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कुछ पंक्तियां इस ब्लॉग के बारे में :

प्रिय पाठक,
हिन्दी के प्रथम ट्रेवल फ़ोटोग्राफ़ी ब्लॉग पर आपका स्वागत है.….
ऐसा नहीं है कि हिन्दी में अच्छे ब्लॉग लिखने वालों की कमी है। हिन्दी में लोग एक से एक बेहतरीन ब्लॉग्स लिख रहे हैं। पर एक चीज़ की कमी अक्सर खलती है। जहां ब्लॉग पर अच्छा कन्टेन्ट है वहां एक अच्छी क्वालिटी की तस्वीर नहीं मिलती और जिन ब्लॉग्स पर अच्छी तस्वीरें होती हैं वहां कन्टेन्ट उतना अच्छा नहीं होता। मैं साहित्यकार के अलावा एक ट्रेवल राइटर और फोटोग्राफर हूँ। मैंने अपने इस ब्लॉग के ज़रिये इस दूरी को पाटने का प्रयास किया है। मेरा यह ब्लॉग हिन्दी का प्रथम ट्रेवल फ़ोटोग्राफ़ी ब्लॉग है। जहाँ आपको मिलेगी भारत के कुछ अनछुए पहलुओं, अनदेखे स्थानों की सविस्तार जानकारी और उन स्थानों से जुड़ी कुछ बेहतरीन तस्वीरें।
उम्मीद है, आप को मेरा यह प्रयास पसंद आएगा। आपकी प्रतिक्रियाओं की मुझे प्रतीक्षा रहेगी।
आपके कमेन्ट मुझे इस ब्लॉग को और बेहतर बनाने की प्रेरणा देंगे।

मंगल मृदुल कामनाओं सहित
आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त

डा० कायनात क़ाज़ी

Tuesday 20 December 2016

गुजरात से लाइव: कहानी नमक की....

गुजरात से लाइव: कहानी नमक की....




हम जैसे-जैसे कच्छ की और बढ़ रहे हैं हवा में नमक की मौजूदगी महसूस होने लगी है। हम समुन्दर से बहुत दूर नहीं हैं। हमारे उलटे हाथ की तरफ कुछ मीलों के फासले पर समुद्री रेखा शुरू होती है। सड़क के आस पास नमक के मैदान दिखने लगे हैं जहाँ बड़ी-बड़ी क्यारियां बना कर उनमे पानी को सुखाया जा रहा है। ये बड़ी प्राचीन पद्धति है। भारत को ऐसे ही नहीं दुनिया का तीसरे नंबर का नमक के उत्पादन में अग्रणी माना जाता। यहाँ की भूमि में नमक की मात्रा की अधिकता होती है इसीलिए कुछ और पैदा नहीं हो सकता। यहाँ के किसानों ने इसका तोड़ निकल और नमक की ही खेती करनी शुरू कर दी। लिटिल रण ऑफ़ कच्छ में एक जगह है जिसे खारा घोड़ा कहा जाता है। यह गुजरात के  सुरेन्द्रनगर ज़िले में आता है।


यहाँ अंग्रेजों ने नमक का उत्पादन शुरू किया जिसे बाद में हिंदुस्तान साल्ट लिमिटेड ने आगे बढ़ाया। यहाँ 23,000 हज़ार एकड़ में नमक का उत्पादन किया जाता है। जबकि इस छोटे से गांव की जनसंख्या केवल 10 हज़ार है। पूरा का पूरा गांव नमक के काम में लगा हुआ है। इस गांव में ब्रिटिश साम्राज्य के कुछ अंश अभी भी दिखाई देते हैं। जैसे भारत का पहला शॉपिंग मॉल यहीं बना। सन् 1905 में सर बुल्कले ने इस मॉल को बनवाया। आज भी यहाँ 8-10 दुकाने बाकी हैं जो कि गांववालों की ज़रूरत की चीजों की पूर्ति एक ही छत के नीचे करती हैं।


मुझे गांव कुछ ख़ाली-ख़ाली सा लगा मालूम किया तो पता चला की सभी लोग पास ही बनी साल्ट फैक्ट्री में काम करने गए हुए हैं। हम ने नमक की फैक्ट्री का रुख किया। हम जैसे जैसे आगे बढ़ते जा रहे थे हमें नमक के ऊँचे ऊँचे ढ़ेर दिखने लगे थे। यह ढ़ेर सफ़ेद और भूरे रंग के थे।




खेतों में पानी को जमा करके उस पानी को धुप से प्राकृतिक तरीके से सुखाने जाता है। जब पानी वाष्प बन कर उड़ जाता है तो ऊपर ऊपर नमक की एक मोटी परत बन जाती है जिसे सावधानी से उठा लिया जाता है। खेतों से जमा किया यह नमक यहाँ फैक्ट्री में लाकर ऊँचे ऊँचे ढ़ेरों में जमा किया जाता है जिसे कुछ दिन के लिए ऐसे ही छोड़ दिया जाता है।

बाद में जेसीबी की मदद से यह नमक, जिसमे की अभी बड़ी मात्रा में मिट्टी के अंश मौजूद हैं को फैक्ट्री के अंदर प्रोसेसिंग के लिए लेकर जाया जाता है। जहाँ मशीनों से नमक की धुलाई होती है और उस में से अशुद्धियों को निकाला जाता है।



नमक साफ़ होने के बाद यह अंदर एक बड़े हॉल में पैकिंग के लिए पहुँचता है जहाँ पर बहुत सारे लोग बैठ कर मेनुअल तरीके से इसकी पैकिंग करते हैं। यहाँ पुरा का पूरा परिवार पैकिंग के काम में लगा होता है।

तो क्यों दोस्तों है न मज़ेदार नमक की कहानी।



फिर मिलेंगे दोस्तों, भारत दर्शन में किसी नए शहर की यात्रा पर, तब तक खुश रहिये, और घूमते रहिये,

आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त

डा० कायनात क़ाज़ी

2 comments:

  1. Prashant Shah Vella11 January 2017 at 14:52

    वाकई नमक का सैरनामा अद्भुत है... शुक्रिया

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  2. शुक्रिया प्रशांत जी।

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