कुछ पंक्तियां इस ब्लॉग के बारे में :

प्रिय पाठक,
हिन्दी के प्रथम ट्रेवल फ़ोटोग्राफ़ी ब्लॉग पर आपका स्वागत है.….
ऐसा नहीं है कि हिन्दी में अच्छे ब्लॉग लिखने वालों की कमी है। हिन्दी में लोग एक से एक बेहतरीन ब्लॉग्स लिख रहे हैं। पर एक चीज़ की कमी अक्सर खलती है। जहां ब्लॉग पर अच्छा कन्टेन्ट है वहां एक अच्छी क्वालिटी की तस्वीर नहीं मिलती और जिन ब्लॉग्स पर अच्छी तस्वीरें होती हैं वहां कन्टेन्ट उतना अच्छा नहीं होता। मैं साहित्यकार के अलावा एक ट्रेवल राइटर और फोटोग्राफर हूँ। मैंने अपने इस ब्लॉग के ज़रिये इस दूरी को पाटने का प्रयास किया है। मेरा यह ब्लॉग हिन्दी का प्रथम ट्रेवल फ़ोटोग्राफ़ी ब्लॉग है। जहाँ आपको मिलेगी भारत के कुछ अनछुए पहलुओं, अनदेखे स्थानों की सविस्तार जानकारी और उन स्थानों से जुड़ी कुछ बेहतरीन तस्वीरें।
उम्मीद है, आप को मेरा यह प्रयास पसंद आएगा। आपकी प्रतिक्रियाओं की मुझे प्रतीक्षा रहेगी।
आपके कमेन्ट मुझे इस ब्लॉग को और बेहतर बनाने की प्रेरणा देंगे।

मंगल मृदुल कामनाओं सहित
आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त

डा० कायनात क़ाज़ी
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गुरुवार, 28 अप्रैल 2016

A day in Himachal heritage village Palampur Himachal Pradesh

एक दिन हिमाचली संस्कृति के नाम... 

Day-1

Himachal heritage village Palampur Himachal Pradesh under full Moon


हिमालय से मेरा लगाव पहले प्यार जैसा है, रह-रह कर पास खींचता है। एक आकर्षण है जो वर्षों से निरंतरता बनाए हुए है। अगर कोई पूछे कि वो कौनसी एक चीज़ है जो मुझे अपने मोहपाश में बांधे रखती है? तो कहना मुश्किल होगा। क्यूंकि कोई एक चीज़ नहीं है जिसका नाम लिया जा सके। मेरे पास तो एक लम्बी फेहरिस्त है, मन को सहलाती हिमालय से आती ठंडी हवाएं, नीला आसमान, हरे पीले भूरे रंगों से सजे वन, सफ़ेद चांदनी का दुशाला लपेटे पहाड़, पहाड़ों पर मीलों फैली सड़कें, उन सड़कों के अन्धे मोड़ों पर बंधी रंगीन पताकाएं फ़िज़ा में बौद्ध श्लोकों को घोलती, सबकी सलामती की दुआ करती, पगडंडियों पर दौड़ती भेड़ें और उनके मुस्तैद शिकारी कुत्ते, कोयल की कूक, मोर की बांग, भोर का उजाला, चाय का प्याला, आधी रात का पूरा चाँद, पाईन की महक, नदी की कल-कल, चमकीली धूप, लाल टीन की छतें, सुरमई पत्तरों वाली झोंपड़ियां, जंगली गुलाब की झाड़ियां और उन पर भर-भर आते सजीले फूल, झरने और नाले, मंदिर की घंटियां और मॉनेस्ट्री से आते नम मयो हो रेंगे क्यों की गूंज, फसलों से लहलहाते खेत, खेतों में काम करते लोग, पहाड़ी गोल मटोल बच्चे, पोपले बुज़ुर्ग, कश्मीरी सेब से लाल रुखसारों वाली महिलाऐं और न जाने क्या क्या….देखा बह गई न हिमालय के मोहपाश  में, चलिए चलते हैं एक नई यात्रा पर।

Himachal heritage village Palampur Himachal Pradesh under full Moon

इस दफा पुकार हिमालय के खूबसूरत क्षेत्र-धौलाधार पर्वत श्रृंखला से आईहिमाचल का यह भाग कांगड़ा में पड़ता है। दोस्तों हम पिछली बार ब्यास सिर्किट घूम कर आए थे इस बार हम धौलाधार सर्किट देखेंगे।( ब्यास सिर्किट की पोस्ट देखने के लिए यहाँ क्लिक करें।) धौलाधार सर्किट का एक बेहतरीन शहर है पालमपुर। काँगड़ा वैली में बसा यह शहर अपने में समेटे हुए है, बर्फ से ढ़के पहाड़ जोकि धौलाधार पर्वत श्रृंखला का हिस्सा हैं, बैजनाथ मंदिर, पैराग्लाइडिंग के लिए पूरी दुनियां में मशहूर बीड़ बिलिंग, चाय के बागान और कांगड़ा वैली में चलने वाली टॉय ट्रैन। पालमपुर के नज़दीक ही कई जगहें हैं जहाँ जाया जा सकता है। कुल मिला कर एक लॉन्ग वीकएंड का एक्शन पैक्ड इन्तिज़ाम।

