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कुछ पंक्तियां इस ब्लॉग के बारे में :

प्रिय पाठक,
हिन्दी के प्रथम ट्रेवल फ़ोटोग्राफ़ी ब्लॉग पर आपका स्वागत है.….
ऐसा नहीं है कि हिन्दी में अच्छे ब्लॉग लिखने वालों की कमी है। हिन्दी में लोग एक से एक बेहतरीन ब्लॉग्स लिख रहे हैं। पर एक चीज़ की कमी अक्सर खलती है। जहां ब्लॉग पर अच्छा कन्टेन्ट है वहां एक अच्छी क्वालिटी की तस्वीर नहीं मिलती और जिन ब्लॉग्स पर अच्छी तस्वीरें होती हैं वहां कन्टेन्ट उतना अच्छा नहीं होता। मैं साहित्यकार के अलावा एक ट्रेवल राइटर और फोटोग्राफर हूँ। मैंने अपने इस ब्लॉग के ज़रिये इस दूरी को पाटने का प्रयास किया है। मेरा यह ब्लॉग हिन्दी का प्रथम ट्रेवल फ़ोटोग्राफ़ी ब्लॉग है। जहाँ आपको मिलेगी भारत के कुछ अनछुए पहलुओं, अनदेखे स्थानों की सविस्तार जानकारी और उन स्थानों से जुड़ी कुछ बेहतरीन तस्वीरें।
उम्मीद है, आप को मेरा यह प्रयास पसंद आएगा। आपकी प्रतिक्रियाओं की मुझे प्रतीक्षा रहेगी।
आपके कमेन्ट मुझे इस ब्लॉग को और बेहतर बनाने की प्रेरणा देंगे।

मंगल मृदुल कामनाओं सहित
आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त

डा० कायनात क़ाज़ी

Tuesday 29 March 2016

एक रंग होली का ऐसा भी-होला मुहल्ला,आनंदपुर साहिब-पंजाब

एक रंग होली का ऐसा भी-होला मुहल्ला,आनंदपुर साहिब-पंजाब 
पंजाब डायरी-पहला दिन 

Gurudwara @ Holla Muhalla, Punjab

चंडीगढ़ की आधुनिक सड़कों को पीछे छोड़ती हुई हमारी कार आनंदपुर साहिब की ओर दौड़ रही है। देश की पहली प्लांड सिटी चंडीगढ़ का वैभव कहीं पीछे छूट रहा है और मैं इंडिया से भारत की ओर खींची चली जा रही हूँ। वह भारत जो देश के छोटे बड़े गांव और क़स्बों को जोड़ कर बनता है। वह भारत जो मुट्ठी भर महानगरों की गगनचुम्बी इमारतों जितना ऊँचा तो नहीं है पर उनसे विशालता में बहुत बड़ा है।


Gurudwara @ Holla Muhalla, Punjab

चिकनी सपाट सड़क के दोनों और फैले गेंहूं के हरयाले खेतों में हवाएं झूम-झूम कर फ़ाग गा रही हैं। सहसा मुझे अहसास हुआ की हमने अभी तक कार के शीशी चढ़ा रखे हैं। मैंने तुरंत ऐसी बंद करवाया और मिट्टी की सोंधी खुशबू को अंदर आने दिया। हम जिस दिशा में जा रहे हैं वह जगह हिमाचल के नज़दीक है और शिवालिक की छोटी-छोटी पहाड़ियों से घिरी है। हरी मख़मल से बिछे खेत और उनके नज़दीक उग आए गांव किसी धानी चूनर पर टंके बूटे से दिखते हैं। पास ही नीले आकाश तले धवल चांदनी से नहाया गुरुद्वारा आपको पंजाब में होने का अहसास करवा जाता।


