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कुछ पंक्तियां इस ब्लॉग के बारे में :

प्रिय पाठक,
हिन्दी के प्रथम ट्रेवल फ़ोटोग्राफ़ी ब्लॉग पर आपका स्वागत है.….
ऐसा नहीं है कि हिन्दी में अच्छे ब्लॉग लिखने वालों की कमी है। हिन्दी में लोग एक से एक बेहतरीन ब्लॉग्स लिख रहे हैं। पर एक चीज़ की कमी अक्सर खलती है। जहां ब्लॉग पर अच्छा कन्टेन्ट है वहां एक अच्छी क्वालिटी की तस्वीर नहीं मिलती और जिन ब्लॉग्स पर अच्छी तस्वीरें होती हैं वहां कन्टेन्ट उतना अच्छा नहीं होता। मैं साहित्यकार के अलावा एक ट्रेवल राइटर और फोटोग्राफर हूँ। मैंने अपने इस ब्लॉग के ज़रिये इस दूरी को पाटने का प्रयास किया है। मेरा यह ब्लॉग हिन्दी का प्रथम ट्रेवल फ़ोटोग्राफ़ी ब्लॉग है। जहाँ आपको मिलेगी भारत के कुछ अनछुए पहलुओं, अनदेखे स्थानों की सविस्तार जानकारी और उन स्थानों से जुड़ी कुछ बेहतरीन तस्वीरें।
उम्मीद है, आप को मेरा यह प्रयास पसंद आएगा। आपकी प्रतिक्रियाओं की मुझे प्रतीक्षा रहेगी।
आपके कमेन्ट मुझे इस ब्लॉग को और बेहतर बनाने की प्रेरणा देंगे।

मंगल मृदुल कामनाओं सहित
आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त

डा० कायनात क़ाज़ी

Sunday, 26 June 2016

इस मॉनसून क्यों जाएँ ? मिरिक




इस मॉनसून क्यों जाएँ? मिरिक

 

 










Mirik town from Hill top



 



 बरसात के मौसम में मिरिक बेहद खूबसूरत और हरा भरा नज़र आता है। अगर आप एडवेंचर के शौक़ीन हैं तो एक बार मिरिक बरसात में ज़रूर जाएं। प्रकृति के बेहद हसीं करिश्मे देखने को मिलेंगे। कभी बादल इतने निचे आजाएगा कि आप उसके बीच से होकर गुज़र जाएँगे। रास्तों में जगह जगह बरसाती झरने आपका स्वागत करेंगे। लेकिन कंचनजंघा का नज़ारा गर्मियों में ज़्यादा अच्छा दीखता है। ऊंचाई पर होने के कारण यहां सर्दियों में अधिक ठण्ड पड़ती है।


 मिरिक पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग ज़िले में स्थित एक मनोरम हिल स्टेशन है। हिमालय की वादियों में बसा छोटा सा पहाड़ी क़स्बा मिरिक पिछले कुछ वर्षों में पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बन गया है। इसके पीछे कई कारण हैं। एक तो यह कि पश्चिम बंगाल में यह सबसे ज़्यादा आसानी से पहुंचने वाला स्थान है, दूसरा यहां रूटीन हिल स्टेशन जैसी भीड़ भाड़ नहीं है। इस जगह के बारे में अभी बहुत लोग नहीं जानते हैं इसलिए भी यहां की प्राकृतिक सुंदरता बरक़रार है।

 










Tea gardens on the way to Mirik


 

 इस जगह को आकर्षक बनाने में इसकी भौगोलिक स्थिति का बड़ा हाथ है। मिरिक समुद्र तल से 4905 फुट की ऊंचाई पर स्थित है, और चाय के ढालदार पहाड़ियों से घिरा हुआ है। मिरिक के जंगली फूल, सुंदर झीलें और क्रिप्‍टोमेरिया जापानिका के पेड़ मिरिक को एक उष्‍ण कटिबंधी स्‍वर्ग बनाते हैं। छोटा सा मिरिक अपने में समेटे है, बोकर गोम्पा, सुमेंदू लेक, सिंघा देवी मंदिर, हनुमान, शिव और माता काली मंदिर।

 



 यह जगह जितनी खूबसूरत है उससे भी ज़्यादा खूबसूरत है यहां तक पहुंचने का रास्ता। चाय के बागानों से होता हुआ नदियों झरनों को लांघता हुआ, और झुक आए बादलों को चूमता हुआ। दिल को अंदर तक तर कर देने वाली ख़ुशी जैसा।

 










A waterfall on the way to Mirik

 



यहां का बेहद शांत माहौल लोगों को सुकून देता है। मिरिक शहर के बीचों बीच एक मानव निर्मित झील है, जिसे सुमेंदू लेक कहते हैं। जिसके बीचों बीच एक फ्लोटिंग फाउंटेन है। यह झील लगभग डेढ़ किलोमीटर लम्बी है। जिसके किनारे किनारे देवदार के ऊंचे वृक्ष लगे हुए हैं। ऐसा लगता है मानो ऊँचे ऊँचे यह देवदार वृक्ष इस झील की सुरक्षा के लिए खड़े हैं. कोहरे के दुशाले में लिपटी यह झील कुछ पल वहीँ ठहरजाने को मजबूर कर देती है।  यहां बोटिंग भी की जा सकती है। झील के आसपास कई छोटे छोटे रस्टॉरेंट हैं जहां बैठ कर गर्म गर्म चाय और नेपाली खाने का आनंद लिया जा सकता है। इन रेस्टॉरेंट से सटी  हुई भूटिया लोगों की दुकाने हैं जहां गर्म हाथ से बुने ऊनी वस्त्र जैसे मोज़े, दस्ताने रंग बिरंगे मफ़लर आदि मिलते है.

 










Sumendu Lake

 










Local people love to feed Fishes in the lake

 

इस झील में फिशिंग भी की जाती है। लोग यहां मछलियों को खाना खिलाते हैं। मिरिक बाजार से थोड़ा दूर ऊंचाई पर एक मोनेस्ट्री है। यह बहुत ही सुन्दर मॉनेस्ट्री है। पहाड़ी के शिखर पर बनी यह मॉनेस्ट्री बहुत खूबसूरत है। इसका नाम-बोकर नागदोन चोखोर लिंग मोनेस्ट्री है.

 










Bokar Ngedon Chokhor Ling Monastery

 










Small Lamas are running towards Monastery 


इस मोनेस्ट्री की स्थापना बौद्ध धर्मगुरु क्याब्जे बोकर रिम्पोचे ने 1984 में की थी। आज यहाँ लगभग 500 छात्र बौद्ध धर्म की विधिवत शिक्षा ग्रहण करते हैं। 

 

 यहां से हिमालय पर्वत शृंखला में कंचनजंगा के अद्भुत दृश्‍य भी दिखाई देते हैं। यहां से सूर्योदय और सूर्यास्त बहुत सुंदर नजारा देखने को मिलता हैं। यहां पर मिलने वाले प्राकृतिक नज़ारे बहुत हद तक दार्जिलिंग से मिलते जुलते हैंशायद इसी लिए लोग इसे मिनी दार्जिलिंग भी कहते हैं।



 

 



मिरिक में फलों के बागान भी हैं। पश्चिम बंगाल में संतरा सबसे ज़्यादा यहीं पैदा होता है। मिरिक में ठहरने के लिए कई होटल हैं।




 



कब जाएं:-




वर्ष में कभी भी जाया जा सकता है। हर मौसम में इस जगह के नज़रे अद्भुत हैं। बरसात के मौसम में मिरिक बेहद खूबसूरत और हरा भरा नज़र आता है। अगर आप एडवेंचर के शौक़ीन हैं तो एक बार मिरिक बरसात में ज़रूर जाएं। प्रकृति के बेहद हसीं करिश्मे देखने को मिलेंगे। कभी बादल इतने निचे आजाएगा कि आप उसके बीच से होकर गुज़र जाएँगे। रास्तों में जगह जगह बरसाती झरने आपका स्वागत करेंगे। लेकिन कंचनजंघा का नज़ारा गर्मियों में ज़्यादा अच्छा दीखता है। ऊंचाई पर होने के कारण यहां सर्दियों में अधिक ठण्ड पड़ती है। 