Himachal heritage village Palampur Himachal Pradesh under full Moon

पालमपुर अच्छी तरह देखने के लिए काम से काम 2 से 3 दिन का समय होना चाहिए। दिल्ली से पालमपुर लगभग 530 किलो मीटर पड़ता है। जिसका रूट यह रहेगा:-

दिल्ली-सोनीपत-पानीपत-करनाल-कुरुक्षेत्र-अम्बाला-रूपनगर-कीरतपुरसाहिब-आनंदपुर साहिब-नंगल-ऊना-रानीताल-काँगड़ा-पालमपुर।

अगर आप अपनी कार से जाएंगे तो यह यात्रा 12-13 घंटे में पूरी होती है। पालमपुर पहुँचने के लिए सबसे अच्छा साधन है, हिमाचल परिवाहन की वोल्वो बसें। यह दिल्ली कश्मीरी गेट से चलती हैं और सीधा पालमपुर उतारती हैं। वैसे तो यह बसें दिन में कई समयों पर चलती हैं पर रात की वोल्वो सबसे अच्छी रहती है, सुबह-सुबह पालमपुर पहुंचा देती हैं।

Himachal heritage village Palampur Himachal Pradesh in the morning

वैसे तो पालमपुर के नज़दीक इतना कुछ है देखने को पर मैंने पालमपुर से थोड़ा-सा दूर एक हिमाचल हैरिटेज विलेज है वहीँ ठहरने का मन बनाया। मैं हमेशा से हिमालय में रहने वाले लोगों के जीवन को नज़दीक से देखना चाहती थी। जब कभी मैं हिमाचल में रोड ट्रिप किया करती थी और थोड़ी-थोड़ी दूरी पर पड़ने वाले गांवों को देखती तो उनके घर मुझे बहुत आकर्षित करते। मैं हमेशा सोचती कि काश मैं इन घरों में कुछ दिन रह कर देख सकती उनके रेहन-सहन, संस्कृति को करीब से देख पाती, अनुभव कर पाती। पर इतने सालों में यह संभव न हो सका।

Himachal heritage village Palampur Himachal Pradesh under interiours

 फिर मुझे हिमाचल हैरिटेज विलेज के बारे में एक ख़ास दोस्त ने बताया। एक दिन बातों-बातों में हिमालय का ज़िक्र निकला तो बात चलते-चलते दूर हिमाचल हैरिटेज विलेज तक जा पहुंची। मेरे दोस्त ने बताया कि मैं सच में हिमाचल के अलग-अलग रीजन को एक ही जगह देख सकती हूं और अनुभव भी कर सकती हूं। मुझे विश्वास न हुआ। यह मुझे वहां पहुँच कर पता चला।

Himachal heritage village Palampur Himachal Pradesh under full Moon

 हिमाचल हैरिटेज विलेज एक ऐसी जगह है जिसे बड़े प्यार से हिमाचल की संस्कृति को प्रोमोट करने के लिए बनाया गया है। यहाँ चार कॉटेज हैं जिनके नाम हिमाचल के अलग-अलग गांवों के नामों पर रखे गए हैं जैसे बरोट, ऊना, काँगड़ा, धलियारा, खनियारा। और ख़ास बात यह है कि इन्हें बनाया भी उसी तरह गया है जैसे घर इन गांवों में होते हैं। बस फ़र्क़ है तो लग्ज़री का।

Himachal heritage village Palampur Himachal Pradesh 


यह एक लग्ज़री रिसोर्ट है जहाँ आपकी सुख-सुविधाओं का खास ख्याल रखा गया है। हिमाचल हैरिटेज विलेज की लोकेशन इस जगह की ख़ासियत है। पहाड़ के दामन में बना यह रिसोर्ट चांदनी रात में बहुत सुन्दर दीखता है। पीछे बर्फ से ढंके धौलाधार पर्वत श्रृंखला, दूर तक फैले पाईंन के जंगलदाईं और बहती पहाड़ी नदी, रिसोर्ट के बीच से निरंतर बहते पहाड़ी पानी के सोते, इस जगह को निरंतरता प्रदान करते हैं। यहाँ पहुँच कर कहीं जाने का मन नहीं करता।



