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कुछ पंक्तियां इस ब्लॉग के बारे में :

प्रिय पाठक,
हिन्दी के प्रथम ट्रेवल फ़ोटोग्राफ़ी ब्लॉग पर आपका स्वागत है.….
ऐसा नहीं है कि हिन्दी में अच्छे ब्लॉग लिखने वालों की कमी है। हिन्दी में लोग एक से एक बेहतरीन ब्लॉग्स लिख रहे हैं। पर एक चीज़ की कमी अक्सर खलती है। जहां ब्लॉग पर अच्छा कन्टेन्ट है वहां एक अच्छी क्वालिटी की तस्वीर नहीं मिलती और जिन ब्लॉग्स पर अच्छी तस्वीरें होती हैं वहां कन्टेन्ट उतना अच्छा नहीं होता। मैं साहित्यकार के अलावा एक ट्रेवल राइटर और फोटोग्राफर हूँ। मैंने अपने इस ब्लॉग के ज़रिये इस दूरी को पाटने का प्रयास किया है। मेरा यह ब्लॉग हिन्दी का प्रथम ट्रेवल फ़ोटोग्राफ़ी ब्लॉग है। जहाँ आपको मिलेगी भारत के कुछ अनछुए पहलुओं, अनदेखे स्थानों की सविस्तार जानकारी और उन स्थानों से जुड़ी कुछ बेहतरीन तस्वीरें।
उम्मीद है, आप को मेरा यह प्रयास पसंद आएगा। आपकी प्रतिक्रियाओं की मुझे प्रतीक्षा रहेगी।
आपके कमेन्ट मुझे इस ब्लॉग को और बेहतर बनाने की प्रेरणा देंगे।

मंगल मृदुल कामनाओं सहित
आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त

डा० कायनात क़ाज़ी

Thursday, 10 September 2015

दा ग्रेट हिमालय कॉलिंग... आठवां दिन मनाली

दा ग्रेट हिमालय कॉलिंग... आठवां दिन मनाली

The Great Himalayas Calling...
Day-08

Beas River@ Manali


नग्गर के ऐतिहासिक मुरलीधर का मंदिर देखने के बाद हमें आगे बढ़ना होगा। मुसाफिर के लिए आगे बढ़ना ही ज़िन्दगी है। यह जगह इतनी ख़ूबसूरत है कि इसे छोड़ कर जाने का मन तो नहीं है पर जाना तो होगा ही। मैंने भारी मन से सामान बांधा और एक नज़र नग्गर कैसल के विशाल अहाते को देखा। सामने मनाली को जाने वाला रास्ता गाड़ियों की छोटी छोटी हेड लाइटों से जगमगा रहा था। यह जगह सामरिक महत्व से बहुत मुनासिब है यहां से बैठ कर पूरी कुल्लू वैली पर नज़र रखी जा सकती है। शायद इसी लिए नग्गर के राजा ने अपना दुर्ग बनाने के लिए इस स्थान का चुनाव किया होगा। नग्गर केसल के रस्टोरेंट का एक हिस्सा वैली के ऊपर बने दालानों में बना है। जहां खूबसूरत झरोखे बनाए गए हैं। हमने यहां बैठ कर अपना नाश्ता ख़त्म किया। होटल के एक स्टाफ ने नीचे इशारा करते हुए हमें एक घर दिखाया और बताया कि प्रियंका चौपड़ा की फिल्म मैरीकोम की शूटिंग इसी घर में हुई थी। हमने नग्गर कैसल को अलविदा कहा और निकल पड़े मनाली की ओर। महान हिमालय में बसे यह शांत गांव आपको वापस नहीं आने देते। दिल करता है कि कुछ दिन और गुज़ार लें। इतनी शुद्ध और ताज़ी हवा हम बड़े शहरों में रहने वालों को कहां नसीब होती है।


Beas River on the way to Manali

मेरी इस पूरी यात्रा में ब्यास नदी मेरी साथी रही है। कभी मेरे दाईं  ओर तो कभी मेरे बाईं ओर। दूध की सफ़ेद धार सा निर्मल जल जाने कितनों की प्यास बुझाता होगा। रिवर राफ्टिंग के शौकीनों के लिए यह जगह स्वर्ग जैसी है। मनाली के रास्ते में कई सारे पॉइंट्स हैं जहां से रिवर राफ्टिंग की जा सकती है। 