 



कैसे जाएं:-




वायु मार्ग- मिरिक से बगडोगरा का एयरपोर्ट सबसे नजदीक है. यहां से इसकी दूरी 55 किलोमीटर है



 



रेलमार्ग- मिरिक से सबसे नजदीक न्यू जलपाईगुड़ी का स्टेशन पड़ता है



सड़क मार्ग- सिलीगुड़ी से दो घंटे में मिरिक पहुंच सकते हैं


 


 

फिर मिलेंगे दोस्तों हिमालय के किसी और छुपे हुए नगीने को देखने 

तब तक खुश रहिये और घूमते रहिये। 

 

आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त 

 

डा ० कायनात क़ाज़ी 











KK on the way to Mirik








Saturday, 18 June 2016

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर योग गुरु आचार्य बालकृष्ण से ख़ास मुलाक़ात

कामकाजी लोगों के लिए योग


योग के फायदे किसी से छुपे हुए नहीं हैं। शायद ही कोई इन्सान ऐसा हो जो योग को अपने जीवन में अपनाना न चाहता हो  पर नौकरी पेशा लोगों की यह इच्छा अक्सर इच्छा बनकर ही रह जाती है। सबकी एक ही शिकायत होती है कि योग करना  तो चाहते हैं  पर समय नहीं मिलता है। सुबह  देर एक्सट्रा नींद का लोभ तयाग ही नहीं पाते और इस तरह वह दिन कभी नहीं आता कि योग से जुड़ पाएं। क्या करें कॉम्पटीशन  ही इतना है। इसलिए दौड़ तो लगानी ही होगी।

सपने देखना अच्छा है पर उन्हें पूरा करने की जल्दी के चक्कर में अपने शरीर को मशीन बनाना कहाँ तक सही है। लगातार  अपनी सेहत को नज़र अंदाज़ करने से कितनी ही बीमारियां हैं जो शरीर को घेर लेती हैं। ये लाइफ स्टाइल साथ लाता  है थयरॉइड ,हाई ब्लॅड  प्रैशर , माइग्रेन, सर्वाइकल,गर्दन  में दर्द और जकड़न ,फ्रोज़न शोल्डर, बैक पेन आदि।  जब तक शरीर ठीक ठाक चल रहा है उसे खींचते जाते हैं। और जब शरीर बिमारियों से टूट जाता है तो शुरू हो जाते हैं महंगे डॉक्टरों के चक्कर और लगातार चलने वाले टेस्टों का सिलसिला। पर इन दवाइयों से आपकी बीमारी का  जड़ से इलाज नहीं होता येतो सिर्फ आपको दुबारा खड़ा होने लायक ठीक करती हैं। बीमारी वहीँ के वहीँ रहती है। फिर फायदा क्या हुआ दौड़ दौड़ कर एक्स्ट्रा पैसा कमाने का कमाने का। वो तो चला गया दवाइयों और महंगे अस्पतालों में।

ज़रुरत है अपने लाइफ स्टाइल में बदलाव करने की.हमारा लाइफ स्टाइल कैसा होना चाहिए? क्या कुछ आसान योग करके शरीर को ठीक रखा जा सकता है? ऐसे ही कुछ सवालों का जवाब ढूंढने हम पहुँच गए योग गुरु श्री आचार्य बालकृष्ण जी के पास:




प्रश्न: आचार्य जी कामकाजी लोग योग तो करना चाहते हैं पर समय की कमी के कारण कर नहीं पाते। क्या ऐसे कुछ आसान योगासन हैं जिन्हे कम समय में किया सकता है? आप क्या सलाह देंगे?

उत्तर : जीवन शैली को हम योग  कह  सकते हैं। मनुष्य चाहे नौकरी करता हो या व्यवसाय करता हो। सभी कार्यों को करने के लिए शरीर एक साधन है यदि शरीर ठीक रहेगा तो सारे कार्य ठीक होंगे। पर आजकल ऐसा माहौल  बन गया है कि इंसान दौड़ तो लगा रहा है पर क्यों दौड़ रहा है उसको भी पता नहीं है। ऐसा नहीं है की सफलता के लिए दौड़ना बेकार है पर हमें यह समझना होगा की यह दौड़ लक्ष्य विहीन न हो. मान भी लें की ऐसा करके हमने एक्स्ट्रा पैसे कमा  भी लिए तो वह पैसे महंगे डाक्टरों और दवाइयों में चले जाते हैं। अगर हम अपने शरीर को स्वस्थ रखेंगे तो पैसे भी बचाएंगे देश के विकास में भी सहायता करेंगे. इसलिए हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि सुबह का आधा घंटा अपने शरीर पर लगाया तो वह समय ख़राब हुआ। बल्कि यह सोचना चाहिए कि  ऐसा करने से हमने अपने जीवन के कितने ही वर्ष बचा लिए और एक बड़ी रक़म भी डाक्टरों को देने से बचा ली। अगर यह फीलिंग,यह जागरूकता हम अपने, और लोगों के अंदर पैदा कर लें तो सबके पास समय निकल आएगा। कोई कितना भी व्यस्त क्यों न हो अपनी पसंद, अपने शौक़ के लिए समय निकल ही लेता है। ज़रुरत है अपनी सेहत को वरीयता क्रम में सबसे ऊपर रखने की। जब शरीर ही ठीक नहीं होगा तो कोई काम ठीक नहीं होगा। ये तो रही समय की बात

अब योग की बात करते हैं। अगर सुबह आधा घण्टा आप योग के लिए निकाल पाते हैं तोभी काफी है। आप प्राणायाम कर सकते हैं।  कपालभाती, भस्त्रिका,अनुलोम विलोम आदि। यदि आप सूर्य नमस्कार दस बार भी कर लें तो भी काफी है। पर जो भी करें निरंतरता के साथ करें।

प्रश्न: जो लोग कम्प्यूटर पर लम्बे समय तक काम करते हैं उन्हें गर्दन,कंधे और कमर में दर्द और जकड़न की समस्या अक्सर सताती है। उनके लिए कुछ आसान योग बताएं जिन्हे ऑफिस में बैठ कर किया जा सके।

उत्तर : ऑफिस में लगातार कम्प्यूटर पर ऑंखें गड़ाए काम करने से आँखों की मांसपेशियां थक जाती हैं। उन्हें आराम देने और नेत्र ज्योति को बढ़ाने के लिए

मैं आपको योग के कुछ सरल आसान बताता हूँ जिन्हें आप ऑफिस में अपनी सीट पर बैठे-बैठे ही कर सकते हैं। ये आँखों को रिलेक्स करने के लिए बहुत लाभदायक आसान है:

पहला आसन

  1. अपनी कुर्सी पर सीधे बैठ जाएं

  2. अब 1 मिनट के लिए ऑंखें बंद रखें

  3. ऑंखें खोलें और बिना गर्दन हिलाए पहले की पुतलियों को दायें ओर ले जाएं फिर बाईं ओर ले जाएं। यह प्रक्रिया दस बार दुहराएँ

  4. अब एक मिनट का विराम लें और ऑंखें बंद कर लें।

दूसरा आसन

  1. अब बिना गर्दन हिलाए आँखों की पुतलियों को गोल गोल घुमाएं

  2. एक बार दें और से दूसरी बार बैन ओर से।

  3. यह आसान 10 बार करें



तीसरा आसन

  1. अपनी कुर्सी पर सीधे बैठ जाएं

  2. अब 1 मिनट के लिए ऑंखें बंद रखें

3 ऑंखें खोलें और बिना गर्दन हिलाए पहलेआँखों की पुतलियों से नीचे की ओर  देखें फिर ऊपर की ओर देखें।यह प्रक्रिया दस बार दुहराएँ

यह  आसन आँखों की मासपेशियों को आराम देते हैं और तनाव दूर करते हैं

प्रश्न: आचार्य जी टेक्नोलॉजी के इस दौर में लोग कम्प्यूटर,लेपटोप,स्मार्टफोन आदि के इतने आदी  हो गए हैं कि एक को छोड़ते हैं तो दूसरे को पकड़ कर बैठ जाते हैं। जिनसे कई समस्याएं हो रही हैंजैसे: सर्विकल,माइग्रेन,गर्दन में दर्द आदि। आजके समय में इनको त्यागा भी नहीं जा सकता है। क्या कोई उपाय नहीं है जिससे इनपरेशानियों से बचा जा सके?