 दिल करता है कि यहीं बैठ कर पूरा जीवन बिता दिया जाए। दिन में खिली धूप रहती है और रात में काफी ठण्ड हो जाती है। यह जगह दिल्ली से थोड़ा दूर ज़रूर है पर यहाँ पहुँच कर लगता कि इतनी दूर आना बेकार नहीं गया। हिमाचल हैरिटेज विलेज पहुँच कर सारी थकन मिट जाती है। रिसोर्ट के मालिक डोगरा जी व गगन शर्मा एक बेहतरीन होस्ट हैं। और मेहमान नवाज़ी में कोई कसर बाक़ी नहीं रखते। फिर चाहे वह हिमाचल का परम्परागत भोजन काँगड़ा धाम हो या फिर बॉन फायर का इन्तिज़ाम। ज़मीन पर बैठ कर पत्तल दावत ने समां ही बांध दिया। मुझे अपने बचपन की यादें ताज़ा हो आईं। 

Kangda Dham-Himachal heritage village Palampur Himachal Pradesh 

  हमने पहले दिन सिर्फ़ रिसोर्ट में रह कर थकान उतारी और बॉन फायर का मज़ा लिया। हम देर रात तक नीले आकाश तले इस हसीन वादियों का आंनद ले रहे थे। रात नर्म बिस्तर पर नींद बहुत अच्छी आई। सुबह मेरी आँख पक्षियों के कलरव से खुली। कैसी प्यारी सुबह थी। भोर का नीला-नीला उजाला और कोयल की मीठी कूक। यह यहीं हो सकता है। हरी भरी वादी में सूरज की रौशनी पाईंन के जंगलों से छन कर आने लगी।

Himachal heritage village Palampur Himachal Pradesh in the morning

 मैंने आलस छोड़ कर गरमा-गरम चाय का प्याला थाम लिया। आज बहुत कुछ देखना है। बैजनाथ मंदिर की सैर, पैराग्लाइडिंगबीड़ बिलिंग, चाय के बागान और कांगड़ा वैली में चलने वाली टॉय ट्रैन। यह था ब्यौरा पहले दिन का, अभी बहुत कुछ बाक़ी है। आप ऐसे ही बने रहिये मेरे साथ। पालमपुर डायरी के पन्नों से कुछ और क़िस्से आपके साथ साझा करुँगी अगली पोस्ट में।

तब तक खुश रहिये और घूमते रहिये

आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त


डा० कायनात क़ाज़ी

गुरुवार, 18 जून 2015

दा ग्रेट हिमालय कॉलिंग....पहला दिन

The great Himalayas calling
Day-1


हमारे देश का गौरव है-दा ग्रेट हिमालय. यह सदियों से कितने ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है. साधु संतों को, वैरागियों को, पर्वतारोहियों को और मुझ जैसे राहगीरों को... हर इंसान की तलाश अलग..खोज अलग..कोई ढूंढ़ता आता है शांति,  तो कोई खोज रहा है मोक्ष.. तो कोई प्रकृति की सुंदरता मे बस खो जाना चाहता है... 

दा ग्रेट हिमालय के छोर को सिंधु नदी ने तो दूसरे छोर को ब्रम्हपुत्र ने थाम रखा है. मानो प्रकृति अपनी धवल चुनर से इस बड़े भू भाग को ढक लेना चाहती हो. लोग कहते हैं कि हिमालय मे एक विचित्र-सा आकर्षण है जो कि लोगों को अपनी ओर चुंबक की तरह खींचता है. शायद यही आकर्षण मुझे भी अपनी ओर खींचता रहा है. मैं आप के साथ लेह लद्दाख की अपनी यात्रा का अनुभव पहले ही शयर कर चुकी हूं। इस बार हम हिमालय के बाह्य भाग की यात्रा करेंगे। मैं आपको बता दूँ कि हिमालय इतना बड़ा है कि एक बार मे देखा नही जा सकता है. इसीलिए इसको चार श्रेणियाँ में बांटा गया हैं-

1.    परा-हिमालय

2.    महान हिमालय

3.    मध्य हिमालय,

4.    शिवालिक।



The great Himalayas


कुछ जानकारियां हिमालय के बारे में


हिमालय की सबसे प्राचीन श्रेणी है परा हिमालय जिसे ट्रांस हिमालय भी कहते हैं। यह कराकोरम श्रेणी, लद्दाख श्रेणी और कैलाश श्रेणी के रूप में हिमालय की मुख्य श्रेणियों और तिब्बत के बीच स्थित है।  इसकी औसत चौड़ाई लगभग 40 किमी है।
महान हिमालय जिसे हिमाद्रि भी कहा जाता है हिमालय की सबसे ऊँची श्रेणी है। कश्मीर की जांस्कर श्रेणी भी इसी का हिस्सा मानी जाती है। हिमालय की सर्वोच्च चोटियाँ मकालू, कंचनजंघा, एवरेस्ट, अन्नपूर्ण और नामचा बरवा इत्यादि इसी श्रेणी का हिस्सा हैं।

