The great Himalayas calling
Day-1
हमारे देश का गौरव है-दा ग्रेट हिमालय. यह सदियों से कितने ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है. साधु संतों को, वैरागियों को, पर्वतारोहियों को और मुझ जैसे राहगीरों को... हर इंसान की तलाश अलग..खोज अलग..कोई ढूंढ़ता आता है शांति, तो कोई खोज रहा है मोक्ष.. तो कोई प्रकृति की सुंदरता मे बस खो जाना चाहता है...
दा ग्रेट हिमालय के छोर को सिंधु नदी ने तो दूसरे छोर को ब्रम्हपुत्र ने थाम रखा है. मानो प्रकृति अपनी धवल
चुनर से इस बड़े भू भाग को ढक लेना चाहती
हो. लोग कहते हैं कि हिमालय मे
एक विचित्र-सा आकर्षण है जो कि लोगों को अपनी ओर चुंबक की तरह खींचता है. शायद यही
आकर्षण मुझे भी अपनी ओर खींचता रहा है. मैं आप के साथ लेह लद्दाख की अपनी यात्रा का अनुभव पहले ही शयर कर चुकी हूं। इस बार हम हिमालय के बाह्य भाग की यात्रा करेंगे। मैं आपको बता दूँ कि हिमालय इतना बड़ा है कि एक बार मे देखा नही
जा सकता है. इसीलिए इसको चार श्रेणियाँ में
बांटा गया हैं-
1. परा-हिमालय
2. महान हिमालय
3. मध्य हिमालय,
4. शिवालिक।
कुछ जानकारियां हिमालय के बारे में
हिमालय
की सबसे प्राचीन श्रेणी है परा हिमालय जिसे ट्रांस हिमालय भी कहते हैं। यह
कराकोरम श्रेणी, लद्दाख
श्रेणी और कैलाश श्रेणी के रूप में हिमालय की मुख्य श्रेणियों और तिब्बत के बीच
स्थित है। इसकी औसत चौड़ाई लगभग 40 किमी है।
महान
हिमालय जिसे हिमाद्रि भी कहा जाता है हिमालय की सबसे ऊँची श्रेणी है। कश्मीर की
जांस्कर श्रेणी भी इसी का हिस्सा मानी जाती है। हिमालय की सर्वोच्च चोटियाँ मकालू, कंचनजंघा, एवरेस्ट, अन्नपूर्ण
और नामचा बरवा इत्यादि इसी श्रेणी का हिस्सा हैं।
मध्य
हिमालय महान हिमालय के दक्षिण में स्थित है। महान हिमालय और मध्य हिमालय के बीच दो
बड़ी और खुली घाटियाँ पायी जाती है - पश्चिम में काश्मीर घाटी और पूर्व में
काठमाण्डू घाटी। जम्मू-कश्मीर में इसे पीर पंजाल, हिमाचल में धौलाधार तथा नेपाल में महाभारत श्रेणी के रूप
में जाना जाता है।
शिवालिक
श्रेणी को बाह्य हिमालय या उप हिमालय भी कहते हैं। यहां सबसे नयी और कम ऊंची चोटी
है। पश्चिम बंगाल और भूटान के बीच यह विलुप्त है बाकी पूरे हिमालय के साथ समानांतर
पायी जाती है। अरुणाचल में मिरी, मिश्मी और अभोर पहाड़ियां शिवालिक का ही रूप हैं। शिवालिक और मध्य
हिमालय के बीच दून घाटियां पायी जाती हैं।
ब्यास सर्किट-हिमाचल प्रदेश, शिवालिक श्रेणी और धौलाधार पर्वत मालाएं
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route map |
हिमाचल प्रदेश में व्यास
सैक्टर हिमालय की शिवालिक श्रेणी में पड़ने वाली धौलाधार पर्वत श्रंखलाओं में फैला हुआ है। इन्हें हम ग्रेट हिमालय की सबसे
नई पहाड़ियां भी कह सकते हैं.
