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कुछ पंक्तियां इस ब्लॉग के बारे में :

प्रिय पाठक,
हिन्दी के प्रथम ट्रेवल फ़ोटोग्राफ़ी ब्लॉग पर आपका स्वागत है.….
ऐसा नहीं है कि हिन्दी में अच्छे ब्लॉग लिखने वालों की कमी है। हिन्दी में लोग एक से एक बेहतरीन ब्लॉग्स लिख रहे हैं। पर एक चीज़ की कमी अक्सर खलती है। जहां ब्लॉग पर अच्छा कन्टेन्ट है वहां एक अच्छी क्वालिटी की तस्वीर नहीं मिलती और जिन ब्लॉग्स पर अच्छी तस्वीरें होती हैं वहां कन्टेन्ट उतना अच्छा नहीं होता। मैं साहित्यकार के अलावा एक ट्रेवल राइटर और फोटोग्राफर हूँ। मैंने अपने इस ब्लॉग के ज़रिये इस दूरी को पाटने का प्रयास किया है। मेरा यह ब्लॉग हिन्दी का प्रथम ट्रेवल फ़ोटोग्राफ़ी ब्लॉग है। जहाँ आपको मिलेगी भारत के कुछ अनछुए पहलुओं, अनदेखे स्थानों की सविस्तार जानकारी और उन स्थानों से जुड़ी कुछ बेहतरीन तस्वीरें।
उम्मीद है, आप को मेरा यह प्रयास पसंद आएगा। आपकी प्रतिक्रियाओं की मुझे प्रतीक्षा रहेगी।
आपके कमेन्ट मुझे इस ब्लॉग को और बेहतर बनाने की प्रेरणा देंगे।

मंगल मृदुल कामनाओं सहित
आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त

डा० कायनात क़ाज़ी

Sunday 15 September 2013

काश, वक्त ठहर जाता


           काश, वक्त ठहर जाता


कायनात काजी
(मध्य प्रदेश के भोजपुर स्थित बेतवा नदी से लौट कर)

नदी के कलरव के बीच एक शांति थी
खुले आसमान के बीच, पक्षियों के कलरव के बीच
एक अजीब सी शांति...
ऐसा लग रहा था मानों शोर थक कर सो गया हो..
रात के सन्नाटे की तरह
खामोश...
पत्थरों पर बैठा एक आदमी नदी में काटा डाले तन्मय होकर मछली के फंसने का इंतजार कर रहा था
नदी के तेज बहाव ने खुरदरे पत्थरों को भी चिकना कर दिया था
हम वहीं पत्थरों पर बैठ गए...
पानी पत्थरों से टकराता हुआ बह रहा था..
अविरल... शांत... निश्छल...
सूरज सिर पर था
हम जहां बैठे थे, वहां पेड़ो की छाया पड़ रही थी.
मैने अपने जूते उतारे, पैंट के पांचे उपर चढाए..
और पानी में पैर डाल कर बैठ गई...
निगाहें आसमान पर टिका दी...
आमीन,
यह जगह कितनी सुंदर है...
बैठना कितना सुखद
मां की गोद सरीखा...
पानी की कल-कल किसी सुरमई गीत सरीखी सुनाई दे रही थी
पानी का स्पर्श
तन से मन तक को भिगो रहा था...
मेरी तरह आप भी अगर मन के कानों से इसे सुनोगो
तो ये पानी, ये हवाएं
ये प्रकृति का स्पर्श
सब गीत गाते मिलेगे...
हर चीज में लय है..
सुर है.. ताल है.. रिद्म है...
जरूरत है बस इसे महसूस करने की...
जहां हम बैठे थे वह स्थान न चौडा था न संकरा
पानी की धार देखकर ऐसा लगा  
जैसे बेतवा
किसी नव यौवना सी सकुचाती सी बह रही है..
मैने पानी की तस्वीरें ली
पानी का वेग बहुत सुंदर था..
सुंदरता इतनी कि कैमरा इसे कैद न कर पाए...
दुधिया पानी छोटे-छोटे पत्थरों से घुमड़ कर बह रहा था...
शायद इसे ही अंग्रेजी में कहते हैं मिल्की इफेक्ट...
सहसा मेरे शरीर में एक खुशनुमा सिहरन सी हुई
एक नया सा अनुभव हुआ
अरे यह क्या
मेरे पैरों से कोई छोटी सी मछली सरसराती हुई निकल गई
स्पर्श... बिलकुल नया, अनजाना सा
विद्युत की तरह, तन को झनझना देने वाला
प्रीतम के पहले स्पर्श सा
मादक.. मोहक..
स्मृति में सदा जीवित रहने वाला.. 
ऊपर नीला आसमान
क्वार का साफ आसमान
यहां-वहां तैरते बादलों के आवारा टुकडे अठखेंलिया करते हुए
लगता था ये वक्त यहीं ठहर जाए...
लेकिन यह तो दुनिया की रीति है
आए हैं तो जाना ही पड़ेगा...






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