River rafting in Beas river

एक बार फिर हम पहाड़ों की पतली सडकों पर थे जो किसी हसीना की कमर पर झूलती कंधोनी की तरह पहाड़ों से लिपटी हुई मनाली की ओर आगे बढ़ रही थी। नग्गर से मनाली लगभग 18 किलोमीटर दूर है। यहां तक का हमारा सफर बेहद सुकून भरा और मन को शांत करने वाला था। यहां शोर तो था पर एकदम अलग क़िस्म का, चिड़ियों की चहचहाट का शोर, बड़े-बड़े पत्थरों पर नदी की तेज़ धार के टकराना का शोर, हवा के झोकों कर झूलते पाइन की कोमल कलियों का आपस में टकराने का शोर। इस घने जंगल में पेड़ों के झुरमुट से आती झींगरों की आवाज़ों का शोर, दूर गांव में किसी के लकड़ियां काटने का शोर, सड़क के बीचों बीच धान की घांस सुखाती पहाड़नों की खिलखिलाहट का शोर, किसी झोंपड़ी में शांत दोपहर में याक की ऊन से हथकरघे पर शॉल बुनने की खड़-खड़ का शोर। गांव की चौपाल पर बैठे पहाड़ी बुज़ुर्गों के हुक्के की गुड़गुड़ का शोर। पहाड़ी सड़क के अंधे ख़तरनाक मोड़ पर सामने से आती गाड़ी के हॉर्न से आता, एकांत की नीरवता को भंग करता शोर। हमारी दुनियां के शोर से बिलकुल जुदा और कानों को भला लगने वाला। 


The Dhauladhar range


लेकिन मनाली पहुंचते पहुंचते मेरा यह सुन्दर सपना डीज़ल की गाड़ियों से निकलते प्रदूषण और लगातार बजते हॉर्न से आते शोर से टूट गया। मेरी एक सलाह है, अगर आप हिमालय की यात्रा प्राकृतिक सुंदरता और शांति के लिए करना चाहते हैं तो हिमालय के अंदरुनी हिस्सों में जाएं। मनाली इतना ज़्यादा टूरिस्ट एरिआ बन चुका है कि अपनी सुंदरता ही खो बैठा है। मनाली शुरू होते ही जगह जगह कुकुरमुत्ते से उग आए होटल पहाड़ों की क़ुदरती खूबसूरती को निगलते से जान पड़ते हैं। इतनी शांत जगह से होकर आते हुए मेरे लिए मनाली में रुकना बहुत मुश्किल था। 


KK@Vashishth


शुक्र है हमने अपने ठहरने की व्यवस्था मनाली से बाहर वशिष्ठ में की थी। यह मनाली से थोड़ा आगे पड़ता है और मनाली की भीड़ और आपाधापी से बचा हुआ है। वशिष्ट मनाली से मात्र तीन किलोमीटर आगे लेह मनाली हाइवे पर दाईं ओर थोड़ा ऊपर जाकर पड़ता है। जिसके बाईं ओर ब्यास नदी बहती है और उसके पीछे विशाल पीर पंजाल पर्वत श्रंखला क़तार में खड़ी है।


on the way to Manali-wooden carving work on the gate of a temple

 यहां प्रसिद्ध ऋषि वशिष्ठ का मंदिर है और कुदरती गर्म पानी के सोते भी है। यह जगह ट्रैवलर्स के बीच काफी पसंद की जाती है। यहां मनाली की भीड़ न होकर शांत वातावरण है। पहाड़ी पठार पर बसा वशिष्ठ गांव आज देसी विदेशी ट्रैवलर्स के ठहरने की पहली पसंद है। यहां कई अच्छे कैफे और रेस्टॉरेन्ट बने हुए हैं। हमने यहां पीरपंजाल कॉटेज में स्टे किया। यह एक कोलोनियल लुक वाली दो मंज़िला कॉटेज थी ,जोकि सेब के बागान के बीच बनी हुई थी। हमारी होस्ट दो नौजवान लड़कियां थीं। जिनमे से एक देहरादून और दूसरी पुणे की थी और आजकल टेंपरेरी तौर पर इस कॉटेज के मैनेजर कम कयर टेकर की जॉब कर रही थी।