Gurudwara @ Holla Muhalla, Punjab

Gurudwara @ Holla Muhalla, Punjab


 यह पूरा द्रश्य मानो कृष्णा सोबती के साहित्य-ज़िंदगीनामा के पन्नों से निकल मेरे सामने खड़ा हो गया हो। यह वही पंजाब है जिसे मैं कृष्णा सोबती के उपन्यासों में पढ़ा करती थी। गाड़ी की धीमी होती रफ़्तार ने मुझे मेरे ख्यालों से बाहर खींच लिया। सड़क पर अचानक से बहुत-सी गाड़ियां आ पहुंची थीं। यह ट्रैकटर ट्रॉली और ट्रक थे। जिन पर बहुत सारे लोग सवार थे। यह ट्रैकटर, ट्रॉली हाईवे पर मिलने वाले ट्रकों से बिलकुल अलग थे। इन्हें बड़े जतन कर एक आरज़ी (टेम्परेरी) घर की शक्ल दी गई थी। ऐसा दो मंज़िला घर जिसमे बैठने और सोने के लिए अलग अलग पार्टीशन बनाए गए थे। मैंने मालूम किया तो ड्राइवर ने बताया कि यह लोग पंजाब के कोने-कोने से होली पर आनंदपुर साहिब होला-मुहल्ला मनाने आते हैं। आनंदपुर साहिब एक छोटा क़स्बा है जिसकी जनसँख्या लगभग तीस हज़ार की है और होला मुहल्ला के समय यह छोटा क़स्बा तीस लाख लोगों की अगवानी करता है, वह भी बिना किसी बदइंतज़ामी के। अब इतने सारे लोगों के रहने का इन्तिज़ाम करना कोई आसान काम नहीं है। इसी लिए यह लोग अपनी व्यवस्था खुद करके चलते हैं।

On the way to Anandpur Sahib-Home on the wheels Holla Muhalla, Punjab

Home on the wheels Holla Muhalla, Punjab

Home on the wheels Holla Muhalla, Punjab

Home on the wheels @ Holla Muhalla, Punjab


और इतने लोग तीन-चार दिनों तक खाते कहाँ होंगे? मैंने जिज्ञासावश पूछा।
अरे मैडम जी, आनंदपुर में खाने की क्या कमी? यहाँ तो दिन रात लंगर चलते हैं। लोग बुला-बुला कर खाना खिलाते हैं। ड्राइवर की बात सुन कर मैं हैरान रह गई। आज जहाँ हमारे देश (इण्डिया में) एक घूंट पानी तक फ्री नहीं मिलता वहां तीस लाख लोगों के लिए खाने का इन्तिज़ाम करना किसी बड़े शाहकार से कम नहीं। यह है पंजाब, खालसाओं का पंजाब। मिनरल वॉटर वाला इण्डिया नहीं लंगरों वाला भारत। खैर लंगर से जुड़ी बहुत रोचक जानकारियां मैं आपको अगली पोस्ट में दूंगी, और लंगर की बड़ी रसोई भी दिखवाऊंगी पर अभी तो आनंदपुर पहुँचने की जल्दी है। लेकिन उससे पहले इस पवित्र स्थान के बारे में थोड़ा जान लें।


Holla Muhalla, Punjab



आनंदपुर साहिब का इतिहास

आनंदपुर साहिब सिखों के पवित्र स्थानों में दूसरे नंबर पर आता है। पहला अमृतसर और दूसरा आनंदपुर साहिब। इस स्थान के साथ कई ऐतिहासिक घटनाएं जुड़ी हैं। कहते हैं कि गुरु तेग बहादुर सिंह को यह स्थान इतना भाया था कि उन्होंने अपने जीवन के 25 साल यहीं बिताए। यहाँ रह कर उन्हें आनंद की अनुभूति हुई थी इसलिए इस जगह का नाम आनंदपुर साहिब पड़ा। हिमालय के नज़दीक होने के कारण यहाँ वर्ष भर मौसम सुहावना बना रहता है। सन् 1664  में श्री गुरू तेग बहादुर ने माक्होवाल के खंडहर हो चुके स्थान पर आनंदपुर साहिब गुरुद्वारा भी बनवाया था. दूसरी महत्वपूर्ण घटना दसवें गुरु, गुरु गोविन्द सिंह से जुड़ी है। गुरू गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना सन 1699 को बैसाखी वाले दिन आनंदपुर साहिब में ही की थी। इस दिन उन्होंने सर्वप्रथम पांच प्यारों को अमृतपान कराया और खालसा बनाया  फिर उन पांच प्यारों के हाथों से स्वयं भी अमृतपान किया। पंज प्यारे यानी पांच प्यारे इनके चुनाव की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। वह पंज प्यारे थे-भाई साहिब सिंह जी, भाई मोहकम सिंह जी, भाई धरम सिंह जी, भाई दया सिंह जी, भाई हिम्मत सिंह जी और भाई मोहकम सिंह जी