दिन-1-दिल्ली से जिभी
दिन-2- जिभी और बंजार वैली
दिन-3-कसोल
दिन-4- कुल्लू
दिन-5- नग्गर
दिन-6- मनाली
दिन-7- कसोली
पहला दिन : दिल्ली से जिभी
कहते हैं कि हिमालय का यह भाग कश्मीर से भी ज़्यादा
सुंदर और हरा भरा है. शिवालिक की इन पहाड़ियों को करीब से जानने और समझने के लिए मैनें इस बार चुना
है-ब्यास सर्किट. जिसकी शुरुवात की है दिल्ली से. दोस्तों मेरी हमेशा कोशिश रहती
है की आपको हर बार किसी ऐसी जगह से रुबरू करवाऊं जो रूटीन टूरिस्ट स्पॉट ना हो. इसी
लिए मैनें ब्यास सर्किट चुना. हमारे इस सफ़र का पहला पड़ाव था कुफरी, जोकि शिमला से थोड़ा ऊपर जाकर है. दिल्ली से सुबह पाँच बजे निकल कर हम
दोपहर के 2 बजे तक शिमला पहुँच गए थे. शिमला हमेशा की तरह पर्यटकों से भरा हुआ था.
हमारी इस यात्रा का पहला पड़ाव था कुफरी जहाँ रुक कर हमनें लंच किया. शिमला और
कुफरी आज दोनों जगह ही इतनी ज़्यादा कॉमर्शियल हो चुकी हैं कि यहां आकर लगता ही
नही कि हम हिमालय के इतना नज़दीक आ गए हैं. आज मई की 28 तारीख है. दिल्ली और
पूरे भारत में ज़बरदस्त गर्मी पड़ रही है. हमनें चण्डीगढ़ के बाद से हिमालयन नेशनल
एक्सप्रेसवे से कुफरी पहुँचने का फ़ैसला किया. यह रास्ता परवानू हो कर शिमला जाता
है. यह रास्ता परवानू तक 4 लेन है. इसपर ड्राइव करते हुए बड़ा आनंद महसूस होता है.
यहाँ तक आप आराम से ड्राइव कर सकते हैं. रोड बहुत अच्छी और चौड़ी है.
परवानू क्रॉस
करते ही पहाड़ी रास्ते थोड़े संकरे और घुमावदार हो जाते हैं. आप चाहें तो परवानू पर
रुक कर टिम्बर ट्रेल रेस्टोरेंट मे लंच कर सकते हैं पर उसके लिए आपको केबल कार का
इंतिज़ार करना होगा. यह रेस्टोरेंट पहाड़ की दूसरी छोटी पर बना हुआ है. हम परवानू
को बाईपास करते हुए शिमला की और बढ़े. शिमला पहुँच कर हमने सिटी में जाने के बजाए
बाइपास पकड़ कर बंजार वैली का रास्ता लिया. बंजार वैली जलोड़ी पास को क्रॉस करने के
बाद आती हैं. परवानू क्रॉस करते ही उँचे उँचे देवदार के पेड़ ठंडी हवा के
खुश्बुदार झोंकों के साथ आपका स्वागत करते मिल जाएँगे. दूर तक फेले पाईन के हरे
भरे जंगल आपको पहाड़ों पर होने का अहसास करवाते हैं. कुफरी क्रॉस करने के साथ ही
आपको पहाड़ी गुमावदार रास्ते मिलेंगे. यह रास्ते पहाड़ों को काट कर बनाए हुए हैं. यहाँ
से वैली का नज़ारा बेहद सुंदर दिखाई देता है.पहाड़ों में परत दर परत फैली खूबसूरती मुझे स्पीचलेस कर जाती है। यहाँ की खूबसूरती को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है। कोई भी कैमरा इस खूबसूरती को पूरी तरह क़ैद नहीं कर सकता है। इसका तो सिर्फ अनुभव ही किया जा सकता है। नीचे दूर दूर बसे गाँव और मीलों तक फेले फलों के बगीचे. जिनमे सेब, आडू, चैरी, बादाम
और खूबानी के पेड़ लगे हुए हैं. जब इन पेड़ों पर फल आने लगते हैं तब किसान ओलों से
इन फलों को सुरक्षित करने के लिए इन पर बारीक जाली कवर कर देते हैं. इन रास्तों से
गुज़रते हुए कुछ कुछ दूरी पर आपको सुंदर सुंदर पहाड़ी घर भी दिखाई देंगे. जिनकी
टीन से बनी हुई छतें लाल या हरे रंग की होती हैं. पहाड़ी घरों को बनाना में मज़बूत
देवदार की लड़की का इस्तेमाल किया जाता है.