मध्य हिमालय महान हिमालय के दक्षिण में स्थित है। महान हिमालय और मध्य हिमालय के बीच दो बड़ी और खुली घाटियाँ पायी जाती है - पश्चिम में काश्मीर घाटी और पूर्व में काठमाण्डू घाटी। जम्मू-कश्मीर में इसे पीर पंजाल, हिमाचल में धौलाधार तथा नेपाल में महाभारत श्रेणी के रूप में जाना जाता है।

शिवालिक श्रेणी को बाह्य हिमालय या उप हिमालय भी कहते हैं। यहां सबसे नयी और कम ऊंची चोटी है। पश्चिम बंगाल और भूटान के बीच यह विलुप्त है बाकी पूरे हिमालय के साथ समानांतर पायी जाती है। अरुणाचल में मिरी, मिश्मी और अभोर पहाड़ियां शिवालिक का ही रूप हैं। शिवालिक और मध्य हिमालय के बीच दून घाटियां पायी जाती हैं।




ब्यास सर्किट-हिमाचल प्रदेश, शिवालिक श्रेणी और धौलाधार पर्वत मालाएं 


route map 


हिमाचल प्रदेश में व्यास सैक्टर हिमालय की शिवालिक श्रेणी में पड़ने वाली धौलाधार पर्वत श्रंखलाओं में फैला हुआ है। इन्हें हम ग्रेट हिमालय की सबसे नई पहाड़ियां भी कह सकते हैं. 


दिन-1-दिल्ली से जिभी

दिन-2- जिभी और बंजार वैली

दिन-3-कसोल

दिन-4- कुल्लू

दिन-5- नग्गर

दिन-6- मनाली

दिन-7- कसोली


पहला दिन : दिल्ली से जिभी

कहते हैं कि हिमालय का यह भाग कश्मीर से भी ज़्यादा सुंदर और हरा भरा है. शिवालिक की इन पहाड़ियों को करीब से जानने और समझने के लिए मैनें इस बार चुना है-ब्यास सर्किट. जिसकी शुरुवात की है दिल्ली से. दोस्तों मेरी हमेशा कोशिश रहती है की आपको हर बार किसी ऐसी जगह से रुबरू करवाऊं जो रूटीन टूरिस्ट स्पॉट ना हो. इसी लिए मैनें ब्यास सर्किट चुना. हमारे इस सफ़र का पहला पड़ाव था कुफरी, जोकि शिमला से थोड़ा ऊपर जाकर है. दिल्ली से सुबह पाँच बजे निकल कर हम दोपहर के 2 बजे तक शिमला पहुँच गए थे. शिमला हमेशा की तरह पर्यटकों से भरा हुआ था. हमारी इस यात्रा का पहला पड़ाव था कुफरी जहाँ रुक कर हमनें लंच किया. शिमला और कुफरी आज दोनों जगह ही इतनी ज़्यादा कॉमर्शियल हो चुकी हैं कि यहां आकर लगता ही नही कि हम हिमालय के इतना नज़दीक आ गए हैं. आज मई की 28 तारीख है. दिल्ली और पूरे भारत में ज़बरदस्त गर्मी पड़ रही है. हमनें चण्डीगढ़ के बाद से हिमालयन नेशनल एक्सप्रेसवे से कुफरी पहुँचने का फ़ैसला किया. यह रास्ता परवानू हो कर शिमला जाता है. यह रास्ता परवानू तक 4 लेन है. इसपर ड्राइव करते हुए बड़ा आनंद महसूस होता है. यहाँ तक आप आराम से ड्राइव कर सकते हैं. रोड बहुत अच्छी और चौड़ी है.

The Himalayan Expressway


 परवानू क्रॉस करते ही पहाड़ी रास्ते थोड़े संकरे और घुमावदार हो जाते हैं. आप चाहें तो परवानू पर रुक कर टिम्बर ट्रेल रेस्टोरेंट मे लंच कर सकते हैं पर उसके लिए आपको केबल कार का इंतिज़ार करना होगा. यह रेस्टोरेंट पहाड़ की दूसरी छोटी पर बना हुआ है. हम परवानू को बाईपास करते हुए शिमला की और बढ़े. शिमला पहुँच कर हमने सिटी में जाने के बजाए बाइपास पकड़ कर बंजार वैली का रास्ता लिया. बंजार वैली जलोड़ी पास को क्रॉस करने के बाद आती हैं. परवानू क्रॉस करते ही उँचे उँचे देवदार के पेड़ ठंडी हवा के खुश्बुदार झोंकों के साथ आपका स्वागत करते मिल जाएँगे. दूर तक फेले पाईन के हरे भरे जंगल आपको पहाड़ों पर होने का अहसास करवाते हैं. कुफरी क्रॉस करने के साथ ही आपको पहाड़ी गुमावदार रास्ते मिलेंगे. यह रास्ते पहाड़ों को काट कर बनाए हुए हैं. यहाँ से वैली का नज़ारा बेहद सुंदर दिखाई देता है.पहाड़ों में परत दर परत फैली खूबसूरती मुझे स्पीचलेस कर जाती है। यहाँ की खूबसूरती को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है। कोई भी कैमरा इस खूबसूरती को पूरी तरह क़ैद नहीं कर सकता है। इसका तो सिर्फ अनुभव ही किया जा सकता है।  नीचे दूर दूर बसे गाँव और मीलों तक फेले फलों के बगीचे. जिनमे सेब, आडू, चैरी, बादाम और खूबानी के पेड़ लगे हुए हैं. जब इन पेड़ों पर फल आने लगते हैं तब किसान ओलों से इन फलों को सुरक्षित करने के लिए इन पर बारीक जाली कवर कर देते हैं. इन रास्तों से गुज़रते हुए कुछ कुछ दूरी पर आपको सुंदर सुंदर पहाड़ी घर भी दिखाई देंगे. जिनकी टीन से बनी हुई छतें लाल या हरे रंग की होती हैं. पहाड़ी घरों को बनाना में मज़बूत देवदार की लड़की का इस्तेमाल किया जाता है. 