The Battalion of Nihangs 


 उसे जानने के लिए अगली पोस्ट का इन्तिज़ार कीजिये। विरासत-ए-ख़ालसा संग्रहालय की भूल भुलैयों में छिपी है वह दास्तान।


A turban of 15 kg 


यहाँ होला मुहल्ल्ला मनाने की परंपरा गुरु गोबिंद सिंह जी ने 1757 में शुरू की थी। जब देश में मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब गैरमुस्लिमों पर अत्याचार किये जा रहा था।
 मुगल शासक औरंगजेब के हुक्म के बाद गुरू तेग बहादुर को मुगलों ने सिर कलम कर मौत के घाट उतार दिया था, क्योंकि वो हिन्दू ब्राह्मणों के दुखों को देख कर मुगलों से अपील करने गए थे। उसके बाद कुछ हिन्दू पहाड़ी राजाओं और अहलकारों ने गुरमत के बढ़ते प्रचार व अनुयायियों की भारी संख्या को अपने लिए खतरा समझना शुरू कर दिया और वो इसके खिलाफ एकजुट हो गए। इस बीच गुरू गोबिंद सिंह ने कुछ बाणियों की रचनाएँ भी की जिसमें अत्याचारी मुस्लमान शासकों के ख़िलाफ़ कड़े शब्द कहे।


The Nihang @Holla Muhalla, Punjab

The Kripan @ Holla Muhalla, Punjab


उपरोक्त परिस्थितियों तथा औरंगजेब और उसके नुमाइंदों के गैर-मुस्लिम जनता के प्रति अत्याचारी व्यवहार को देखते हुए धर्म की रक्षा हेतु जब गुरू गोबिंद सिंह ने सशस्त्र संघर्ष का निर्णय लिया तो उन्होंने ऐसे सिखों (शिष्यों) की तलाश की जो गुरमत विचारधारा को आगे बढाएं, दुखियों की मदद करें और जरूरत पडऩे पर अपने जीवन का बलिदान देने में भी पीछे ना हटें। खालसा पंथ की स्थापना गुरू गोबिंद सिंह जी ने 1699 को बैसाखी वाले दिन आनंदपुर साहिब में की थी।


A young soldier with sword @Holla Muhalla, Punjab


होला मुहल्ला का इतिहास
होला मुहल्ला सिक्खों का त्यौहार है जोकि फागुन के महीने में होली के अगले दिन मनाया जाता है। जिसकी शुरुवात गुरु गोबिन्द सिंह जी से 1757 में हुई थी। जब मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब के अत्याचार हद से ज़्यादा बढ़ गए थे तब गुरु गोबिन्द सिंह जी ने सिक्ख समुदाय को संगठित किया और होली में युवाऔं के उल्लास और उन्माद को सही दिशा दी और समाज की रक्षा में लगाया। इस दिन बड़े ही ओजपूर्ण गीत गाए जाते थे और लोग अपनी शस्त्र विधा का प्रदर्शन करते थे। इसी दिन गुरु गोबिन्द सिंह जी द्वारा बनाई गई निहंग सेना अपने अस्त्र शस्त्रों का प्रदर्शन करती है। यह पर्व है शक्ति का, साहस का और बलिदान का। यह लोग नीले रंग के वस्त्र धारण करते हैं और नीली पगड़ी भी बांधते हैं।


The Nihangs@Holla Muhalla, Punjab

निहंग का अर्थ होता है अहंकार के बिना। इन योद्धाओं को निहंग संज्ञा इसलिए दी गई कि शस्त्र और भुजा दोनों ही बल (शक्ति) होने के बावजूद अहंकार से दूर रहें और उस शक्ति का प्रयोग लोगों की सुरक्षा के लिए करें।
आनंदपुर पुर साहिब पहुँचते पहुँचते चारों और नीले और केसरिया रंग की छठा बिखरी दिखती है।


The colors of Holi@Holla Muhalla, Punjab



यहाँ होली का रंग एक अलग रूप में दिखाई देता है। हमने भीड़ से बचते हुए सोढियों की खानदानी हवेली का रुख़ किया। यह एक पुरानी हवेली थी जो कि गुरुद्वारे के नज़दीक थी। हम जल्दी जल्दी उस हर्ष और उल्ल्हास के माहौल में रमने के लिए निकल पड़े। हर तरफ सड़कों के किनारे लोग अपने ट्रैकटर व ट्रॉली लगाए मेले का आनंद ले रहे थे। भीड़ ऐसी कि कंधे से कंधा रगड़ता हुआ चले पर तहज़ीब इतनी कि गबरू जवानो की इस भीड़ में भी आप ख़ुद को बहुत महफ़ूज़ महसूस करें। मुस्कुराती लड़कियाँ और सीना चौड़ा किए इतराते गबरू जवान। ऐसी जवानियों के सदके।
जियें ऐसी सोनियाँ और जिएँ उनके वीरे...