Girls playing in the campus of the temple


हमने फ्रेश होकर मनाली घूमने का प्लान बनाया। मनाली सिटी में एक मंदिर है जिसे देखने लगभग सभी जाते हैं-हिडिम्बा देवी टैम्पल। हमने भी यहीं से शुरुआत की।
यह मंदिर मनाली के पास ढूंगरी नामक स्थान पर पाइन के जंगलों में एक ऊंचे शिखर पर बना हुआ है। कहा जाता है कि यह मंदिर हिडिम्बा देवी को समर्पित है। हिडिम्बा देवी का सम्बन्ध महाभारत के भीम से जुड़ा हुआ है। यहां के लोग इस से जुड़ी बड़ी रोचक कहानी सुनाते हैं। लीजिये आप भी सुनिए।


Hidimba devi temple


महाभारत काल में जब पांडव वनवास का समय जंगल में गुज़ार रहे थे, तब पांडवों का घर जला दिया गया था, पांडवों ने वहां से भाग कर एक दूसरे वन में शरण ली थी। जहाँ पीली आँखों वाला हिडिंब राक्षस अपनी बहन हिंडिबा के साथ रहता था। एक दिन हिडिंब ने अपनी बहन हिंडिबा से वन में भोजन की तलाश करने के लिये भेजा परन्तु वहां हिंडिबा ने पाँचों पाण्डवों सहित उनकी माता कुन्ति को देखा। इस राक्षसी का भीम को देखते ही उससे प्रेम हो गया, हिडिम्बा भीम के बल और शक्तिशाली शरीर को देख कर उस पर मोहित हो गई और उसने एक सुन्दर रूपवती का भेस बना कर भीम को सब सच बता दिया। हिडिम्बा ने अपने भाई से पांडवों की रक्षा की और भीम को अपने भाई से युद्ध करने में मदद की जिससे खुश होकर वहाँ जंगल में ही कुंती की आज्ञा से हिंडिबा एवं भीम दोनों का विवाह हुआ। यह मंदिर उन्हीं देवी हिडिम्बा को समर्पित है। वैसे तो यह मंदिर अति प्राचीन है पर इसका पैगोडा शैली में निर्माण महाराजा बहादुर सिंह ने 15वीं शताब्दी में करवाया। उन्होंने ही नग्गर के त्रिपुरा सुंदरी मंदिर का भी निर्माण करवाया था इसी लिए देखने में यह दोनों मंदिर एक जैसे दिखाई देते हैं।
इस मंदिर तक जाने के दो रास्ते हैं। हमारा ड्राइवर हमें उत्तरी द्वार से मंदिर की सीढ़ियों तक लेकर गया। अगर आप मुख्य द्वार से आएंगे तो आपको ज़्यादा चलना पड़ेगा। उत्तरी द्वार कॉलोनी से होकर गुज़रता है। पाइन के ऊंचे-ऊंचे पेड़ों के बीच लकड़ी और पत्थर से बना यह मंदिर पर्यटकों से भरा हुआ था। यहां के स्थानीय लोगों में इस जगह की विशेष मान्यता है। इस मंदिर का एक और नाम भी है-धूंगरी मंदिर। यह पूरा का पूरा मंदिर लकड़ी का बना है इसकी छत भी लकड़ी से ही बनाई गई है। दीवारें भी लकड़ी की ही है जिनपर नक्कशी से देवी-देवताओं के जीवन की एक झलक दिखाई गई है, मंदिर के भीतर महिषासुर मर्दिनी की मूर्ति है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर लकड़ी पर कुल्लू रियासत के तत्कालीन राजा बहादुर सिंह का नाम और निर्माण तिथि संवत् 1436 अंकित है।
इस मंदिर की ऊंचाई 40 मीटर है। इसका आकार कोन(शंकु) जैसा है। पैगोडा शैली के इस मंदिर की विशेषता यह है कि इसके चार छतें हैं। ऊपर तीन छतें वर्गाकार हैं और चौथी छत कोन(शंकु) आकर की है जिस पर चारों ओर पीतल लगा है। नीचे से ऊपर की ओर हर छत क्रमश: छोटी होती जाती है और शीर्ष तक पहुँच कर कलश का आकार ले लेती है.