Himalayan Village


यह घर अंदर से जितने कोज़ी होते हैं बाहर से उतने ही सुंदर दिखाई देते हैं. बिल्कुल फैरीटेल वाली किताबों मे बने सुंदर से कौटेज जैसे. इन घुमावदार रास्तों पर ड्राइव करते हुए आपको कई जगह फ्रेश फ्रूट्स बेचने वाले भी दिख जाएँगे. सेब, आडू, बादाम और फार्म फ्रेश चैरी. हिमाचल प्रदेश मे रहने वाले लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती है. यहाँ धान, गेंहूँ और फलों के बागीचे होते हैं. हम रात होने से पहले जलोडी पास को क्रॉस करना चाहते थे इसलिए बिना वक़्त गँवाए हम अपने पहले नाइट स्टे के लिए जिभी की और बढ़ रहे थे. जलोडी पास दुनिया के कठिनतम पासों में गिना जाता है. नेशनल जिओग्राफी ट्रेवलर ने इसे दुनिया के दस सबसे मुश्किल ट्रेक माने जाने वाले पासों में गिना है. हम जैसे-जैसे जलोडी पास से नज़दीक पहुँच रहे थे रास्ता और मुश्किल होता जा रहा था .हमनें काम से कम हज़ार दो हज़ार मोड़ क्रॉस किये होगे. हर पहाड़ के घुमाव के साथ लगता कि  अब बस पहुँचने ही वाले हैं। हम कितनी ही बार ड्राइव करते हुए पहाड़ों की तलहटी में पहुँच जाते तो लगता कि बस अब हम समतल सड़क पर पहुँचने वाले हैं कि  तभी अगले मोड़ पर हम दूसरे पहाड़ की चढ़ाई चढ़ने लगते ,एक रोलर कोस्टर राइड की तरह। हमने पास क्रॉस करते हुए जगह जगह थोड़ी थोड़ी बर्फ भी देखी।



जलोड़ी पास के लिए जाने वाली सड़क एकदम संकरी हो गई थी जोकि जगह-जगह से खराब भी हो गई थी. भारत मे यह अपने आप मे एक ऐसा पास है जोकि साल भर खुला रहता है. लेकिन यहाँ से गुज़रने से पहले दिए गए दिशा निर्देशों का पालन करना बेहद ज़रूरी है. पास के नज़दीक आते आते आपको कई सरकारी बोर्ड दिख जाएँगे जिसमें सावधानी के लिए निर्देश लिखे हुए हैं. जैसे-इस पास से गुज़रते हुए गाड़ी पहले गियर मे चलाएँ. स्पीड काफ़ी कम रखें. यहां पर खाई, ढलान और चडाइयाँ बहुत तीखी हैं और बहुत सारे अंधे मोड़ हैं. इस पास की उँचाई समुद्र तल से 3120 मीटर है. इस पास पर गर्मियों मे आपको बर्फ नही दिखाई देगी. यहाँ पर सर्दियों मे बर्फ देखी जा सकती है. यह पास कुल्लू वैली को रामपुर के साथ कनेक्ट करता है .इस पास में एक ओर उँचे उँचे पहाड़ हैं और दूसरी और गहरी खाई है. इस रास्ते में जगह जगह सुंदर वैली के द्रश्य हैं. एक नदी कभी आपके दाईं ओर चलती है तो कभी बाईं ओर. नदी का साफ पानी पत्थरों पर गिरते हुए शोर मचाता हुआ एक संगीत की स्वर लहरी पैदा करता है. मेरा खुद का एक्सपीरियेन्स कहता है कि इस पास को दिन के समय में ही क्रॉस करना चाहिए.