यह घर अंदर से जितने कोज़ी होते हैं बाहर से उतने ही सुंदर दिखाई देते हैं. बिल्कुल फैरीटेल वाली किताबों मे बने सुंदर से कौटेज जैसे. इन घुमावदार रास्तों पर ड्राइव करते हुए आपको कई जगह फ्रेश फ्रूट्स बेचने वाले भी दिख जाएँगे. सेब, आडू, बादाम और फार्म फ्रेश चैरी. हिमाचल प्रदेश मे रहने वाले लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती है. यहाँ धान, गेंहूँ और फलों के बागीचे होते हैं. हम रात होने से पहले जलोडी पास को क्रॉस करना चाहते थे इसलिए बिना वक़्त गँवाए हम अपने पहले नाइट स्टे के लिए जिभी की और बढ़ रहे थे. जलोडी पास दुनिया के कठिनतम पासों में गिना जाता है. नेशनल जिओग्राफी ट्रेवलर ने इसे दुनिया के दस सबसे मुश्किल ट्रेक माने जाने वाले पासों में गिना है. हम जैसे-जैसे जलोडी पास से नज़दीक पहुँच रहे थे रास्ता और मुश्किल होता जा रहा था .हमनें काम से कम हज़ार दो हज़ार मोड़ क्रॉस किये होगे. हर पहाड़ के घुमाव के साथ लगता कि अब बस पहुँचने ही वाले हैं। हम कितनी ही बार ड्राइव करते हुए पहाड़ों की तलहटी में पहुँच जाते तो लगता कि बस अब हम समतल सड़क पर पहुँचने वाले हैं कि तभी अगले मोड़ पर हम दूसरे पहाड़ की चढ़ाई चढ़ने लगते ,एक रोलर कोस्टर राइड की तरह। हमने पास क्रॉस करते हुए जगह जगह थोड़ी थोड़ी बर्फ भी देखी।
जलोड़ी पास के लिए जाने वाली सड़क एकदम संकरी हो गई थी जोकि जगह-जगह से खराब भी हो गई थी. भारत मे यह अपने आप मे एक ऐसा पास है जोकि साल भर खुला रहता है. लेकिन यहाँ से गुज़रने से पहले दिए गए दिशा निर्देशों का पालन करना बेहद ज़रूरी है. पास के नज़दीक आते आते आपको कई सरकारी बोर्ड दिख जाएँगे जिसमें सावधानी के लिए निर्देश लिखे हुए हैं. जैसे-इस पास से गुज़रते हुए गाड़ी पहले गियर मे चलाएँ. स्पीड काफ़ी कम रखें. यहां पर खाई, ढलान और चडाइयाँ बहुत तीखी हैं और बहुत सारे अंधे मोड़ हैं. इस पास की उँचाई समुद्र तल से 3120 मीटर है. इस पास पर गर्मियों मे आपको बर्फ नही दिखाई देगी. यहाँ पर सर्दियों मे बर्फ देखी जा सकती है. यह पास कुल्लू वैली को रामपुर के साथ कनेक्ट करता है .इस पास में एक ओर उँचे उँचे पहाड़ हैं और दूसरी और गहरी खाई है. इस रास्ते में जगह जगह सुंदर वैली के द्रश्य हैं. एक नदी कभी आपके दाईं ओर चलती है तो कभी बाईं ओर. नदी का साफ पानी पत्थरों पर गिरते हुए शोर मचाता हुआ एक संगीत की स्वर लहरी पैदा करता है. मेरा खुद का एक्सपीरियेन्स कहता है कि इस पास को दिन के समय में ही क्रॉस करना चाहिए.