उत्तर:सुचना क्रांति के इस दौर में जब सारा विश्व एक गाँव  में सिमट कर रह गया है। जब जानकारियों की बाढ़ सी आई हुई है। सब कुछ एक क्लिक दूर भर है। ऐसे में लोग इन तकनीकों का लगातार प्रयोग करने के लती हो जाते हैं. ऐसे में यह सोचना बेहद आवश्यक है की हम जो प्रतिदिन कितने ही घंटे इन गैजेट्स के साथ बिताते हैं उनमे से ज़रूरी कितने है और कितना समय हम फालतू चीज़ों में बर्बाद कर देते हैं। जब लोग ऑफिस से आते है तो लैपटॉप खोल कर बैठ जाते हैं.ज़्यादातर लोग लैपटॉप का इस्तेमाल गलत ढंग से बैठ कर करते हैं जिससे अनेक समस्याएं पैदा होती हैं। वहीँ लैपटॉप बंद करते हैं तो मोबाइल पर वाट्स एप्प या फेसबुक पर घंटों बिता देते हैं। हमें यह आभास ही नहीं होता की जब हम अपने स्मार्ट फोन का इस्तेमाल कर रहे होते हैं तब हम अपनी गर्दन को गलत ढंग से झुकाए होते हैं। जिसके कारण गर्दन में दर्द, कंधे और पीठ में  समस्या पैदा होती है।

हमें यह समझना होगा की हमारे लिए क्या और कितना आवश्यक है। स्वम से पूछें। अपने आप को एकाग्र करें और जितना ज़रूरी हो उतना ही इन सोशल नेटवर्किंग साइट्स और गैजेट्स का उपयोग करें। हमारे शास्त्रों में कहा गया है :अति सर्वत्र वर्जयेत।

इन समस्याओं को दूर करने के लिए आप निम्न आसान कर सकते हैं।

योगासन-गर्दन में दर्द के लिए

कैसे करें आसन
- सबसे पहले सुखासन या पद्मासन में सीधा बैठ जाएं।
- गहरी सांस लें और सांस छोड़ते हुए गर्दन को झुकाएं और ठुड्डी से छाती छूने का प्रयास करें।
- अब सांस सिर को वापस सीधा रखें।
- सांस भरते हुए सिर पीछे की ओर ले जाएं और ‌कुछ सेकंड के बाद सांस छोड़ते हुए सामान्य अवस्था में सिर रखें।
- इसी तरह सांस भरते हुए दाईं ओर गर्दन घुमाएं, फिर सांस छोड़ते हुए वापस सीधी गर्दन कर लें।
- इसी तरह दाईं ओर सांस भरें और कुछ सेकंड बाद सामान्य मुद्रा में आ जाएं।
- अब इसी प्रक्रिया को कम से कम 5-6 बार करें।

सावधानी
इस आसन को स्पोंडलाइटिस व हाई बीपी के मरीज डॉक्टरी परामर्श के बाद ही करें।

योगासन-कमर दर्द  के लिए

आसन की विधि

- पीठके बल सीधा लेट जाएं, दोनों हाथ शरीर के बगल में सीधे रखें।

- हथेलियों को जमीन पर सटाकर रखें।

- अब दोनों घुटों को मोड़ लें जिससे सिर्फ तलवे ही जमीन से छुएं।

- सांस लेते हुए कमर को ऊपर उठाने की कोशिश करें।

- कोशिश करें कि आपका सीना ठुड्डी को छुए।

- इस दौरान बाजुओं को कोहनी से मोड़ लें और हथेलियों को कमर के नीचे रखकर सपोर्ट दें।

- कुछ क्षण बाद कमर नीचे लाएं और पीठे के बल सीधे लेट जाएं।



सावधानी

स्पोंडलाइटिस के रोगी या किसी चोट के बाद गर्दन व कमर की समस्या से परेशान लोग डॉक्टर से परामर्श लेकर ही यह आसन करें।

सेतुबंध आसन के फायदे

- यह कमर और रीढ़ की हड्डी से संबंधित रोगों को दूर करता है।

- ज्वाइंट्स, गर्दन, कमर, बाजू और हथेलियों के दर्द को दूर करता है।

- गैस्ट्रिक के रोगियों के लिए फायदेमंद है।

- स्ट्रेस दूर करता है।

- पेट से संबंधित रोगों से दूर रखता है।

- इससे अच्छी नींद आती है।



योगासन-सिरदर्द, माइग्रेनके लिए



खासतौर पर माइग्रेन के उपचार में योग की भूमिका का महत्व चिकित्सक आज खुलकर मानते हैं। अमेरिका के 'नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हेल्थ' की 'नेशनल हेडेक फाउंडेशन' भी योग के इसी महत्व को समझते हुए अपने शोधों के आधार पर इसे माइग्रेन से छुटकारा पाने में कारगर मानती है।

ऐसे कारगर है प्राणायाम

प्राणायाम शरीर में सांसों की क्रियाओं पर नियंत्रण करता है। जब आप प्राणआयाम करते हैं तो शरीर के सभी अंगों में शुद्ध ऑक्सीजन का संचार होता है, खासतौर पर गर्दन और मस्तिष्क में। इससे माइग्रेन के अटैक या सिरदर्द की समस्या को काफी हद तक रोका जा सकता है।



गहरी श्वास लें

रोज सुबह या काम के दौरान ब्रेक लेते समय तीन मिनट तक सीधे बैठकर धीरे-धीरे गहरी सांस खींचने और छोड़ने से भी सिरदर्द या माइग्रेन से निपटने में आसानी होती है। इस प्रक्रिया से शरीर का तनाव भी कम होता है और आप तरोताजा महसूस करेंगे।



कपालभाति

कपालभाति भी इस समस्या से निजात के लिए बहुत कारगर प्राणायाम है। पद्मासन या सुखासन में सीधे बैठ जाएं और गहरी सांस खीचें, फिर जल्दी-जल्दी सांस छोड़ें। प्रतिदिन 10 से 15 मिनट कपालभाति का अभ्यास आपके लिए बहुत फायदेमंद साबित होगा।



अनुलोम-विलोम

इसे करने के लिए सबसे पहले पद्मासन या सुखासन की मुद्रा में बैठ जाएं। फिर अपना दाएं हाथ के अंगूठे से नाक के के दाएं छिद्र को बंद कर लें और बाएं छिद्र से भीतर की ओर सांस खीचें। अब बाएं छिद्र को अंगूठे के बगल वाली दो उंगलियों से बंद करें। दाएं छिद्र से अंगूठा हटा दें और सांस छोड़ें। अब इसी प्रक्रिया को बाएं छिद्र के साथ दोहराएं। प्रतिदिन इसे 5 से 10 मिनट तक करें।



भ्रामरी प्राणायाम

भ्रामरी प्राणायाम के दौरान सुखासन में सीधे बैठ जाएं। दोनों कानों को अंगूठों से बंद करें व मध्य की दो उंगलियों को आंखों पर रखें। अब गहरी सांस लें और धीरे-धीरे सांस छोड़ते हुए गले से आवाज निकालें। इस प्रक्रिया के दौरन मुंह बंद रखें और श्वास की सारी क्रिया नाक से ही करें।



जल नेती

जल नेती भी माइग्रेन या सिरदर्द से राहत के लिए बेहतरीन उपाय है। इसे किसी योग्य प्रशिक्षक के संरक्षण में ही करें।

प्रश्न : आचार्य जी कामकाजी लोगों के जीवन में तनाव अधिक होने के कारण अक्सर डिप्रेशन की समस्या पैदा हो जाती है। आप उनके लिए कुछ  सरल आसान बताएं जिनसे तनाव को दूर किया जा सके ?

