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कुछ पंक्तियां इस ब्लॉग के बारे में :

प्रिय पाठक,
हिन्दी के प्रथम ट्रेवल फ़ोटोग्राफ़ी ब्लॉग पर आपका स्वागत है.….
ऐसा नहीं है कि हिन्दी में अच्छे ब्लॉग लिखने वालों की कमी है। हिन्दी में लोग एक से एक बेहतरीन ब्लॉग्स लिख रहे हैं। पर एक चीज़ की कमी अक्सर खलती है। जहां ब्लॉग पर अच्छा कन्टेन्ट है वहां एक अच्छी क्वालिटी की तस्वीर नहीं मिलती और जिन ब्लॉग्स पर अच्छी तस्वीरें होती हैं वहां कन्टेन्ट उतना अच्छा नहीं होता। मैं साहित्यकार के अलावा एक ट्रेवल राइटर और फोटोग्राफर हूँ। मैंने अपने इस ब्लॉग के ज़रिये इस दूरी को पाटने का प्रयास किया है। मेरा यह ब्लॉग हिन्दी का प्रथम ट्रेवल फ़ोटोग्राफ़ी ब्लॉग है। जहाँ आपको मिलेगी भारत के कुछ अनछुए पहलुओं, अनदेखे स्थानों की सविस्तार जानकारी और उन स्थानों से जुड़ी कुछ बेहतरीन तस्वीरें।
उम्मीद है, आप को मेरा यह प्रयास पसंद आएगा। आपकी प्रतिक्रियाओं की मुझे प्रतीक्षा रहेगी।
आपके कमेन्ट मुझे इस ब्लॉग को और बेहतर बनाने की प्रेरणा देंगे।

मंगल मृदुल कामनाओं सहित
आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त

डा० कायनात क़ाज़ी

Friday 31 October 2014

अखण्ड भारत के निर्माता थे सरदार पटेल

सरदार पटेल की जयंती पर विशेष


दो दोस्त बैठ कर छुट्टियाँ प्लान कर रहे थे। एक बोला -यार मेरी बीवी की फरमाइश है की हम इन विंटर वेकेशन्स में राजिस्थान टूर पर जाएं। उसे जयपुर से ब्लॉक प्रिंट की चादरें और बन्धेज की चुनरी, जोधपुर से जूतियाँ,पुष्कर से कैमल लैदर के बैग खरीदनी है और जैसलमेर में सेन्ड डियून्स से सनसेट देखना है। दूसरा दोस्त बोला-तो इसमें परेशानी क्या है ? यार जयपुर तो जा सकता हूँ ,राजपूताने का वीसा तो आसानी से मिल जाता है पर मेवाड़ का नहीं मिलता। फिर सोचता हूँ कि भारतपुर बर्ड सेन्चुरी ही दिखा लाऊँ पर जयपुर एस्टेट का भरतपुर एस्टेट से पुराना झगड़ा है ,इसलिए इनके बॉर्डर बंद हैं आजकल।
सुनने में अजीब लग रहा है ना पर ऐसा ही सूरते हाल होता अगर सरदार बल्लभ भाई पटेल 554 प्रिन्सी एस्टेट्स को एकजुट न करते। आज हम बड़े आराम से इस राज्य से उस राज्य में घूम आते हैं और पता भी नहीं चलता। पर उस दिन को सोचिए जब देश आज़ाद होने वाला था और हर प्रिन्सी एस्टेट के पास यह विकल्प था कि वह हमारे देश में रहे या पाकिस्तान के साथ जाए। अगर सभी एस्टेट्स की मर्ज़ी चल जाती तो आज दक्षिण भारत के बीचों बीच एक मिनी पाकिस्तान होता। जिसे आज हम हैदराबाद कहते हैं। कश्मीर तो सिरे से होता ही नहीं मानचित्र मे। इस देश को अखण्ड भारत का स्वरुप देने में सरदार पटेल का योगदान अमूल्य है।