Jibhi camps & cottages


हम रात के नौ बजे तक जिभी पहुँच गए थे. यह हमारा पहला पड़ाव था. रात बहुत हो चुकी थी.पहाड़ों में सूरज डूबते ही अंधेरा छा जाता है और रात के नौ बजे ही रास्तों पर सन्नाटा छा जाता है. हम भी बहुत थक चुके थे. आज हमने पहले दिन 543 किलोमीटेर की यात्रा की थी. जिभी में जिभी कैंपस और कोटेजेज़ में हम ने खुले आसमान के नीचे तारों की रोशनी मे कैंपस के अंदर रात गुज़ारी. नज़दीक से ही तीर्थन नदी के बहने की आवाज़ आ रही थी. यहाँ रात का टेंपरेचर 6 डिग्री था.


water spring@Jibhi_Tirthan Valley




फिर मिलेंगे दोस्तों, ब्यास सैक्टर के अगले पड़ाव के कुछ अनछुए पहलुओं के साथ,

तब तक खुश रहिये, और घूमते रहिये,

आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त



डा० कायनात क़ाज़ी



दा ग्रेट हिमालय कॉलिंग.... तीसरा दिन: कसोल

The great Himalayas calling....
DAY-3


तीसरा दिन: कसोल

इस सीरीज़ की पिछली पोस्ट देखने के लिए यहां क्लिक करें:  जिभी और बंजार वैली

Malana Grass


जिभी से कसोल की दूरी 80 किलोमीटेर की है जिसे हम ने 3 घंटे में पूरा किया. हम सुबह जिभी से निकले और दोपहर तक कसोल पहुँच गए थे. कसोल हिमाचल का एक छोटा-सा टाउन है. आज से पाँच साल पहले तक यहाँ इक्का दुक्का पहाड़ी घर ही होते थे. पर पिछले कुछ सालों से विदेशी बैगपैकर्स के लिए यह जगह जन्नत जैसी हो गई है. हम जब कसोल पहुँचे तो यहाँ का नज़ारा बिल्कुल अलग था. अगर आप पहले बंजार वैली और तीर्थन वैली हो कर आ रहे हैं तो यह जगह आपको बिल्कुल अच्छी नही लगेगी. यहाँ पर बहुत सारे टूरिस्ट नज़र आएँगे. बहुत सारी गाड़ियाँ और इज़राइली नागरिक. कसोल मलाना गाँव के नज़दीक होने के कारण पिछले कुछ समय मे बहुत मशहूर हुआ है. इसका कारण है यहाँ पर पाई जाने वाली एक खास तरह की घांस. जिसे लोग मलाना क्रीम भी कहते हैं. नशा करने वाले विदेशी बैग पैकेर्स में यह जगह बहुत लोकप्रिय है.

Parvati River


कसोल में एक बाज़ार है जो आने वाले सैलनियों की लगभग सारी ज़रूरतों को पूरा करता है. यहाँ पर कई सारे अच्छे कैफे हैं. जहाँ पर आप आराम से बैठ कर विदेशी खानो का आनंद उठा सकते हैं.

Traut Fish-Himachali cuisine delicacy  


 यहाँ पर आप यहाँ की मशूहर ट्राऊट फिश भी टेस्ट कर सकते हैं. यहां विदेशी लोगों के ज़्यादा आने से कई अच्छी बेकरी भी मौजूद हैं. यहाँ एक जर्मन बेकरी भी है पर उसके बेकरी आइटम्स उतने अच्छे नही हैं. यहाँ बहुत सारे होटेल्स हैं. यहाँ के बाज़ार से आप अच्छे गर्म कपड़े खरीद सकते हैं.


Kasol Bazar


कसोल हिप्पी लाइफ स्टाइल को पसंद करने वालों के लिए स्वर्ग जैसी है. मलाना जाने के लिए यहैीन से ट्रकिंग करनी होती है. मलाना हिमाचल का ऐसा गाँव है जहाँ के लोग खुद को आर्यन मानते हैं. इनका दावा है कि सिकंदर की सेना के कुछ सिपाही यहाँ रुक गए थे, यह लोग उन्ही के वंशज हैं. यह लोग कनाशी भाषा बोलते हैं. इस गाँव में बाहर से आने वाले लोगों को अशुध्द माना जाता है.

Bridge@Parvati River
हमने कसोल में शॉपिंग की और अच्छा खाना खाया. इसके सिवा कसोल में हमारे करने के लायक़ कुछ खास ना था. अगर आप प्रकृतिक सुंदरता को निहारने और पहाड़ों की शांति को महसूस करने जाना चाहते हैं तो कसोल इसके लिए उपयुक्त स्थान नही हैं. कसोल जाने का क्रेज़ यूथ में ज़्यादा देखने को मिलता है. वैसे कसोल पहुँचने के लिए डाइरेक्ट कोई रेल मार्ग नही है.

