट्रेवल
मे दिलकशी थी इसीलिए बचपन से ही इसके बारे मे सोचा करती थी. जब फिल्में देखती थी
और कोई नज़ारा मुझे अच्छा लगता तो दिल करता की उड़ कर वहां पहुंच जाऊं...शायद सभी
का दिल यही करता होगा पर मैं इसके अलावा एक बात और सोचा करती थी उस नज़ारे को देख
कर…जहां एक तरफ उस दिलफ़रेब खूबसूरती मुझे अपनी ओर आकर्षित करती थी वहीं
दूसरी ओर मैं सोचती कि यह तस्वीर क्लिक कहां खड़े हो कर की गई होगी? उस वक़्त कैमरामैन कहां होगा? जितना लुभावना
वो मंज़र होता था उसे ज़्यादा दिलफ़रेब यह अहसास होता था कि काश मैं भी ऐसी
तस्वीरें खींच पाऊं…और आज मैं बिल्कुल वैसा ही कर पाती हूं जैसा की कभी सोचा करती थी… दिलकशी
और उन्स के दोनों मुक़ाम पार कर चुकी हूं और अब मुहब्बत के मुक़ाम पर हूं। मुझे
मुहब्बत है फोटोग्राफी और ट्रेवल दोनों से। देखा जाए तो मैं इन दोनों को एक दूसरे
से अलग मानती भी नहीं।
कश्मीर जाने से पहले मुझे कई लोगों ने
माना किया कि वहां ना जाया जाए पर मेरा दिल ना माना. हमारे देश मे ऐसा कौनसा
हिस्सा हो सकता है जहां जाया ना जा सके? और फिर भय तो वैसे
भी मुझे छू कर भी नही गया है. मेरे कुछ कश्मीरी दोस्त और जाननेवाले हैं मैंने एक
बार उनसे फोन करके हालत का जायज़ा लिया. सभी ने मुझे एक ही बात कही कि आप आराम से
आ सकती हैं. कोई परेशानी नही है वादी मे .मैनें भी अल्लाह का नाम लिया और चल दिए
श्रीनगर. हमारी फ्लाइट ने दोपहर को श्रीनगर एयरपोर्ट पर लैंड किया. एयरपोर्ट की
बेनूरी ने हमारा स्वागत किया…यह एयरपोर्ट एयरपोर्ट कम और मिलिटरी बेस
ज़्यादा लग रहा था. मैने टूरिस्ट इन्फर्मेशन डेस्क से जाकर कुछ जम्मू कश्मीर
टूरिज़्म के पैम्फलेट लिए, पर यह डेस्क भी बदइंतज़ामी का शिकार थी. वहां पर
टूरिस्ट मैप नही था और ना ही और बुकलेट्स..जोकि आम तौर पर टूरिस्ट्स के काम की
जानकारियां समैटे होती है. मुझे समझ नही आता कि राज्य सरकारें टूरिज़्म के नाम पर
हर साल एक नया चमचमाता विज्ञापन तो टीवी पर दिखा लोगों को अपने प्रदेश घूमने आने
की दावत तो बड़ी शान से देती हैं पर ग्राउंड ज़ीरो पर तैयारी क्यूं नही करती हैं? मैने सिर्फ़ एक
रात के लिए होटल बुक किया हुआ था. बाक़ी दिनों के लिए कुछ पहले से बुक नही किया
था. मैने एयरपोर्ट
से बाहर निकल कर प्रीपेड टेक्सी बुक की और निकल पड़ी श्रीनगर की तरफ. एयरपोर्ट से
मेरा होटल जोकि डल झील के पास बुलवार्ड रोड पर ही है, जिस की दूरी एयरपोर्ट से लगभग 17 किमी
थी. हमने 45 मिनट मे यह दूरी तय की. होटल मे चेक इन किया और अपनी पहली शिकारा
राइड के लिए डल झील की तरफ चल दिए.
आगे क्या हुआ ?
इंतिज़ार कीजिये अगली पोस्ट का।
तब तक के लिए, घूमते रहिये और खुश रहिये।
आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त
डा ० कायनात क़ाज़ी
आगे क्या हुआ ?
इंतिज़ार कीजिये अगली पोस्ट का।
तब तक के लिए, घूमते रहिये और खुश रहिये।
आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त
डा ० कायनात क़ाज़ी
सुंदर विवरण।
ReplyDeleteधन्यवाद संजय जी।
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