Nihangs @ Holla Muhalla, Punjab

यह प्रताप है इस पवित्र स्थान का जहाँ आकर आप इंसान बन जाते हैं। ऊंच नीच से परे, भेद भाव, औरत मर्द से परे।
एक अलग ही माहौल है यहाँ, कोई माइक पर एनाउंसमेंट करके लंगर में खाने की दावत दे रहा है तो कोई गुरु की बानी का पाठ कर रहा है। मोटर साइकिलों पर बांके नौजवान केसरिया और नीली पताकाएं लिए चले जा रहे हैं।


KK@Holla Muhalla, Punjab (PC:Ajay Sood)

यह था ब्यौरा पहले दिन का, अभी बहुत कुछ बाक़ी है। आप ऐसे ही बने रहिये मेरे साथ। पंजाब डायरी के पन्नों से कुछ और क़िस्से आपके साथ साझा करुँगी अगली पोस्ट में।
तब तक खुश रहिये और घूमते रहिये

आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त

डा० कायनात क़ाज़ी

Monday 7 March 2016

महिला दिवस पर विशेष
एक सोलो ट्रैवलर के हौंसलों की कहानी.....

KaynatKazi@Rann of Katch,Gujrat

तुम लड़की हो, संभल कर रहा करो।
 ऊँची आवाज़ में बात नहीं करनी। 
नीची नज़र रखा करो। 
कंधे झुका कर चला करो। 
पांव धीरे रखा करो।
 यह मत करो।
 वह मत करो।
 यह मत देखो।
 वह मत पढ़ो।
 ज़्यादा हंसना बुरी बात है।
 यह कैसे कपड़े पहने हैं
वगैरा वगैरा...

Kaynat Kazi@Mandarmani Beach

ऐसे कितने ही जुमले सुनते हुए मैं बड़ी हुई। मेरे बोलने, सुनने और देखने पर पाबंदियां थी। पर एक चीज़ थी जिस पर पाबंदियां नहीं लगाई जा सकती थीं और वह थी मेरी सोच। एक सोच जो खुले आकाश में उड़ना चाहती थी। एक सोच जो अपनी ज़िन्दगी अपने हिसाब से जीना चाहती थी। एक सोच जिसके विस्तार की कोई सीमा न थी। अपने फैसले खुद लेना चाहती थी। लेकिन परिस्थितियां इसके बिलकुल विपरीत थीं। मेरे जीवन का फैसला लेने का अधिकार मेरे अलावा मुझसे जुड़े परिवार के हर व्यक्ति को था। यह वो समय था जब देश का संविधान मुझे अपना प्रधानमंत्री चुनने का अधिकार दे चुका था पर समाज मुझे मेरे जीवन के फैसले लेने का अधिकार अभी भी मुझसे दूर रखना चाहता था। 


KaynatKazi@Kargil War Memorial, Kargil, Jammu&Kashmir

बन्धन बहुत ज़्यादा थे पर सपने अनगिनत थे। ज़िन्दगी आपको हमेशा एक मौक़ा ज़रूर देती है जब आप अपने लिए चुन सकें। यह चुनाव आसान नहीं है। एक तरफ आपके सपने और दूसरी तरफ अच्छी और आज्ञाकारी लड़की होने का शहादद भरा अहसास। चुनाव आपको करना है। मैंने अपने सपनों को चुना।