उत्तर :गलत जीवनशैली की देन मानी जाने वाली समस्याओं में आज अवसाद की दिक्कत सबसे आम है। अपने फास्ट ट्रैक रुटीन में आप तनाव से इतने घिरे रहते हैं कि कब आपका तनाव अवसाद में बदल जाता है पता ही नहीं चल पाता। कुछ ऐसे आसन हैं जो अवसाद को खुद से कोसों दूर रखने में आपकी मदद करेंगे।

मत्स्यासन
मत्स्यासन की मदद से आप तुरंत तनाव से छुटकारा पाएंगे और तरोताजा महसूस करेंगे। इस आसन से शरीर को थकावट नहीं होती और रक्त संचार अच्छा रहता है। इस आसन के लिए पहले पद्मासन की अवस्था में बैठें। फिर दोनों कोहनियों की सहायता से पीठ के बल लेटने का प्रयास करें। पीठ और छाती ऊपर उठाएं और घुटने जमीन पर टिकाने का प्रयास करें। अब हाथो से पैर के अंगूठे को पकड़कर कोहनी को भूमि पर टिकाएं। श्वास अंदर लें। आसन छोड़ते समय जिस तरह से शुरू किया था उसी स्थिति में वापस आएं या कंधे व सिर को भूमि पर टिकाते हुए पैरों को सीधा कर शवासन में लेट जाएं।

पर्वतासन
इससे मन को स्थिर रखने व स्ट्रेस से निजात पाने में आसानी होती है। पर्वतासन के लिए सुखासन में बैठ जाएं।.दोनों हाथों को नमस्ते के आकार में जोड़ते हुए ऊपर की ओर ले जाएं। गहरी सांस लेते हुए कंधे, बाजू और पीठ की मांसपेशियों में एक साथ खिंचाव महसूस करें। इस स्थिति में एक से दो मिनट तक रहें। सांस छोड़ते हुए हाथों को नीचे लाएं। प्रतिदिन 10 से 15 बार ये आसन करें।

ब्रह्म मुद्रा आसन
इस आसन से रीढ़ की हड्डी व गर्दन का तनाव कम होता है और मस्तिष्क में रक्त संचार तेज होता है। अवसाद की स्थिति से उबारने में यह बहुत कारगर आसन है। इस आसन को करने के लिए पहले पद्मासन, सिद्धासन या वज्रासन में अच्छी तरह से बैठ जाएं। फिर गर्दन सीधी रखते हुए धीरे-धीरे दाईं ओर ले जाएं। कुछ देर रुकें और फिर गर्दन को सीधे बाईं ओर ले जाएं। फिर कुछ क्षण बाद पुनः दाईं ओर सिर घुमाएं। अब सिर को 3-4 बार क्लॉकवाइज और उतनी ही बार एंटी क्लॉकवाइज घुमाएं।

सूर्य नमस्कार
सूर्य नमस्कार आपके शरीर और मन को संतुलित रखने, तरोताजा करने और ऊर्जा प्रदान करने के लिए बेहद कारगर है। रोज दिन की शुरूआत इससे करें। सूर्य नमस्कार में 12 सरल आसन होते  हैं।

सूर्य नमस्कार की विधि

  1. दोनों हाथों को जोड़कर सीधे खड़े हों।

  2. श्वास भरते हुए दोनों हाथों को कानों से सटाते हुए ऊपर की ओर तानें और गर्दन को पीछे की ओर झुकाएं।

  3. अब श्वास छोड़ते हुए आगे की ओर झुकें। हाथ गर्दन के साथ, कानों से सटे हुए नीचे जाकर पैरों के दाएं-बाएं जमीन का स्पर्श करें।

  4. श्वास को भरते हुए बाएं पैर को पीछे की ओर ले जाएं। गर्दन को अब पीछे की ओर झुकाएं व कुछ समय रुकें।

  5. अब श्वास को धीरे-धीरे छोड़ते हुए दाएं पैर को भी पीछे ले जाएं जिससे दोनों पैरों की एड़ियां मिली हुई हों। पीछे की ओर शरीर को खिंचाव दें।

  6. अब श्वास भरते हुए दंडवत लेट जाएं।

  7. अब सीने से ऊपर के भाग को ऊपर की ओर उठाएं जिससे शरीर में खिंचाव हो।

  8. फिर पीठ के हिस्से को ऊपर उठाएं। सिर धुका हुआ हो और शरीर का आकार पर्वत के समान हो।

  9. अब पुनः चौथी प्रक्रिया को दोहराएं यानी बाएं पैर को पीछे ले जाएं।

  10. अब तीसरी स्थिति को दोहराएं यानी श्वास धीरे-धीरे बाहर निकालते हुए आगे की ओर झुकें।

  11. श्वास भरते हुए दोनों हाथों को कानों से सटाते हुए ऊपर तानें और गर्दन को पीछे की ओर झुकाएं।

  12. अब फिर से पहली स्थिति में आ जाएं।

Wednesday, 15 June 2016

Paragliding

Fly Like a Bird - Enjoy Paragliding at Sikkim

Paragliding-Gangtok-KaynatKaziPhotography-2015-5828

Imagine yourself spreading your wings and exploring the infinite expanse of the limitless sky. Since times in memorial human beings have made various attempts to fly like a bird. And if you also want to break free like a bird, then paragliding is an adventure you should definitely try. Take time out of your busy schedule and rush to the nearest place that offers you to lose yourself in the vast sky. Head to the Himalayas where mountain and hills, valleys and mighty rivers attract you to try the adventure you have been thinking of from a long time. There are many spots in India where you can enjoy paragliding. Solang Valley, Dharamshala in Himachal Pradesh and Gangtok in the North-east are some of the few.

The paragliding site at Bir-Billing in Kangra district near Baijnath is known as the second best site in the world for Paragliding. Every year in the month of October, Paragliding Competitions of international standard are organized here.

Paragliding-Gangtok-KaynatKaziPhotography-2015-5842

Paragliding aero-sport is an adventurous sport. It requires you to have faith and believe on your trainer more that you trust yourself. One can enjoy paragliding near Gangtok, the capital city of Sikkim. The site is located approximately 10 kilometers from Mahatma Gandhi Road. This site is in the vicinity of the Banjhakri waterfall.

Paragliding requires you to undergo training before actually trying it. But one can enjoy a short trip with a trained instructor also. These certified instructors ensure that you have a safe and adventurous trip. But you need to keep your weight under check. In case you weigh more than 90 kgs, then you should considering losing weight before attempting to fly like a bird.

One can find many operators who provide the gear and training for paragliding in Sikkim. There are two types of flights that could be undertaken- Medium and High flight. As the name suggests, Medium flight takes off from an altitude of 1300- 1400 feet. One can experience the breathtaking aerial view of the entire city of Gangtokas well as the snow-capped peaks of the Himalayas during this flight. Baliman Dara, which is atop a hill, is the take off point of this flight. The pilot and instructor are buckled into a harness with a glider. Then the pilot made to run down the hill and in a flash takes the leap of faith. Within minutes one is soaring into the deep blue sky like a bird. Colorful hand gliders line the expansive sky just like birds. After a round of the entire valley one can land safely in the stadium. The flight though lasts only 15- 20 minutes but the experience is totally out of the world.

Till we meet next with a new destination of the Himalayas and lesser known aspects.

Be happy and keep travelling.

Your friend and companion

Dr. Kaynat Kazi

 

Tuesday, 14 June 2016

Jibhi Camp

The Great Himalayas Calling: Day One

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Majestic and mighty Himalayas, the crown of our country, have been attracting wanderers, philosophers, explorers, trekkers and travelers like me since times in memorial.  Each person is enticed towards it for a different reason. Some are trying to find inner peace, some are in search of nirvana and a few others just want to lose themselves in theirnatural and scenic beauty.