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Himalayan Village |
यह घर अंदर से जितने कोज़ी होते हैं बाहर से उतने ही सुंदर दिखाई देते हैं. बिल्कुल फैरीटेल वाली किताबों मे बने सुंदर से कौटेज जैसे. इन घुमावदार रास्तों पर ड्राइव करते हुए आपको कई जगह फ्रेश फ्रूट्स बेचने वाले भी दिख जाएँगे. सेब, आडू, बादाम और फार्म फ्रेश चैरी. हिमाचल प्रदेश मे रहने वाले लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती है. यहाँ धान, गेंहूँ और फलों के बागीचे होते हैं. हम रात होने से पहले जलोडी पास को क्रॉस करना चाहते थे इसलिए बिना वक़्त गँवाए हम अपने पहले नाइट स्टे के लिए जिभी की और बढ़ रहे थे. जलोडी पास दुनिया के कठिनतम पासों में गिना जाता है. नेशनल जिओग्राफी ट्रेवलर ने इसे दुनिया के दस सबसे मुश्किल ट्रेक माने जाने वाले पासों में गिना है. हम जैसे-जैसे जलोडी पास से नज़दीक पहुँच रहे थे रास्ता और मुश्किल होता जा रहा था .हमनें काम से कम हज़ार दो हज़ार मोड़ क्रॉस किये होगे. हर पहाड़ के घुमाव के साथ लगता कि अब बस पहुँचने ही वाले हैं। हम कितनी ही बार ड्राइव करते हुए पहाड़ों की तलहटी में पहुँच जाते तो लगता कि बस अब हम समतल सड़क पर पहुँचने वाले हैं कि तभी अगले मोड़ पर हम दूसरे पहाड़ की चढ़ाई चढ़ने लगते ,एक रोलर कोस्टर राइड की तरह। हमने पास क्रॉस करते हुए जगह जगह थोड़ी थोड़ी बर्फ भी देखी।
जलोड़ी पास के लिए जाने वाली सड़क एकदम संकरी हो गई थी जोकि जगह-जगह से खराब भी हो गई थी. भारत मे यह अपने आप मे एक ऐसा पास है जोकि साल भर खुला रहता है. लेकिन यहाँ से गुज़रने से पहले दिए गए दिशा निर्देशों का पालन करना बेहद ज़रूरी है. पास के नज़दीक आते आते आपको कई सरकारी बोर्ड दिख जाएँगे जिसमें सावधानी के लिए निर्देश लिखे हुए हैं. जैसे-इस पास से गुज़रते हुए गाड़ी पहले गियर मे चलाएँ. स्पीड काफ़ी कम रखें. यहां पर खाई, ढलान और चडाइयाँ बहुत तीखी हैं और बहुत सारे अंधे मोड़ हैं. इस पास की उँचाई समुद्र तल से 3120 मीटर है. इस पास पर गर्मियों मे आपको बर्फ नही दिखाई देगी. यहाँ पर सर्दियों मे बर्फ देखी जा सकती है. यह पास कुल्लू वैली को रामपुर के साथ कनेक्ट करता है .इस पास में एक ओर उँचे उँचे पहाड़ हैं और दूसरी और गहरी खाई है. इस रास्ते में जगह जगह सुंदर वैली के द्रश्य हैं. एक नदी कभी आपके दाईं ओर चलती है तो कभी बाईं ओर. नदी का साफ पानी पत्थरों पर गिरते हुए शोर मचाता हुआ एक संगीत की स्वर लहरी पैदा करता है. मेरा खुद का एक्सपीरियेन्स कहता है कि इस पास को दिन के समय में ही क्रॉस करना चाहिए.
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Jibhi camps & cottages |
हम रात के नौ बजे तक जिभी पहुँच गए थे. यह हमारा पहला पड़ाव था. रात बहुत
हो चुकी थी.पहाड़ों में सूरज डूबते ही अंधेरा छा जाता है और रात के नौ बजे ही
रास्तों पर सन्नाटा छा जाता है. हम भी बहुत थक चुके थे. आज हमने पहले दिन 543
किलोमीटेर की यात्रा की थी. जिभी में जिभी कैंपस और कोटेजेज़ में हम ने खुले आसमान
के नीचे तारों की रोशनी मे कैंपस के अंदर रात गुज़ारी. नज़दीक से ही
तीर्थन नदी के बहने की आवाज़ आ रही थी. यहाँ रात का टेंपरेचर 6 डिग्री था.
फिर मिलेंगे दोस्तों, ब्यास सैक्टर के अगले पड़ाव के कुछ अनछुए पहलुओं के साथ,
तब तक खुश रहिये, और घूमते रहिये,
आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त
डा० कायनात क़ाज़ी