विलायत से बेरिस्टर बन कर आए वल्लभ भाई की वकालत  अपने पूरे शबाब पर चल रही थी। पर जब उन्होंने गाँधी जी के साथ सत्याग्रह आन्दोलन से जुड़ने का फैसला किया तो अपनी सूट बूट वाली विलायती जीवनशैली को तिलांजली  दे दी और खादी  को अपना लिया। बारदोली गुजरात में लगातार पड़ने वाले सूखे और अकाल से किसानो का बुरा हाल था। उसपर अंग्रेजी हुकूमत कमरतोड़ टैक्स वसूल करना चाहती थी। किसानों पर लगातार अत्याचार हो रहे थे। ऐसे में सन 1928 में सरदार पटेल ने बारदोली सत्याग्रह आन्दोलन की बागडोर अपने हाथों में ले ली और आज़ादी की लड़ाई में कूद गए। उन्होंने बारदोली तालुका के 80 हज़ार किसानों को अंग्रेज़ों के खिलाफ एकजुट किया। अंग्रेज़ों के अत्याचारों का सामना करने का साहस पैदा किया। सरदार पटेल ने गाँव-गाँव जाकर  लोगों में साहस पैदा किया। इतने बड़े किसान आन्दोलन के सामने अंग्रेजी हुकूमत को आखिरकार बातचीत के लिए झुकना पड़ा।



सवतन्त्रता आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के अलावा सरदार पटेल ने सवतंत्र भारत के इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण एवं संवेदनशील चरण में भी बड़ी ही अहम भूमिका निभाई। 1945 में शिमला में हुई विशेष बैठकों में लार्ड माउन्ट बेटन व भारतीय सवतन्त्रता सैनानियों के बीच सवतंत्र भारत का प्रारूप आकार ले रहा था। यह वह समय था जब अंग्रेज़ भारतीयों को सत्ता सौंप कर  वापस जाना चाहते थे। पर देश इतनी आसानी से आज़ाद होने वाला  नहीं था। इसमें कई पेंच फसे थे। एक ओर जिन्ना अलग पाकिस्तान की मांग कर रहा था तो दूसरी ओर अंग्रेज़ फूट डालो की नीति पर काम कर रहे थे। देश में554 राजा रजवाड़े थे। जिनके पास यह विकल्प मौजूद था कि वह अपनी इच्छा से भारत या पाकिस्तान के साथ जा सकते हैं। ऐसे में देश को अखण्ड राष्ट्र बनाने की जिम्मेदारी केवल एक व्यक्ति ही निभा  सकता था और वह थे लौह पुरुष -बल्लभ भाई पटेल।
यह एक कठिन कार्य था जिसके लिए असाधारण प्रतिभा की आवशयकता थी। द्रढ़ता,साहस ,चातुर्य,दूरदर्शिता और धैर्य की प्रतिमूर्ति सरदार पटेल के समक्ष कई बड़ी चुनोतियाँ थीं। जैसे 554 राजे रजवाड़ों का विलय ,विभाजन के साथ ही देश  भर में फैले साम्प्रदायिक दंगे, दस लाख हिन्दुओं को पाकिस्तान से सुरक्षित लाना और बारह लाख मुसलमानों को पाकिस्तान जाने का सुरक्षित मार्ग प्रशस्त करना,लाखों की संख्या में आरहे शरणार्थियों के रहने,खाने और सुरक्षा का इन्तिज़ाम करना, विस्थापितों को बसाना, पंजाब,दिल्ली और कलकत्ता में मची खूनी मारकाट को रोकना और शान्ति बहाल करना।



जब लोग नंगी तलवारें हाथों में लिए सड़कों पर एक दूसरे का खून बहाते घूम रहे हों  ऐसे में शांति इस्थापित करना। सरदार पटेल के सामने चुनौतियां चौतरफा थीं और उनसे निपटने के लिए साधन सिमित थे। देश का गृह मंत्री होने के नाते उन्हें सभी ज़िम्मेदारियाँ पूरी करनी थीं फिर चाहे पाकिस्तान के साथ संसाधनो का बटवारा हो या फिर अन्त तक विलय के लिए राज़ी न हुए राजाओं से सख्ती से निपटना हो।
देश का राजनैतिक व भौगोलिक एकीकरण सरदार पटेल की सबसे बड़ी उपलब्धि  मानी  जाएगी। राजाओं से विलय पत्र पर हस्ताक्षर करवाने के लिए साम ,दाम दण्ड  और भेद का प्रयोग कर उन्होंने इस असंभव कार्य को संभव बनाया। आपको यह जान कर हैरानी होगी कि 1947 में जब शताब्दियों की दासता के बाद देश ने आज़ादी का मंगल प्रभात देखा तब कश्मीर और हैदराबाद उसमे शामिल नहीं थे। इनके विलय के बिना ही देश स्वतंत्र  हुआ था। जूनागढ़ को जिन्ना पाकिस्तान में मिलाना चाहता था पर उसकी भौगोलिक और सामाजिक स्थिति इसकी इजाज़त नहीं देती थी।