KaynatKazi@ inside the jungle of Naksalbari,West Bengal

मेरे सपने आसमान से भी ज़्यादा विस्तृत। मैं दुनियां देखना चाहती थी, लेकिन किसी और के चश्मे से नहीं। मैं उसे ख़ुद महसूस करना चाहती थी। मेरी किताबों में रची बसी दुनियां को ख़ुद देखना और समझना चाहती थी। मैं उन्हें पढ़ कर नहीं,जीकर महसूस करना चाहती थी। मेरी सामाजिक विज्ञान की किताब में कच्ची स्याही से छपी चीनी यात्री फाह्यान की तस्वीर देख मेरे अंदर का यायावर उसकी ऊँगली थामे कल्पना में उसके पीछे-पीछे हो लेता। मेरा सपना इतना बड़ा था कि एक लम्बे समय तक मैं किसी को बता ही नहीं पाई कि मैं एक यायावर (traveller) बनना चाहती हूं। समय बीत रहा था, मैं हर गुज़रते साल के साथ किताबें और कक्षाएं पार करती हुई आगे बढ़ रही थी। लेकिन एक चीज़ थी जो मेरे मन की दीवार से चिपकी हुई थी। मेरा यायावर बनने का सपना। वह वैसा का वैसा था।

KaynatKazi@ Gwalior Fort,Madhya Pradesh

कहते हैं कि नदियों में हर प्रकार की धातु बह कर समुद्र में जाती है और समुद्र के तल में हर धातु की अलग चट्टानें होती हैं। नदी की धारा में बह कर आए धातु के छोटे-छोटे कण अपने आप अपनी धातु की चट्टान से जा मिलते हैं। वह क्या है जो उन छोटे-छोटे कणों को उनकी चट्टानों से जा मिलाता है ?
प्रवाह और निरंतरता।
इसलिए यह ज़रूरी है कि हम अपने सपनों को ज़िंदा रखें। तब भी जब उनके पूरे होने की कोई सूरत न दिखती हो। ऐसा कभी नहीं होता कि किसी रात की सुबह न हो।

KaynatKazi@ Promenade Beach, Pondicherry


एक आम धारणा है कि यायावरी केवल पुरुष कर सकते हैं। इतिहास के पन्नों को खंगालने पर हमेशा फाह्यान, ह्वेनसांग, कोलम्बस या इब्नबतूता का नाम ही सामने क्यों आता है? किसी स्त्री यात्री का नाम क्यों नहीं?  मैंने इस मिथ्य को तोड़ने की कोशिश की है। मैं अपनी यात्रा के अनुभव लोगों से बांटना चाहती थी इसलिए फोटोग्राफी सीखी। आज में देश भर में अकेले घूमती हूँ। बिना किसी डर या भय के।

KaynatKazi@ Marina Beach, Chennai, Tamilnadu

आप विश्वास मानिये, हमारे नज़दीक जितने भी भय हैं उनमें से आधे भी वास्तविकता में होते नहीं हैं। यह भय मानसिक ज़्यादा हैं। भारत दर्शन की मेरी यात्रा अभी तक 53,000 (तिरेपन हज़ार) किलोमीटर का आंकड़ा पार कर चुकी है और वह भी बिना किसी अप्रिय अनुभव के। इन यात्राओं ने मुझे बहुत कुछ सिखाया है। मेरा आत्मविश्वास बढ़ाया है। मैंने अपने महिला होने को अपनी कमज़ोरी नहीं बल्कि अपनी ताक़त बनाया है। आज मैं राजस्थान में किसी गांव में होऊं या फिर हिमालय के किसी पहाड़ी गांव में, मैं किसी भी घर में आसानी से प्रवेश पा जाती हूँ।

KaynatKazi near Indo-China border, Sikkim

 सभी खुले दिल से मेरा स्वागत करते हैं। मैं उनके चौके में बैठ कर घर की महिलाओं की तस्वीर भी खींच लाती हूँ। यह एक भरोसा है जोकि अनजाने में ही कहीं उनका मेरे ऊपर बन जाया करता है। इंसान का इंसान पर विश्वास का यह रिश्ता मुझे मीलों दूर लिए चला जाता है। लगता है जैसे सारी दुनियां मेरी है और मैं इस दुनियां की.....

