कुछ पंक्तियां इस ब्लॉग के बारे में :

प्रिय पाठक,
हिन्दी के प्रथम ट्रेवल फ़ोटोग्राफ़ी ब्लॉग पर आपका स्वागत है.….
ऐसा नहीं है कि हिन्दी में अच्छे ब्लॉग लिखने वालों की कमी है। हिन्दी में लोग एक से एक बेहतरीन ब्लॉग्स लिख रहे हैं। पर एक चीज़ की कमी अक्सर खलती है। जहां ब्लॉग पर अच्छा कन्टेन्ट है वहां एक अच्छी क्वालिटी की तस्वीर नहीं मिलती और जिन ब्लॉग्स पर अच्छी तस्वीरें होती हैं वहां कन्टेन्ट उतना अच्छा नहीं होता। मैं साहित्यकार के अलावा एक ट्रेवल राइटर और फोटोग्राफर हूँ। मैंने अपने इस ब्लॉग के ज़रिये इस दूरी को पाटने का प्रयास किया है। मेरा यह ब्लॉग हिन्दी का प्रथम ट्रेवल फ़ोटोग्राफ़ी ब्लॉग है। जहाँ आपको मिलेगी भारत के कुछ अनछुए पहलुओं, अनदेखे स्थानों की सविस्तार जानकारी और उन स्थानों से जुड़ी कुछ बेहतरीन तस्वीरें।
उम्मीद है, आप को मेरा यह प्रयास पसंद आएगा। आपकी प्रतिक्रियाओं की मुझे प्रतीक्षा रहेगी।
आपके कमेन्ट मुझे इस ब्लॉग को और बेहतर बनाने की प्रेरणा देंगे।

मंगल मृदुल कामनाओं सहित
आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त

डा० कायनात क़ाज़ी
Naggar लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
Naggar लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

गुरुवार, 18 जून 2015

दा ग्रेट हिमालय कॉलिंग....छठा दिन

The great Himalayas calling...
DAY-6-Naggar



छठा  दिन-नग्गर

हिमालय की समृद्ध संस्कृति के दर्शन करने के लिए नग्गर से बेहतर जगह कोई हो  ही नहीं सकती है.इस नगर को राजा विशुद्ध पाल ने बसाया था और यह नगर 400 वर्षों तक कुल्लू की राजधानी रहा है। नग्गर को मंदिरों का नगर  भी कहा जाता है, क्योंकि यही एक ऐसा गांव है, जहां स्थानीय  शैली से लेकर मध्ययुगीन पहाड़ी शिखर शैली के मंदिर मिलेंगे।जब हम कैसल से बहार नग्गर घूमने निकले तो हमें सबसे पहले  कैसल के मुख्य द्वार के सामने  मंदिर मिला, इसका नाम नार सिंह देवता मंदिर था ।हम थोड़ा आगे बढे तो गांव के बीचो-बीच गौरीशंकर का पाषाण मंदिर मिला। इस प्रकार के तीन और मंदिर भी नग्गर में मिलेंगे। एक मंदिर देवी भटन्ती का है तो दूसरा ‘ठाकुर ढावा’ है। गांव में ही देवी त्रिपुर सुन्दरी का मंदिर है। यह मंदिर हिडिम्बा मंदिर के समान पैगोडा शैली का है। इस प्रकार के मंदिरों की तीन से चार छतें होती हैं, जो नीचे से ऊपर की ओर क्रमश: छोटी होती चलती है और सबसे ऊपर कलश होता है। त्रिपुर सुन्दरी पौराणिक देवी होते हुए भी इसे स्थानीय देवी-देवताओं के समान मान्यता है। देवी का अपना रथ और एक सुचारु तंत्र है। यहां मई मास में नग्गर में ‘षाढ़ी जाच’ नाम से एक बड़ा मेला लगता है जब आसपास के अनेक देवी-देवता सज-धज कर नग्गर आते हैं। 