 जूनागढ़ के तीन ओर भारत की सीमाएं और चौथ ओर समुद्र था। यहाँ की जनता का 80 प्रतिशत भाग हिन्दू था और नवाब मुस्लिम। इसके अलावा जूनागढ़ से पाकिस्तान 300 मील दूर था। जूनागढ़ के नवाब पर जिन्ना का हाथ था। तब सरदार पटेल ने जाकर वहां की जनता से उनकी राय  पूछी। वहां की जनता भारत के साथ रहना चाहती थी। पटेल ने भारतीय फौजों को जूनागढ़ की सीमाओं पर तैनात किया और बात बन गई। इसी प्रकार कश्मीर का राजा हरिसिंह आज़ाद एस्टेट चाहता था जो कि किसी भी  संभव न था। वह विलय के लिए राज़ी न था। पर जब पाकिस्तानी कबाइली सेनाओं ने श्रीनगर के बाहरी इलाकों पर कब्ज़ा कर लिया  तब हरी सिंह किसी तरह जान बचा कर जम्मू पहुंचा और भारत के साथ विलय को राज़ी हुआ। तब भारतीय सेना ने जाकर कबाइली सेना को भारत से खदेड़ा।हैदराबाद के साथ भी कई दौर की वार्ता बेकार हो चुकी थी।



हैदराबाद भी पाकिस्तान के साथ जाना चाहता था पर उसे तो दिया ही नहीं जा सकता था। हैदराबाद दक्षिण में बिलकुल बीचों बीच स्थित होने के कारण ऐसा करना असम्भव था। अंत में सरदार पटेल को कड़ा फैसला लेना पड़ा और भारतीय सेना ने 5 दिन में ही निज़ाम की सेना से हथियार डलवा दिए।
इतना ही नहीं भारत  विश्व के सबसे बड़े गणतंत्र का रूप देने के लिए नए राज्यों का गठन करना भी पटेल की ही जिम्मेदारी  थी। इस महान हस्ती ने देश के कोने कोने में जाकर देश को बांधा है। आपको जाकर आश्चर्य होगा कि जब उनकी मृत्यु हुई तब उनके बैंक खाते में केवल 226 रूपये थे। हमारे देश को विश्व का सबसे बड़ा गणतंत्र बनाने के लिए उस लौह पुरुष का अतुलनीय योगदान अविस्मरणीय है।

Thursday 16 October 2014

अंगना की चिड़िया


अंगना की चिड़िया


आज विश्व गौरय्या दिवस है। जान कर थोडा मन बेचैन हुआ कि जो कल तक हमारे घर के आँगन में फुदकने वाली छोटी सी चिड़िया थी वो आज न जाने कहाँ गायब हो गई है। हम जो बचपन में सुबह होने का अहसास चिड़ियों की आवाज़ से लगते थे आज वो मधुर गीत कहीं खो से गए हैं। शायद हमारे बच्चे ये कभी जान ही नहीं पाएँगे कि चिड़ियों का कलरव होता क्या है? वो भी हमें गूगल पर सर्च करना होगा। गौरय्या हमारे जीवन का 1 अंग हुआ करती थी जब सुबह-सुबह माँ आंटा गूंधते हुए,आंटे की चिड़िया बना कर बच्चे को खेलने देदेती थी और कभी वक़्त होने पर उस आंटे की चिड़िया को सेंक भी दिया करती थी। बच्चा उलट पलट कर उस आंटे की चिड़िया से घंटों खेलता रहता था।वो आज जैसे सपना सा जान पड़ता है

बचपन में हमारे घर के ऊँचे ऊँचे दालानों में गौरय्या अपना घोंसला बनाया करती तो बस हमारी ख़ुशी का ठिकाना न होता। हम पूरे घर में सब को बता देते की गौरय्या घोंसला बना रही है। अब्बू की सख्त हिदायत होती कि कोई उनको डिस्टर्ब नहीं करेगा। आगे वो हमें डरा भी देते " अगर तुम लोगों ने ज्यादा शोर मचाया तो गौरय्या अपना घर यहाँ नहीं बनाएगी, और तो और बच्चे भी फिर कहीं और जाकर ही देगी।" और अब्बू का ये फार्मूला काम कर जाता। हम घोंसला बन जाने तक पूरी शराफत का सुबूत देते और दूर दूर से चिड़िया और चिरोंटे को 1-1 तिनका लाकर घोंसला बनता देखते।