KK@Hidimba devi temple


हम मंदिर प्रांगण में खड़े इस विशाल और ऐतिहासिक मंदिर को देख रहे थे, मंदिर से लगे हुए ही पुष्प वाटिका है। हमने मंदिर को अंदर से देखने का फैसला किया। इस मंदिर में, हिडिम्बा देवी के पैर के निशान भी हैं जिन्हें एक गुफा के भीतर सुरक्षित रखा गया है। मंदिर की दीवार पर अनेक पशुओं के सींग टंगे हैं जैसे बकरे, मेंढे और भैंसे, यामू, टंगरोल और बारासिंघा। कहते हैं यहां पर जानवरों की बलि दी जाती थी और उसके बाद उनकी सींग यहीं पर टांग दिए जाते थे।

मंदिर के भीतर माता की एक पालकी है जिसे समय-समय पर रंगीन वस्त्र एवं आभूषणों से सुसज्जित करके बाहर निकाला जाता है। हिडिम्बा को काली का अवतार कहा गया है। इसी कारण इस मंदिर के अन्दर दुर्गा की मूर्ति भी है। हिडिम्बा मनाली के ऊझी क्षेत्र की अधिष्ठात्री देवी हैं। इसलिए यहां के लोग खुद को हिडिम्बा देवी की प्रजा मानते हैं। ज्येष्ठ संक्रांति के दिन ढूंगरी में देवी के यहां भारी मेला लगता है। मंदिर के बाहर श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ था। मंदिर के प्रांगण में लोग हिमाचली ड्रेस में फोटो खिंचवा रहे थे। एक ग्रामीण महिला हाथों में अंगोरा खरगोश लिए लोगों को दिखा रही थी। यह खरगोश हमारे यहां पाए जाने वाले खरगोश से आकार में बड़ा होता है और इसके बाल भी बड़े बड़े होते हैं। इस खरगोश के बालों से ऊन बनाई जाती है ,जिससे कई चीज़ें बनती हैं ,जैसे स्वेटर,शॉल आदि। यह शॉल बहुत हलकी और मुलायम होती है। अगर आप भी यह शाल खरीदना चाहते हैं तो हिमाचल हैंडलूम की शॉप से ही खरीदें। यह शॉल थोड़ी क़ीमती होती है पर गर्म बहुत होती है। आप भी दस रुपए  देकर अंगोरा खरगोश को गोद में उठा सकते हैं।

A beatuful girl with a soft Angora rabbit 


मंदिर देखते देखते हमें पूरे दो घंटे लग गए। इसके बाद हमने लंच किया और सोलांग वैली  देखने निकल गए।
सोलांग वैली का ब्यौरा अगली पोस्ट में।

इस सीरीज़ की अगली पोस्ट देखने के लिए यहां क्लिक करें:


फिर मिलेंगे दोस्तों, अगले पड़ाव में हिमालय के कुछ अनछुए पहलुओं के साथ,


तब तक खुश रहिये, और घूमते रहिये,

आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त


डा० कायनात क़ाज़ी


6 comments:

  1. धन्यवाद हमें आपने घर बेठे मनाली भ्रमण करा दिया. और हिंदी में आपने इसकी शुरवात की बहुत खुब.

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    1. अनुज जी, आपको मेरी लिखी पोस्ट पसंद आई ।इसीलिए बहुत बहुत शुक्रिया .... मेरे ब्लॉग पर ऐसे ही आते रहिएगा। आपकी सराहना मुझे और अच्छा काम करने की प्रेरणा देते है ।

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  2. अति सुंदर चित्रण किया है ।

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    1. प्रिये गुर्मुख जी, मेरा काम पसंद करने के लिए शुक्रिया ।

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  3. रोचक, ज्ञानवर्धक और यथार्थ चित्रण

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    1. प्रिये नटवर जी, मेरा काम पसंद करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया । मेरे ब्लॉग पर आते रहिएगा ।

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