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 कीरतपुर साहिब और उना रेलवे स्टेशन जोकि पंजाब मे पड़ते हैं यहाँ तक रेल जाती है पर यह दोनों जगहें भी कसोल से लगभग 150 किलोमीटर की दूरी पर पड़ती हैं. इसलिए यहाँ तक पहुँचने का सबसे अच्छा साधन है हिमाचल परिवहन की बस सर्विस. आप कुल्लू जाने वाली बस ले सकते हैं और भुंतर पर उतर कर कसोल के लिए कोई लोकल बस या टैक्सी ली जा सकती है.हिमाचल परिवहन की बस सर्विस की ऑनलाइन बुकिंग के लिए यहाँ क्लिक करें।
http://www.hptdc.nic.in/bus.htm




 फिर मिलेंगे दोस्तों, अगले पड़ाव में हिमालय के कुछ अनछुए पहलुओं के साथ,

तब तक खुश रहिये, और घूमते रहिये,

आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त



डा० कायनात क़ाज़ी


मंगलवार, 9 जून 2015

गर्ल्स जब अकेले ट्रॅवल करें तो इन पाँच बातों का ध्यान रखें

टिप्स: फीमेल ट्रैवलर्स के लिए





गर्ल्स जब अकेले ट्रॅवल करें तो इन पाँच बातों का ध्यान रखें


हर लड़की की ख्वाहिश होती है कि वह पंख लगा कर सारा आकाश छू ले. सारी दुनियाँ घूमें, नई नई जगह देखे, उसे जाने समझे…नए नए लोगों से मिले...दुनिया को अपनी नज़र से देखे ना की दूसरों के नज़रिए से, पर  हम में से कितनी लड़कियां ऐसी होंगी जो अपनी इस सपने को सच कर पाती होंगी. पर अब वक़्त बदल गया है दोस्तों, आप भी सोचती होंगी की मैं भी बाहर निकलूं, दुनियाँ देखूं. तो फिर देर किस बात की है. आपको आपके सपने पूरे करने के लिए कौन रोक सकता है. ज़रूरत है तो सिर्फ़ अपने अंदर थोड़े से आत्म विश्वास की..

दोस्तों मैने भी जब ट्रॅवेल करना शुरू किया था तो मेरे भी सामने बहुत सारे सवाल थे. मैं अकेले कैसे जा सकती हूँ ? कहाँ ठहर सकूँगी? वो जगह सुरक्षित होगी कि नही? कहीं कुछ गड़बड़ हो गई तो?

ऐसे ना जाने कितने ही सवाल थे जो मुझे भी परेशान करते थे. मैं भी घबराती थी, और घबराहट होना कोई अनोखी बात नही है. यह स्वाभाविक है..सबको होती है.इसलिए इससे घबराना नही है. हाँ, अपने अंदर के भय को काबू करना ज़रूरी है और जिसके लिए ज़रूरी है पूरी तैयारी.

मैं इस बात को अच्छी तरहं समझती हूं कि सोलो ट्रॅवेल करना आसान काम नही है. दरअसल सोलो ट्रॅवेल करने का आत्मविश्वास आपको आएगा भी तभी जब आप एक बार ट्रॅवेल करना शुरू करेंगी. ऐसा नही है की आप अपनी पहली ही यात्रा सोलो करने निकल जाएँ. यह कुछ कुछ बॉर्न्विल चोकॉलेट जैसा है. यू हेव टू अर्न इट
अगर आपको घुमककड़ी का शौक़ है, तो पहले ग्रूप मे ट्रॅवेल कीजिए..आप चाहें तो बड़े ग्रूप में ट्रॅवेल करें या छोटे में..अपने परिवार के साथ या फिर दोस्तों के साथ.अगर आप शुरूवात  कर रही हैं तो ज़रूरी है की पहले आप घर से निकलें.हमारे देश मे महिलाएँ हमेशा परिवार के साथ ही ट्रॅवेल करती हैं और हमेशा ऐसा ही देखने मे आता है कि उनके परिवार के पुरुष ही सारी तैयारी करते हैं. पर अब वक़्त आ गया है की आप भी फ्रंट सीट संभालें और अकेले ट्रॅवेल की ज़िम्मेदारी उठाएँ. जब आप सब कुछ अपने आप करेंगी तो आपके आत्मविश्वास का लेवल ही अलग होगा. आपको खुद लगेगा की आप भी सिचुयेशन अच्छी तरह संभाल सकती हैं.

आज लड़कियाँ चाँद तो क्या मंगल तक पर चक्कर लगा आई हैं फिर यह तो छोटी सी बात है. मैं ट्रॅवेल राइटर और फोटोग्राफर हूँ..मैं आप से शेयर करूँगी ट्रॅवेलिंग से जुड़े कुछ टिप्स ..जो आपको इस तैयारी में मदद करेंगे.