KaynatKazi_photograph_Himalayas_waterfall_jibhi_-tirthan-valley_6_2015

The Himalayas are home to great rivers too. On one end we have the Indus whereas the other end is marked by the Brahmaputra. Greenery and nature’s bounties abound the entire landscape. It is said that the Himalayas have an enigma that attracts people like a magnet. I too have been fascinated with the charm of the Himalayas.

I have already shared my Leh-Ladakh travel diary with you. This time I would take you to the outer areas of the Himalayas. The great Himalayan range is so big that it is not possible to cover the entire expanse in one trip.

The range is divided into four categories:

  • Trans Himalayan Range

  • Greater Himalayan Range

  • Middle Himalayan Range

  • Shiwalik Range


Let us begin our journey with information about the Himalayas

KaynatKazi_photograph_Himalayas_waterfall_jibhi_-tirthan-valley_8_2015-2

The Northern-most range also called Trans Himalayas is the oldest range. It consists of Karakoram Range, Ladakh Range and the Kailash Range and is an extension of the Tibetan plateau having a width of 40 km.

The Himadri or the Greater Himalayas is the highest range of the Himalayas. The Zaskar Range of Jammu and Kashmir is part of the Himadri. Some of the highest mountain peaks like Mt K2, Kanchenjunga, Mt. Everest, Annapurna, NamchaBarwa etc. are found in the region

To the South of the Greater Himalayas lies the Middle Himalayan or Himanchal range. The Kashmir Valley in the west and Kathmandu valley in the east are two of the biggest valleys found here.  It consists of the PirPanjal range of Jammu and Kashmir, Dhauladhar range of Himachal Pradesh and Mahabharat range of Nepal.

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The Sivalik range is also called the outer Himalayas or Lesser Himalayas. This is the youngest range and has peaks that are comparatively less in height. It runs continuously from Himachal Pradesh to the easternmost part of India. Although it is inconspicuous in Bhutan and West Bengal, but emerge again in Arunachal Pradesh in the form of Miri, Mishmi and Abhor hills. The Doon Valley is situated between the Middle Himalayas and the Shiwalik hills.

Bear Circuit- Himachal Pradesh, Shiwalik and Dhauladhar Mountain Range

Beas Circuit in Himachal Pradesh is spread over the Dhauladhar range of the Shiwalik Mountain range. They are also called as the new mountains of the Great Himalayas.

Day 1- Delhi to Jibhi

Day 2- Jibhi and Banjar Valley

Day 3- Kasol

Day 4-Kullu

Day 5- Naggar

Day 6- Manali

Day 7- Kasauli

Day 1- Delhi to Jibhi

To befriend the Shiwalik hills, I chose the Beas circuit this time. I had heard that this part of the Himalayas is even more beautiful than Kashmir and all the hearsay actually turned true. It is my endeavor to choose and showcase a destination that is not frequented by regular tourists and not a clichéd destination. Hence, I decided to travel through the Beas circuit.

I started my journey from Delhi early morning at 5 am. We reached Shimla at 2 pm which was hustle bustle with tourists and regular visitors. We halted our journey at Kufri, adjoining Shimla for lunch.  Shimla and Kufri have become so commercial and look like any metropolitan city. Today is 28 May and the entire India is reeling under heat wave and here I was enjoying a cooler weather near the Himalayas.

To reach Kufri, we travelled through the Himalayan National Expressway via Parwanoo and then reached Shimla. The expressway is a four lane highway till Parwanoo and the drive is smooth and convenient. Wide roads and scenic beauty make the journey even more enjoyable.

The moment we crossed Parwanoo, the roads become narrower and curvy. Parwanoo is also a good destination to take a break. You can have a lunch at Timber Trail and enjoy the cable car ride here as the restaurant is situated on the hill running parallel to the Expressway. We decided against stopping at Parwanoo and took the route of Banjar Valley. One can reach Banjar valley through the Jalodi pass. Tall Pine trees bow to the visitors and refresh them with their cool breezes. You are instantly reminded of the proximity of the Himalayas.

Making roads on hilly terrains is a task in itself. The mountains are cut and roads constructed so that travelers can set on their path of exploration and movement of goods and services continue unabated.  The breathtaking view of the valley and nature’s beauty in every nook and corner of the mountains make me speechless. I attempt to capture it in my limited vocabulary but fail. The out of the world experience mesmerizes me.

Small villages spread over distant hills and surrounded by orchards with trees bearing fruits like apples, peaches, cherries, almonds, apricots etc. The farmers cover these trees with thin nets to protect them during hailstorms. Hilly cottages covered with brightly colored tin roofs add to the beauty. These cottages are made of wood of pine trees that provide strength to these cottages. The houses are beautiful and very cozy just like cottages depicted in fairy tales. One can see fresh fruits like apples, peaches and farm fresh cherries, green almonds being sold on the curvy hill tracks. Farming is the main occupation of people of Himachal Pradesh. Rice and wheat fields and fruit orchards abound in this landscape. We wanted to reach Jibhi as soon as possible before the dark. Hence without wasting our time we were heading towards our destination Jibhi for our first stop over. Jalodi pass is one of the most treacherous passes in the world. National Geographic Traveler has placed it in the list of ten most difficult passes of the world. The path was becoming even more challenging as we were nearing our destination. We were anxiously waiting to reach our destination. The roller coaster ride and deceiving turns were testing our patience. Each turn gave us a hope of reaching a destination and as we crossed it, a new hill emerged to be travelled. Snow covered peaks were also conspicuous during our entire journey.

As we approached Jalodi, the road became very narrow and was covered with potholes too. This is the only pass of India that is open for traffic throughout the year. It is imperative and advisable to adhere to the issued traffic rules to travel on this pass. The moment you reach this pass, many government safety signboards would catch your attention. Drive in first gear, drive slow, deep abysses and steep roads and blind turns etc.

The height of the pass is 3120 meter above sea level. It is hard to find snow in the summers here but in winter the snow covered roads welcome you. This pass connects Kullu Valley with Rampur in Himachal Pradesh. The entire pass is surrounded by high peaks and deep abysses. Breathtaking view of the valley makes the journey enjoyable. Rivers escort you throughout the route changing their direction as you travel. Crystal clear water falling over rocks createsrhythm and pleasant music. I would recommend that someone travelling on this route should cross this pass only during the day time.

We reached Jibhi at 9 pm. This is our first stop over. It had become quiet dark outside as the moment the sun sets, stark darkness envelops the hills. We were also very tired after travelling 543 km that day. We spent our night in the vast campus of Jibhi camps and cottages beneath the twinkling stars shining brightly in the dark night. The waters of the Tirthanriver were creating soulful music and the thermometer displayed 6 °C at that time.

Till we meet nextwith a new destination of the Beas Circuit and lesser known aspects.

Be happy and keep travelling.

Your friend and companion

Dr. Kaynat Kazi

Monday, 13 June 2016

Keukenhof Tulip Garden, Holland

why visit Keukenhof Tulip Garden, Holland?

 

When it comes to visit Europe in the summers the first name pops up in my mind is-Holland. Holland is known for its rich Dutch culture, tulips & windmills. What else a nature lover wants? How many of you knows that there is a famous garden of tulips being prepared for months to welcome spring with the huge verity of tulips. This gardens is–Keukenhof tulip garden. A huge number of Dutch gardeners works day & night to cultivate more than thousand species of tulip flowers for months. The garden is just 35 kilometers from Amsterdam & 21 kilometers from Schiphol airport. It's located just south of Haarlem.