दिन हफ़्तों में बदलते जाते पर चिड़िया के बच्चे अण्डों से न निकलते। हम रोज़ अब्बू की जान खाते " बच्चे कब निकलेंगे?" अब्बू कहते सब्र करो बच्चों, 1 दिन बच्चे ज़रूर निकलेंगे ।अभी चिड़िया अण्डों को सहती है| तुम चिड़िया के दाने और पानी का धयान रखो।

और 1फिर दिन लम्बे इन्तिज़ार के बाद हमें चिड़िया के छोटे बच्चों की आवाज़ सुनाई देती| हमारी ख़ुशी का ठिकाना न रहता।समझना मुश्किल होता की कौन ज्यादा चेह चाहता था हम या चिड़िया के बच्चे। हम पूरे मोहल्ले में जाकर 1-1 को बता देते की हमारे घर पर चिड़िया ने बच्चे दिए हैं। आप देखने ज़रूर आना। यहाँ तक की फेरी वाले और कुल्फी वाले तक को न्योता चला जाता।

गर्मियों की बोर दोपहर भले ही बड़ों के लिए उबाऊ होती थी पर हमारे लिए तो बहुत मज़ेदार होती थी।बच्चों की टोली दालान में ही डेरा जमाए रहती ।अम्मी बेचारी नाहक़ ही हलकान हुए जातीं कि थोडा दोपहर में सो जाओ, पर हमारी आँखों में नींद कहाँ?

अब्बू आते जाते आगाह किया करते" कोई दालान का पंखा न चला देना। चिड़िया को बच्चों के लिए खाना लेने बार बार जाना होता है।


उन दिनों घर में चर्चा का मुख्य विषय भी चिड़िया की फॅमिली ही होती थी। वो भी क्या दिन थे हमें खुश रखने के लिए किसी प्ले स्टेशन की ज़रुरत नहीं होती थी।

हम तो उन नन्हे चिड़िया के बच्चों को देख देख कर जिया करते थे ।घर में आए मेहमान को हाथ पकड़ कर सबसे पहले चिड़िया के घोंसले और उनके बच्चों के दर्शन करवाए जाते तब जाकर मेहमान कहीं साँस ले पाता ।

मैं और मेरी बड़ी बहन हमारे बावर्चीखाने से झोली में भर भर के बिरयानी के महंगे बांसमती चावल चिड़ियों की दावत में उड़ा देते। गर्मियों की वो सुहानी शामें भुलाए नहीं भूलतीं जब हमारी छत पर चिड़ियों के परे के परे दाना चुगने आया करते। हम दाना डाल कर कोने में खामोश खड़े हो कर चिड़ियों के आने का इन्तिज़ार करते और अगर किसी ने ज़रा सी आहत की तो चिड़ियाँ फुर्रर्र से उड़ जातीं और हम उनके आने का दुबारा इन्तिज़ार करते।


चिड़ियाँ झुंड में आतीं और पूरा का पूरा दाना कुछ ही देर में साफ़ कर जातीं।उनको खाता देख मन को जो सुकून मिलता वो शब्दों में बयां नहीं की जा सकती है ।

चिड़ियों के लिए पानी का बर्तन रोज़ धो कर पानी भरने की ज़िम्मेदारी उन दिनों मेरी हुआ करती थी। मैं बिना कोताही के बड़ी तन्मयता से ये काम करती।

कितनी ही घायल चिड़ियों की नैटिन्गेल में खुद बनी हूँ ।उनको उठा कर लाना,उनके ज़ख्म साफ़ करना

और ज़ख्म साफ़ करते करते आँसू बहाना। आज भले ही इस बात पर कोई विश्वास न करे पर उस वक़्त उनका दर्द मुझे खुद महसूस होता था। बाल मन में कितनी करुणा होती है इसका अंदाज़ा हम इसी बात से लगा सकते हैं।

और अगर खुदा न ख्वास्त: ज़ख़्मी चिड़िया इन्तिकाल फरमा जाए तो फिर पूरे कफ़न दफ़न का इन्तिज़ाम करना मेरा फ़र्ज़ होता। उस दिन सोग में टीवी नहीं देखा जाता । चिड़िया की मौत हमारे लिए राष्ट्रीय शोक जैसी होती। और जब ये शोक खाना न खाने तक पहुँचता तब अम्मी का सब्र जवाब देजाता और हमारी ताजपोशी की नौबत आजाती। हमेशा की तरह अब्बू बिचारे बीच में आकर सीज फायर करवाते, और हमे मना कर खाना खिलवाते।

अलबत्ता कुछ दोस्त तो चिड़िया की मौत पर पुरसा भी करने आजाते।

पहले चिड़ियाँ हमारे गीतों का हिस्सा भी होती थीं। एक मशहूर गीत है "बाबुल तेरे अंगना की मैं तोऐसी चिड़िया रे ........."