 इस नगर में एक तरफ विश्व धरोहर नग्गर कैसल है तो दूसरी और रुसी चित्रकार निकलाय रौरिक की जागीर है। वह वर्षों पहले रूस से यहाँ आए और इस जगह की सुंदरता में ऐसे खोए कि यहीं बसने  का इरादा कर लिया। और यहाँ के राजा से एक जागीर भी खरीद ली। निकलाय रौरिक हिमालय के प्रेम में ऐसे गिरफ्त हुए कि उनकी सभी पेंटिंग्स हिमालय से जुड़ गईं नग्गर कैसल से लगभग तीन किलो मीटर की दूरी पर यह एस्टेट  मौजूद है। आज यहाँ निकलाय रौरिक के परिवार का कोई नहीं रहता है। इस जगह को संग्रहालय के रूप में बना दिया गया है। इस संग्रहालय में निकलाय रौरिक की सभी 37 पेंटिंग और उनके पुत्र स्वितास्लाव रौरिक की 12 पेंटिग संग्रहालय में सुरक्षित रखी हुई हैं। दार्शनिक, विचारक और चित्रकार रौरिक यहां 1927 में आए। यह पेंटिंग्स हिमालय में ही पाए जाने वाले प्राकृतिक रंगों से बनी हुई हैं.

Nicholas Roerich Art Gallery and Museum: 


मज़ेदार बात यह है कि निकलाय रौरिक के पुत्र स्वितास्लाव रौरिक ने अपने ज़माने की मशहूर फिल्म अभिनेत्री देविका रानी के साथ विवाह किया था। देविका रानी उस ज़माने की सुपर स्टार थीं पर खूबसूरत रुसी चित्रकार के प्रेम में पड़कर उन्होंने अपने करियर को सफलता के चरम शिखर पर छोड़ दिया था और यहाँ नग्गर में आकर बस गईं थीं।नग्गर है ही ऐसी जगह जहाँ बस जाने को जी करता है। आज निकलाय रौरिक का घर एक संग्रहालय बना हुआ है जिसे ऊपर की पहली मंज़िल के बरामदे में से खिड़कियों में से झांक कर देखा जा सकता है। यहाँ खिड़की से झांकते हुए मैंने देविका रानी की स्टडी देखी जिसकी खिड़की पर दो गुड़ियाँ रखी हुई थीं और सामने दिवार पर हाथ से बनाई हुई देविका रानी की पोर्ट्रेट मुस्कुरा रही थी। हर चीज़ थी अपनी जगह ठिकाने पर बस वही नहीं थे जिनका यह घर था। ऐसा लग रहा था जैसे अभी आते ही होंगे। मेज़ पर रखे गुलदस्ते में महकता ताज़ा फूल इस घर में लोगों के होने का भ्रम पैदा कर रहा था।


Naggar Valley view from Nicholas Roerich Art Gallery and Museum: 


रौरिक के चित्रों को देखकर ऐसा लगता है कि मानो उन्होंने हिमालय को अपने मन मस्तिष्क में आत्मसात  कर लिया हो। कला साधकों, समीक्षकों व शोधकर्ताओं के लिये तो यह तीर्थ स्थान है। यहीं पास में रौरिक की समाधि है।

नग्गर प्राकृतिक दृश्यावलियों के बीच एक रमणीक स्थल है। गांव तीन ओर घने देवदार के पेड़ों से घिरा है।इन्ही देवदारों के घने पेड़ों के बीच से होकर ऊपर महाभारत के समय का कृष्ण मंदिर है।  सामने सीढ़ीदार खेत, सेब के बागीचे और से घाटी का सुन्दर दृश्य। यह स्थान ब्यास के बायें तट पर है। नग्गर के राजा ने यहाँ कैसल इसी लिए बनवाया था कि इस कैसल की प्राचीर से वह पूरी कुल्लू वैली  को देख सके। 

Kullu Valley from Naggar Castle
इस अदभुत नगर में घूमते हुए आपको कई बेहतरीन कैफ़े मिल जाएंगे। जहाँ बैठ  कर आप गरमा गरम कॉफी और शानदार चीज़ केक का मज़ा ले सकते हैं। इन सभी जगहों पर अंग्रेज़ों का प्रभाव रहने की वजह से यहाँ बेकरी आइटम्स और कैफ़े भारी  मात्रा  में मिलते हैं। 
नग्गर में मेरा यह प्रवास बेहद शानदार रहा है। अगली पोस्ट में आपको ले चलूंगी। महाभारत काल के एक मंदिर के दर्शन पर। यहीं नग्गर से थोड़ा ऊपर जंगल में जाकर देखना होगा। 
फिर मिलेंगे दोस्तों, अगले पड़ाव में हिमालय के कुछ अनछुए पहलुओं के साथ,

तब तक खुश रहिये, और घूमते रहिये,

आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त




डा० कायनात क़ाज़ी


और पढ़ें: http://hindi.sputniknews.com/hindi.ruvr.ru/2012_06_25/roerich-naggar-chitr/