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Tulip is the distinctive symbol of Holland, you will find it everywhere. The saga of the tulips is very interesting. It’s hard to believe that it’s not an inborn crop of Holland but originally cultivated in the Ottoman Empire (present-day Turkey), tulips were imported into Holland in the sixteenth century. The Tulip were originally a wild flower growing in the Central Asia and were first cultivated by the Turks in 1,000 AD. The tulip travelled far before arriving in the Netherlands. Tulips were originally found in the Tian Shan mountain region of the north-western Himalaya. Dozens of different types in all kinds of colours still grow there each spring. In the 11th Century the Seljuks, who lived there at that time, took the tulip with them to Turkey, where they drove out the Byzantines. The tulip became a cherished flower in Turkish culture, and is still so today. Sultans organised tulip parties each spring. And the most extraordinary tulips were illustrated in beautiful books. Tulips were also depicted on tiles and other household objects.



But these curvaceous flowers had got the patronage of Dutch dynasty & the immense love from the people of Holland & soon become a native crop of Holland. It is so popular here & become the eternal part of Dutch culture. There was a time when the weight of a bulb of tulip was worth of gold, and it was as precious as currency. People used to steal it from gardens. Decorating home with tulips was a status symbol.



Dutch loves being called their country-the flower shop of the world. As the dark & dull days of winters passes by the landscape of country side of Holland gets changed drastically. All of a sudden it becomes a sea of colors, full of blooms.  In the Kop van Noord-Holland, you will find millions of tulips & other flower covered fields.

The history of Keukenhof

Keukenhof started as an initiative on the part of ten flower bulb growers and exporters who create a showcase for the flower industry. In 1949, they opted for an ideal location: the gardens around Keukenhof castle.

For many years, Jacoba van Beieren was the hostess of Keukenhof. In the 15th century, she was the owner of the land where Keukenhof is now located. At that time the area was still a piece of untouched nature, used only for hunting and to gather herbs for the castle’s kitchen, which is where the name Keukenhof originally comes from.



Countess Jacoba van Beieren was born in 1401 and died in 1436. During the period from 1417 to 1433, she ruled Holland, Zeeland and Henegouwen. ‘Never a dull moment’ is perhaps the best summary of the life of this somewhat tempestuous woman, who married four times, spent a couple of years in prison, and lived in exile for some time in England. One of her favourite pastimes seems to have been waging war – she was even willing to go to war with former husbands. In 1433 she was forced to abdicate from all of her Counties. She withdrew from public life and, at the age of just 35, she died of tuberculosis in Castle Teylingen, not far from Keukenhof.



Following the death of the Countess Jacoba van Beieren in 1436, the large estate passed through the hands of several wealthy merchant families, including Baron and Baroness Van Pallandt. They asked the landscape architects Zocher, who were also responsible for the Vondelpark in Amsterdam and the gardens of Soestdijk Palace, to design a garden around their castle. The English landscape garden they created in 1857 still forms the basis for the Keukenhof Park of today.

The windmill at Keukenhof is more than a century old. It was built in Groningen in 1892, and was used to pump water out of a polder. In 1957, the Holland-America Line bought the mill and donated it to Keukenhof.



Some interesting facts about Keukenhof Tulip Garden:

Facts and figures about Keukenhof

  • This park is Internationally recognized in true sense, it receives 75% of visitors from abroad

  • The park covers 32 hectares

  • Every year, 7 million bulbs are planted

  • Keukenhof features more than 20 flower shows

  • The bulbs are supplied by 100 exhibitors

  • There are eight inspirational gardens featuring gardening ideas for consumers

  • Sculpture garden with approximately 100 works of art

  • It opens up only once in a year for eight weeks only in spring season(from March to May)

  • It welcomes approx. 800,000 visitors from across the world every year

  • It is world’s largest Tulip garden-Keukenhof now has a hundred flower bulb growers supplying bulbs to the park and five hundred flower growers participating in the flower shows.

  • Nearly fifty million people have visited the park since it first opened.




About The park

Keukenhof originally focused almost exclusively on flower bulbs, but now has much more to offer. The historic park, which dates from 1857 and was designed in the English landscape garden style by Zocher, forms the perfect backdrop for the flower bulbs. Visitors can become acquainted with cut flowers, plants and tree nursery products.

Each year, fourty gardeners plant bulbs at reserved locations throughout the park. At the end of the season, these bulbs are harvested, and a new cycle of planting, blooming and harvesting begins again in the autumn.



 

In order to ensure that Keukenhof always has a new look, the planting is redesigned every year. The plants are carefully selected so that visitors can enjoy bulbs in full bloom throughout the entire period Keukenhof is open. The seven million flower bulbs are supplied completely free of charge by a hundred exhibitors who could hardly imagine a better showcase for their products.



Keukenhof inspires its visitors with a range of different styles of gardens and interiors, in which flower bulbs and bulb flowers always play a key role. The different parts of the park vary from the English landscape garden to the renovated Japanese country garden. The garden offers surprising perspectives and exciting vistas and brings out the very best of the ancient trees. In the natural garden, shrubs and perennials are combined with naturalised bulbs. The historic garden is home to old varieties of tulip and uses these special varieties to demonstrate the tulip’s long journey prior to its arrival in the Netherlands.

The seven inspirational gardens give visitors the unique opportunity to gain ideas for their own gardens.

The park organize many events like flower shows, parade & auctions. You can enjoy live music & performance by Local Dutch artists in the partk.

For children, Keukenhof has a maze, a playground, a Miffy house and a petting zoo. A treasure hunt takes them along the most beautiful places in the park.

 

Keukenhof has its own sculpture garden. A network of artists will be exhibiting around 100 pieces. The art exhibition is characterised by a wide variety of styles. It has two full-fledged restaurant and many food points inside the part. If you feel tiered you can sit & relax over the cup of coffee & special Dutch wafers.

How to reach:

In 2017 Keukenhof tulip garden will re-open from 23 March untill 21 May 2017.

By car

Keukenhof is located between Amsterdam and The Hague and is easily accessible via motorways A4 (exit Nieuw-Vennep) and A44 (exit 3, Lisse). 'Keukenhof' is well signposted after the exit.

 

By Public transport:

It’s very easy to use public transport to reach Keukenhof Tulip garden. You can find dedicated busses outside Amsterdam Airport Schiphol to reach Keukenhof. It takes 35 to 40-minute to reach there. You can buy a combo tickets (bus & garden entrance) from the Amsterdam Tourist Information Offices (called "VVV" offices) for Bus 58 from Schiphol direct to the gardens. The buses leave every 15 minutes from the second island outside the arrivals-level entrance at the airport. See the Keukenhof website for more information.

 

Travel tips:

  • If you are planning to visit Keukenhof Park in 2017, try to make your trip in the starting.

  • Do not forget to buy a souvenir from local shop & artists

  • Have a picture with ladies in traditional Dutch outfit

  • If you want to go to direct from airport to park you can carry your luggage there as the park has locker facility available but check in advance.


Friday, 10 June 2016

Suresh Prabhu launches Tiger Express Train On The World Environment Day

Suresh Prabhu launches Tiger Express Train On The World Environment Day 


In terms of Budget Announcement 2016-17, Minister of Railways Shri Suresh PrabhakarPrabhutodayflagged off the inaugural run of the Tiger Trail Circuit Train from Delhi Safdarjung Station. Shri Suresh Prabhu who was on tour to Mumbai, flagged off this train through video conferencing between Mumbai and Delhi.

Several dignitaries were present on this occasion at both the ends of this remote flagging off programme. AtDelhiSafdarjung Railway Station end Dr. Harsh Vardhan, Union Minister of Science and Technology & Earth Sciences, Smt. MeenakshiLekhi, Member of Parliament (Lok Sabha), JanardhanDwivedi, Member of Parliament (Rajya Sabha) and Shri Karan Singh Tanwar, Vice-Chairman NDMC were the distinguished guests present on the occasion. Railway officials present at the Safdarjung Station were Member Traffic, Railway Board, Shri Mohammad Jamshed, Member Staff, Shri Pradeep Kumar, Member Mechanical, Shri Hemant Kumar, Member Electrical, Shri A.K. Kapoor, Finance Commissioner Railways, Shri S. Mukherjee,General Manager, Northern Railway, Shri A.K. Puthia and Divisional Railway Manager, Delhi, Shri Arun Arora and Other Senior Officers of Railway Board and Northern Railway.