अब न तो वो आंगन रहे,

न वो चिड़िया रही

और न ही बाबुल ही रहे .........

बिछड़े सभी बरी- बरी .............

About my journey

एक फोटोग्राफर की डायरी से….



मैं एक महिला फोटोग्राफर और साहित्यकार हूँ, घूमने -फिरने का शौक़ बचपन से है। हमने अपने बचपन में बहुत सारे शहर देखे और आज भी मैं अपने देश की विविधता पर मोहित हूँ। आप किसी भी दिशा में निकल जाएँ, आपको हमेशा कुछ नया, कुछ अनोखा देखने को मिलेगा। जब आधी आबादी टीम ने मुझे कुछ लिखने को कहा तो मेरे मन में आया कि आप के साथ अपनी यात्रा के अनुभव साझा करूँ। मैं काफी घूमती हूँ और नए लोगों से मिलना और उनसे बात करना मुझे पसंद है। उनके जीवन को देखना और हो सके तो उनके जीवन का हिस्सा बनना मुझे खूब सुहाता है महिलाओं और बच्चों की निर्मल हंसी मुझे आकर्षित करती है मैं बहुत सारे स्थानों पर जाती हूँ कभी पहाड़ों पर,कभी बीचों के शहर गोवातो कभी राजिस्थान के रंग और संस्कृति को समेटने जोधपुर, जयपुर और पुष्कर।मुझे अलग अलग प्रदेशों के संस्कृतिक उत्सवों की तस्वीरें खींचना पसंद है
बचपन में जब स्कूल खुलने वाले होते थे तो बहुत ख़ुशी होती थी, ख़ुशी नई कक्षा में जाने की, ख़ुशी नई -नई किताबें पाने की नई किताबें पाने की जितनी बेताबी होती थी उतनी ही उजलत होती थी उन्हें बांचने की मेरा सबसे प्रिये विषय -"हिन्दी साहित्य "
एक साँस में हिन्दी की किताब पढ़ डाली जाती किताब पर कवर चढ़ाने का सब्र भी कहाँ होता था
उन दिनों जब हिंदी की किताब में किसी का लिखा यात्रा वृतान्त पढ़ती तो खुद ही चमत्कृत हो जाती कि ये शायद किसी और ही दुनिया के लोग होते होंगे जो बस निकल पड़ते होंगे यात्रा करने इतिहास की किताब में फाह्यान और हीनयान  की तस्वीरें देखती तो उनके बारे में सोचती रहती कितना अच्छा होता होगा इनका जीवन। घूमते होंगे, लोगों से मिलते होंगे। उनको अपने देश के बारे में बताते होंगे ....
नए लोगों से मिलना और उनके बारे में जानना मुझमे रोमांच भर देता।
हिंदी साहित्य के यात्रा वृतांत पढ़ती तो लगता मैं लेखक के साथ ही घूम रही हूँ| जो स्वाद लेखक ने चखे होंगे उनको मैं भी महसूस करती
 फिर अपने अब्बू से पूछती कि ऐसा कैसे हुआ ?
वो समझाते -" ऐसा लेखन एक खास कला है, लेखक इस तरह से अक्कासी करता है कि  पढ़ने  वाले को लगता है जैसे वो चीज़ों को अपनी आँखों से होते देख रहा हो। इसके लिए ज़रूरी है ऑब्जरवेशन पावर का होना। आपका मन शांत हो और जिस जगह पर आप हों वहां सौ फीसदी हों। तभी आप चीज़ों को minutely ओब्सेर्व कर पाएँगे  
अब्बू की नसीहत कब दिमाग़  में कब बैठ गई पता नहीं चला शायद अक्कासी का फन मुझे उन्ही से विरासत में मिला है वो कहीं भी जाते लौट कर आके तो टू दा पॉइंट वहां का आँखों देखा हाल सुनते  मेरी भाषा में कहें तो फ्रेम दर  फ्रेम।

इसी क्रम में मैंने हिन्दी साहित्य की नई विधा-यात्रा वृतान्त  लिखना शुरू किया है। अपनी यात्रा के अनुभवों को शब्दों में बांधने की कोशिश की है। आशा करती हूँ आपको पसंद आएंगी।

आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त 

डा० कायनात क़ाज़ी