KaynatKazi@ grand canyon chambal wildlife sanctuary, Kota, Rajasthan



अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर मैं सभी 


महिलाओं से यही कहना चाहती हूँ कि सपने


देखना कभी न छोड़ें। उम्मीद क़ायम रखें और 

अपने हक़ के लिए हमेशा खड़ी हों।

फिर मिलेंगे दोस्तों,

तब तक ख़ुश रहिये और ऐसे ही सपने देखते रहिये। 

आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त 

डा० कायनात क़ाज़ी 

Tuesday 1 March 2016

पैराग्लाइडिंग का मज़ा लें गैंगटॉक में



Paragliding in Gangtok


पंछी की तरह खुले आकाश में पंख फैलाए उड़ान भरने की चाह  किसके मन को नहीं लुभाती। और अगर यह चाह अपने साहस को तोलने की हो तो पैराग्लाइडिंग का अनुभव ज़रूर लेना चाहिए। भारत के पास हिमालय जैसा एक अनुपम और विशाल शाहकार है जिसके दामन में प्रकृति की शांत वादियां हैं तो उन्हीं वादियों में उत्साह से भरदेने वाले कई ऐसे अनुभव भी छुपे हैं जिनसे रूबरू होकर आप ख़ुद को और बेहतर ढंग से समझ पाएंगे। शायद इसी लिए दुनिया भर के रोमांचप्रेमी हिमालय की ओर खींचे चले आते हैं। भारत में पैराग्लाइडिंग कई स्थानों पर करवाई जाती है। जैसे हिमाचल में सोलांग वैली, धर्मशाला के पास बीड़ और गंगटोक में।

Paragliding in Gangtok

कांगड़ा जिले के बैजनाथ के निकट स्थित बीड़ बिलिंग को विश्व की दूसरी सर्वश्रेष्ठ पैराग्लाइडिंग साईट माना जाता है।हर वर्ष अक्टूबर माह में यहां पैराग्लाइडिंग की अंतर्राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं। 
पैराग्लाइडिंग रोमांच से भरा एक ऐसा खेल है जिसमे ख़ुद से ज़्यादा अपने ट्रेनर पर विश्वास ज़रूरी है। गंगटोक शहर के नज़दीक ही इसका अनुभव लिया जा सकता है। गंगटोक में महात्मा गांधी मार्ग से लगभग दस किलोमीटर की दूरी पर पैराग्लाइडिंग करवाई जाती है। यह स्थान बंझाकारी वाटरफॉल के नज़दीक है।



वैसे तो पैराग्लाइडिंग करने के लिए आपको ट्रेनिंग लेना अनिवार्य होता है। लेकिन यहां आप ट्रैंड पायलेट के साथ इस शार्ट ट्रिप का आनन्द ले सकते हैं। यह सर्टिफाइड पायलेट हैं और इनकी साथ फ्लाइट लेने में आप पूरी तरह सुरक्षित हैं। बस आपका वज़न 90 किलोग्राम से अधिक नहीं होना चाहिए।

Paragliding in Gangtok


यहाँ अनेक ऑपरेटर्स हैं जो पैराग्लाइडिंग करवाते हैं। यहाँ दो प्रकार की फ्लाइट करवाई जाती हैं। एक मीडियम medium और दूसरा हाई फ्लाई, जैसा कि नाम से ज़ाहिर है। मीडियम फ्लाई लगभग 1300 से 1400 एलटीटियूड की ऊंचाई से करवाई जाती है। जिसमे आप गंगटोक शहर को अरियल वियू से देख पाते हैं और हिमालय की बर्फ से ढकी चोटियों को देख सकते हैं। इस फ्लाइट  का टेक  ऑफ पॉइंट बलिमन दारा Baliman Dara है। यह पहाड़ की एक चोटी  है जहां पहुँच कर गिलाइडर के साथ आपको और पायलेट  की मज़बूती से हार्नेस के साथ बांध दिया जाता है। और फिर  चोटी से तेज़ी के साथ खाई की ओर दौड़ने का निर्देश दिया जाता है। दौड़ते-दौड़ते आप पहाड़ की चोटी से नीचे खाई में छलांग लगा देते है। विश्वास की छलांग। और कुछ ही देर में आप हवा से बातें करने लगते हैं।यह अनुभव आपको रोमांच से भर देगा। यह फ्लाइट 15 से 20 मिनट की होती है। और पूरी वादी का चक्कर लगा कर खेलगांव के स्टेडियम में लेंड करती है। हवा में तैरते रंग बिरंगे ग्लाइडर्स किसी पक्षी से मालूम पड़ते हैं। 


फिर मिलेंगे दोस्तों, अगले पड़ाव में हिमालय के

कुछ अनछुए पहलुओं के साथ,

तब तक खुश रहिये, और घूमते रहिये,

आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त

डा० कायनात क़ाज़ी