The launch of this Tiger Express on World Environment Day is to highlight the significance of environment in our lives. The Railway Minister took personal interest in conceptualizing this train. This tourist train will be operated by Indian Railway PSU namely Indian Railway Catering and Tourism Corporation (IRCTC).

The train with 5 days/6 nights itinerary will start from Delhi Sufdarjung railway station and travel via Katani, Jabalpur, Bandhavgadh, Kanha. The semi-luxury train will take the guests onboard to the world famous Bandhavgarh and Kanha National Parks in Madhya Pradesh. In addition the trip will also take tourists to Dhuadhar Waterfall in Bedhaghat near Jabalpur.

Speaking on the occasion, the Railway Minister Shri Suresh Prabhu said that Indian Railways is fully committed to address environmental issues. Shri Suresh Prabhu pointed out that, he on assuming charge took the initiative of creating a separate, dedicated Environment Directorate in the Ministry of Railways. He said that the Railway Ministry is taking several measures with view to be more environmental friendly. Referring to the Tiger Express which was launched today Shri Suresh Prabhu said that tiger is at the apex of the food chain which has tremendous ecological impact and hence it is befitting to launch a train focused on this subject. Shri Suresh Prabhu announced that Indian Railways through its PSU IRCTC will launch more tourist circuit trains like elephant circuit, desert circuit etc.

Salient features of the Tiger Express:

The launch of the ‘Tiger Express’ is in tune with the announcement in this regard in the Railway Budget 2016-17. The objective of the train is to create awareness about our national animal, the Tiger.

The ‘Tiger Express’ is one of the most innovative tourism products ever launched by Indian Railways.

The Indian Tiger has always allured tourists from both India and abroad. The semi-luxury train will take the guests onboard to the world famous Bandhavgarh and Kanha National Parks in Madhya Pradesh.

The Kanha National Park is known for the presence of tigers, Swamp Deer, and the Barasingha. It is also recognized as the source of inspiration for the famous writer Rudyard Kipling for his famous novel, “The Jungle Book”.

The Bandhavgarh National Park is known for its biodiversity. The density of the tiger population at Bandhavgarh is one of the highest known in India. The park has a large breeding population of leopards and various species of deer.

The 5 days / 6 nights itinerary of the Tiger Express includes three Tiger Safaris, and it gives ample opportunity to the tourists to have a sight of the majestic wild cats in their natural environs and a spectacular view of the wildlife.

The 5th June, 2016 trip of the Tiger Express is the inaugural run of this train. Regular Monthly trips of the fully air-conditioned train, which has been vinyl-wrapped with motifs of the wildlife, are to begin from October, 2016 onwards.

The most important objective of the train is to create and spread awareness about the wildlife in general and the tiger in particular. An added attraction of the trip is a visit to the famous Dhuadhar Falls in Bhedaghat, Jabalpur.

IRCTC has been designated to execute the entire itinerary. They have been efficiently conducting a variety of tour programmes like the ‘Desert Circuit’ in Rajasthan and the ‘Heritage Circuit’ in North India. This is for the first time that Indian Railways have forayed into the exciting and fascinating wildlife tourism.

The itinerary has been chalked out in a manner that the guests not only enjoy a comfortable travel but also spend considerable time of the trip in the midst of Nature. The package includes journey by the exclusive semi luxury air conditioned train, accommodation in air-conditioned rooms of three star equivalent hotels for three nights (one night in Bandhavgarh and two nights in Kanha in Mogli Resorts), sightseeing and road transportation by AC vehicles, buffet meals, game safaris, inter-city transfers and travel insurance.

This is also the first semi-luxury train on a tourist circuit having a dining car. The objective behind it is to facilitate frequent interactions among travellers during the travel. No other semi-luxury train is equipped with a dining car.

Fare Structure:

The itinerary has a tariff structure starting from Rs 38,500. For travelling in 1AC, tariff has been fixed at Rs 49,500 for single occupancy, Rs 45,500 for double occupancy, Rs 44,900 for triple occupancy and Rs 39,500 for child with bed (5-11 years).

The fares for those travelling in AC 2-tier is Rs 43,500 for single occupancy, Rs 39,000 for double occupancy, Rs 38,500 for triple occupancy and Rs 33,500 for child with bed (5-11 years).

However, these rates are valid for Indian citizens only. An additional surcharge of Rs. 4,000 per person will be charged from foreigners for the Safari booking at Bandhagarh and Kanha. 

Itinerary:

  Tiger Express train

Route of Tiger Express:

Tiger Express

Booking Information:

The Online Booking of this train can be done on IRCTC Tourism Portal- www.irctctourism.com ortourism@irctc.com. For further information, one may dial toll-free number 1800110139 or 9717645648, 971764718, 9717640219, 9717644085, 9717645625.

Curtsy: Press Information Bureau 

MUMBAI DARSHAN BY HELICOPTER

MUMBAI DARSHAN BY HELICOPTER


This summer experience Mumbai from Arial viewDarshan

MUMBAI DARSHAN BY HELICOPTER

 Price starting from:
₹ 2,955/-
Book Ticket


Duration:10 Minutes

Description:
Enjoy a helicopter joy ride over Mumbai. Helicopter joy ride 700 feet above the city or the coast is an unforgettable way to experience the breathtaking beauty of Mumbai and its surrounding areas. The flights beings with a per-flight briefing before you take to the skies to spot some famous icons of Mumbai. Enjoy the panoramic views of the Mumbai and it’s coastline from your armchair in the sky.


MUMBAI DARSHAN


*Child fare of age 2-4 years would be deposit full payment(2,955 Rs/-) in cash by customer at IRCTC office at the time of booking.


Curtsy: irctc tourism

EASY E-VISA: WELCOME TO INDIA

 

logo

EASY E-VISA: WELCOME TO INDIA

It’s the part of our culture to welcome our guests with open arms. Here is the good news for the people from around the world, who loves India for its culture, versatility and heritage. They can apply visa online & its hassle free. If you are the citizen of the following country you can apply for e-visa.

e-Tourist Visa Facility is available for nationals of following countries/territories

Andorra, Anguilla, Antigua & Barbuda, Argentina, Armenia, Aruba, Australia, Bahamas, Barbados, Belgium, Belize, Bolivia, Brazil, Cambodia, Canada, Cayman Island,Chile, China, China- SAR Hongkong, China- SAR Macau, Colombia, Cook Islands, Costa Rica, Cuba, Djibouti, Dominica, Dominican Republic, East Timor, Ecuador, El Salvador, Estonia, Fiji, Finland, France, Georgia, Germany, Grenada, Guatemala, Guyana, Haiti, Honduras, Hungary, Indonesia, Ireland, Israel, Jamaica, Japan, Jordan, Kenya, Kiribati, Laos, Latvia, Liechtenstein, Lithuania, Luxembourg, Malta, Malaysia, Marshall Islands, Mauritius, Mexico, Micronesia, Monaco, Mongolia, Montenegro, Montserrat, Mozambique, Myanmar, Nauru, Netherlands, New Zealand,Nicaragua, Niue Island, Norway, Oman, Palau, Palestine, Panama, Papua New Guinea, Paraguay, Peru, Philippines, Poland, Portugal, Republic of Korea, Republic of Macedonia, Russia, Saint Christopher and Nevis, Saint Lucia, Saint Vincent & the Grenadines, Samoa, Seychelles, Singapore, Slovenia, Solomon Islands, Spain, Sri Lanka, Suriname, Sweden, Taiwan, Tanzania, Thailand, Tonga, Turks & Caicos Island, Tuvalu, UAE, Ukraine, United Kingdom, USA, Uruguay, Vanuatu, Vatican City-Holy See, Venezuela, Vietnam.

