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कुछ पंक्तियां इस ब्लॉग के बारे में :

प्रिय पाठक,
हिन्दी के प्रथम ट्रेवल फ़ोटोग्राफ़ी ब्लॉग पर आपका स्वागत है.….
ऐसा नहीं है कि हिन्दी में अच्छे ब्लॉग लिखने वालों की कमी है। हिन्दी में लोग एक से एक बेहतरीन ब्लॉग्स लिख रहे हैं। पर एक चीज़ की कमी अक्सर खलती है। जहां ब्लॉग पर अच्छा कन्टेन्ट है वहां एक अच्छी क्वालिटी की तस्वीर नहीं मिलती और जिन ब्लॉग्स पर अच्छी तस्वीरें होती हैं वहां कन्टेन्ट उतना अच्छा नहीं होता। मैं साहित्यकार के अलावा एक ट्रेवल राइटर और फोटोग्राफर हूँ। मैंने अपने इस ब्लॉग के ज़रिये इस दूरी को पाटने का प्रयास किया है। मेरा यह ब्लॉग हिन्दी का प्रथम ट्रेवल फ़ोटोग्राफ़ी ब्लॉग है। जहाँ आपको मिलेगी भारत के कुछ अनछुए पहलुओं, अनदेखे स्थानों की सविस्तार जानकारी और उन स्थानों से जुड़ी कुछ बेहतरीन तस्वीरें।
उम्मीद है, आप को मेरा यह प्रयास पसंद आएगा। आपकी प्रतिक्रियाओं की मुझे प्रतीक्षा रहेगी।
आपके कमेन्ट मुझे इस ब्लॉग को और बेहतर बनाने की प्रेरणा देंगे।

मंगल मृदुल कामनाओं सहित
आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त

डा० कायनात क़ाज़ी

Monday, 24 December 2012

डर का चेहरा बदल गया है अब मेरी दिल्ली में

डर  का चेहरा बदल गया है अब मेरी दिल्ली में
क्या आप ने डर को कभी देखा है?
क्या डर का भी कोई चेहरा होता है?
हां, होता है...
मैने डर को देखा है,
उसके चेहरे को देखा है.
बहुत करीब से देखा है,
दिल्ली की सड़कों पर,
आफिस के कमरों में
मॉल में, रेस्टोरेंट में, सिनेमाघर में.

जब भी दिल्ली की सडकों पर निकलती हूं
लोगों के चेहरों से डर लगता है,
चेहरों के पीछे छुपे नकली चेहरों से डर लगता है,
आंखों में छुपे वेहशीपन से डर लगता,
पहले डर भूत और जानवरों से लगता था,
अब ये इंसान को इंसान से है
,
डर  का चेहरा बदल गया है अब मेरी दिल्ली में
कोई राह में मुड़-मुड़ के
इस आस में देखा करता
 है कि,
किसी गाड़ी वाले का दिल पसीज जाए और उसे लिफ्ट मिल जाए
,
पर यहां तो अब सब दहशत में हैं
,
कौन किसकी मदद करे ?
 किसकी मदद करे ?
इंसान को इंसान का डर
,
उसकी हैवानियत का डर
तोड़ मरोड़ कर
 
नोच डालने का डर
,
रेज़ा
-रेज़ा कर देने का डर,
बात सिर्फ
 सामान भर लुटने की नहीं
यहां तो असमत दांव पर है
,
कौन किसको लिफ्ट दे
?
किसकी मदद करे
 ?
राह में मदद करने वाला कहीं खुद ही न रहज़न निकले
,
सामान के साथ कहीं इज्ज़त भी न गंवानी पड़ जाए
सोच कर वह सिहर उठती है.
इंसान ही नहीं अब तो अखबार से भी डर लगता है,
हजारों निर्भया की खबरों से,
टीवी पर गूंजती सैकड़ों दामिनी के चीत्कार से,
बलात्कार के आंकड़ों से,
डर का चेहरा बदल गया है अब मेरी दिल्ली में.