1. थोड़ी रिसर्च ज़रूरी है:


अगर आप पहली बार अकेले ट्रॅवेल कर रही हैं तो उसके लिए खुद को पूरी तरह से तैयार करें. जहाँ जा रही हैं उस जगह के बारे में पूरी रिसर्च कर के जाएँ. अपनी आइटिनरी को खुद प्लान करें और आइटिनरी बनाने से पहले उन जगहों के बारे मे ट्रॅवेल से जुड़ी वेब साइटों पर जा कर लोगों के रिव्यू ज़रूर पढ़ें.

2. कहाँ ठहरें:

यह एक अहम मुद्दा है खास करके भारत मे ट्रॅवेल करने का. पिछले कुछ दिनों मे महिलाओं के साथ हुई घटनाओं को ध्यान में रखते हुए इस बात पर विशेष ध्यान देना चाहिए की आप जहाँ भी जाएँ अपनी सुरक्षा के लिए हमेशा सतर्क रहें. यह सब की ही चिंता का विषय होता है की आप कहाँ पर ठहरएंगी? बजट होटल्स सुरक्षित होते भी हैं कि नहीं! अब हमेशा तो फ़ाइव स्टार होटल मे तो रुका नही जा सकता है.
इस परेशानी का हाल भी है मेरे पास. आप यूथ हॉस्टिल असोसियेशन की मेंबरशिप ले सकती हैं. पूरे देश मे इनके हॉस्टिल बने हुए हैं. यहाँ मेंबरशिप एक साल की ली जा सकती है और आपको यूथ हॉस्टिल मे ठहरना पसंद आजाए तो आप अपनी मेंबरशिप को पूरे जीवन के लिए भी ले सकती हैं. यूथ हॉस्टिल असोसियेशन वेबसाइट पर जा कर आप सारी जानकारी ले सकती हैं. यह हॉस्टिल पूरी तरह सुरक्षित होते हैं. यूथ हॉस्टिल असोसियेशन के पेंतालीस हज़ार हॉस्टिल हैं. होस्टेलस का यह विशाल नेटवर्क भारत के साथ साथ पूरे नब्बे देशों मे फैला हुआ है. अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें. http://www.yhaindia.org/

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3. समय और कल्चर का ध्यान भी ज़रूरी है:


एक कहावत है- "ग्रेट फ्रीडम कम्स विद ग्रेट रेस्पॉन्सिबिलिटी" जब आप सोलो ट्रॅवेल करते हैं तो उसकी पूरी ज़िम्मेदारी आपकी होती है...सिर्फ़ आपकी...इसलिए उस फ्रीडम को एंजाय करें लेकिन ज़िम्मेदारी के साथखूब मज़े करें..,खूब पार्टी करें.,.पर हमेशा अपने होश ठिकाने रखें. मेरा खुद का अनुभव कहता है कि जब तक मेरे होश सलामत हैं और जेब में पैसे है. मैं कैसी भी सिचुयेशन को संभाल सकती हूँ.
ध्यान रखें कि आप जिस जगह जा रही हैं वहाँ के कल्चर का भी ध्यान रखें और अपने आने जाने के वक़्त पर भी नज़र रखें. रात में अकेली लौट रही हों तो ऐसा रास्ता चुने कि जहाँ पर ट्रेफिक चलता रहता हो.

4. अपने आसपास की हलचल पर नज़र:

सोलो ट्रॅवेल ट्रॅवेल करने का एक गोलडेन रूल है. आप कहीं भी जाएँ, कुछ भी करें पर अपने आस पास होने वाली हर हलचल पर नज़र बनाए रखें. अगर आप कुछ भी असामान्य महसूस करें तो उस स्थान को तुरंत छोड़ दें. अगर आपको रास्ता पूछना है तो पास के किसी दुकानदार से रास्ता पूछें और कोशिश करें की अपनी पॉकेट डायरी मे नोट कर लें.
एक और ज़रूरी बात. अपने साथ पेपर स्प्रे की बॉटल ज़रूर रखें और उसे हेंडी  भी रखें. ज़रूरत पड़ने पर यह आपके बहुत काम आ सकती है.

5. टूरिस्ट इन्फर्मेशन सेंटर ज़रूर जाएं:

हमारे देश मे पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए टूरिस्ट इन्फर्मेशन सेंटर खोले गए हैं. यह सेंटर लगभग उन सारी जगहों पर होते हैं जहां पर लोग घूमने के लिए जाते हैं. आप जहां जा रही हैं उस स्थान पर पहुँच कर सबसे पहले टूरिस्ट इन्फर्मेशन सेंटर पर ज़रूर जाएँ. वहाँ आपको काफ़ी जानकारियाँ मिल जाएँगी साथ ही आप वहाँ से टूरिस्ट मेप भी खरीद सकती हैं. यह मेप आपके बहुत काम आएगा.



तो दोस्तों देर किस बात की है? हो जाइए तैयार अपने सपनों को सच करने के लिए.

फिर मिलेंगे दोस्तों, कुछ नए टिप्स के साथ,

तब तक खुश रहिये, और घूमते रहिये,

आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त


डा० कायनात क़ाज़ी