For more details visit:

https://indianvisaonline.gov.in/visa/tvoa.html

Monday, 6 June 2016

Must visit the truly international city Amsterdam

एक बार एमस्टर्डम ज़रूर जाएँ

I amsterdam letters: Located at the back of the Rijksmuseum on Museumplein, the large I amsterdam slogan quickly became a city icon and a much sought-afterphoto opportunity. Visitors photograph themselves, in, around and on top of the slogan, and it always manages to inspire the novice photographer.


Leidseplein Squire: The Leidseplein is a square in central Amsterdam, the Netherlands. Lying in the southwest of the Grachtengordel district of Amsterdam, the Leidseplein is immediately northeast of the Singelgracht canal.

एमस्टर्डम सही माइनों में एक अन्तर्राष्ट्रीय शहर है, यह यूरोप मे स्थित देश नीदरलैंड की राजधानी है, जिसका एक वैभवशाली इतिहास रहा है। एमस्टर्डम आधुनिक और प्राचीन धरोहर का संगम है, जहाँ एक ओर उँची-उँची इमारतें हैं वहीं युनेसको की विश्व धरोहर-कैनाल रिंग भी यहाँ मौजूद हैं। सन् 2010 में युनेसको ने इसे विश्व धरोहर की सूची(UNESCO World Heritage List) मे शामिल किया Seventeenth-Century Canal Ring Area of Amsterdam एमस्टर्डम  को यह खिताब मिला अपनी प्राचीनतम कैनाल रिंग के लिए। जिसके लिए एमस्टर्डम को "उत्तर का वेनिस" भी माना जाता है। यह कैनाल रिंग अपने मे बहुत अद्भुत हैं। यह 100 किलोमीटर मे फैली हुईं हैं। एमस्टर्डम 12वी शताब्दी मे विश्व मानचित्र पर एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र था। यहाँ समुद्र मार्ग से बड़े निर्यात किए जाते थे। यहाँ अन्य व्यापारों के साथ-साथ हीरों का व्यापार भी किया जाता था। यह एक पोर्ट सिटी रहा है इसलिए व्यापार का केंद बना और व्यापार को और बेहतर बनाने में कैनाल रिंग ने मुख्य भूमिका निभाई। इस शहर ने पूरी दुनियां के लोगों को अपनी और आकर्षित किया है। आज यहाँ कई आकर्षण के केंद्र हैं जैसे इस जगह को संग्रहालयों का शहर भी कहा जाता है। मैडम तुसाद संग्रहालय भी यहीं स्थित है। यह जगह मशहूर है, वैभव कालीन ऐतिहासिक इमारतों, संग्रहालयों, जुएखानों, रेड लाईट एरिया और कैफे के लिए। यह ज़िंदादिल लोगों का शहर है। बसन्त ऋतू आते ही पूरा शहर फूलों से महकने लगता है। यहाँ की पहचान माने जाने वाले फूल टयूलिप आपको हर जगह दिख जाएंगे।


Tulip, Tulip every where 

 यही कारण है कि एमस्टर्डम खुले दिल से दुनियाँ के किसी भी कोने से आए लोगों का गर्मजोशी से स्वागत करता है।

Seventeenth-Century Canal Ring Area of Amsterdam

कैनाल रिंग है खास:

कैनाल रिंग का निर्माण सत्रहवीं शताब्दी में हुआ। इसमें लगभग 90 आईलैंड हैं और 1500 ब्रिज। यह शहर अर्बन प्लॅनिंग का शाहकार है। इसे डच साम्राज्य के गोलडन ईरा में बनाया गया था। यह उस समय की बहुत बड़ी और महत्वाकांक्षी परियोजना थी। यहाँ मुख्य रूप से तीन कैनाल हैं। (Herengracht, Prinsengracht, और Keizersgracht) इन मुख्य कैनालों में एक राजा की कैनाल Keizersgracht है, दूसरी कैनाल (Prinsengracht) राजकुमार की है और तीसरी कैनाल (Herengracht) अभिजात वर्ग से सम्बंधित लोगों जैसे मुख्य दरबारी और बड़े व्यापारी। इन कैनालों के किनारे-किनारे खूबसूरत घर बनाए गए जोकि आज भी क़ायम हैं और एमस्टरडम की पहचान के रूप में जाने जाते हैं।




एमस्टर्डम का नाम कैसे पड़ा?

क्या कोई सोच सकता है कि एक बेहतरीन शहर आम्सटरडॅम के बसने की वजह एक बाढ़ रही होगी, जी हाँ सन् 1170 मे अमएस्टेल नदी मे एक भीषण बाद आई और अपने साथ बहुत कुछ बहा कर ले गई तब यहाँ के लोगों ने उस बाढ़ से सबक़ लिया और सन् 1173 मे अमएस्टेल नदी पर एक बाँध बनाया। इस तरहां अमएस्टेल नदी पर बना एक डैम और इस जगह को नाम मिला अमएस्टर+डैम। "अमस्टर्डम" कभी यह नाम मछवारों के एक छोटे से गाँव का हुआ करता थाआज यह एक खूबसूरत शहर है। इस शहर की खूबसूरती के बारे में लिखने से ज़्यादा देखना दिलचस्प होगा। तो आइए और मेरे साथ चलिए यूरोप की यात्रा पर..
इस शहर में कुछ बात है, यह बहुत अपना-सा जान पड़ता है। यहाँ के लोग मिलनसार हैं। आप किसी से भी पता पूछिए वह आपकी पूरी सहायता करेगा और अगर उसे नहीं मालूम होगा तो बड़ी विनम्रता से माफ़ी मांग लेगा।

Bright & lively place at Amsterdam central station

टिप्स
·       इस शहर को देखने के लिए सबसे अच्छा साधन है ट्राम, अगर आप एम्स्टर्डम घूमने जाना चाहते हैं तो यहाँ पब्लिक ट्रांसपोर्ट बहुत अच्छा है। ट्राम में कहीं भी जाने के लिए आपको 2.90 यूरो खरचने होते हैं। यह एक टिकट की क़ीमत है, मेरी सलाह है कि आप पब्लिक ट्रांसपोर्ट का पास पहले से ही ले लें. तो काफी बचत की जा सकती है। अगर आप इसके लिए अमस्टर्डम की अधिकारिक वेबसाइट http://www.iamsterdam.com/
 से जाकर पब्लिक ट्रांसपोर्ट का पास आई एमस्टरडम सिटी कार्ड ले लें। वैसे इसे काउंटर से भी ख़रीदा जा सकता है। iamsterdam के काउंटर एयरपोर्ट और सिटी सेंटर रेलवे स्टेशन पर बने हुए हैं। यह आपकी ज़रूरत के हिसाब से 24 घण्टे या 48 या 72 घण्टे की वेलिडिटी के साथ मिलते हैं। इस पास द्वारा आप ट्राम, बस और बोट का अनलिमिटेड प्रयोग कर सकते हैं।


· आई एमस्टरडम सिटी कार्ड  से आप लोकल ट्रांसपोर्ट का तो अनलिमिटेड प्रयोग कर पाएंगे साथ ही एम्स्टर्डम के बेस्ट म्यूज़ियमस में भी फ्री एंट्री मिल पाएगी। इस कार्ड द्वारा आप एक घंटे की फ्री कैनाल क्रूज़ राइड भी ले सकते हैं।



·       और हाँ एक और ज़रूरी बात अगर आपको साईकिल चलाना नहीं आती तो एम्स्टर्डम जाने से पहले ज़रूर सिख लें, क्योंकि यह शहर साईकिल से सबसे अच्छी तरह घूमा जा सकता है। यहाँ साईकिल के लिए अलग से  पथ बने हुए हैं जिनकी लम्बाई लगभग 400 किलोमीटर की है। कैनाल के सहारे सहारे मून लाइट में साइकिलिंग करने का अपना अलग आनन्द है।


यूरोप डायरी के पन्नों से कुछ और क़िस्से आपके साथ साझा करुँगी अगली पोस्ट में।


तब तक खुश रहिये और घूमते रहिये

आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त



डा० कायनात क़ाज़ी