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कुछ पंक्तियां इस ब्लॉग के बारे में :

प्रिय पाठक,
हिन्दी के प्रथम ट्रेवल फ़ोटोग्राफ़ी ब्लॉग पर आपका स्वागत है.….
ऐसा नहीं है कि हिन्दी में अच्छे ब्लॉग लिखने वालों की कमी है। हिन्दी में लोग एक से एक बेहतरीन ब्लॉग्स लिख रहे हैं। पर एक चीज़ की कमी अक्सर खलती है। जहां ब्लॉग पर अच्छा कन्टेन्ट है वहां एक अच्छी क्वालिटी की तस्वीर नहीं मिलती और जिन ब्लॉग्स पर अच्छी तस्वीरें होती हैं वहां कन्टेन्ट उतना अच्छा नहीं होता। मैं साहित्यकार के अलावा एक ट्रेवल राइटर और फोटोग्राफर हूँ। मैंने अपने इस ब्लॉग के ज़रिये इस दूरी को पाटने का प्रयास किया है। मेरा यह ब्लॉग हिन्दी का प्रथम ट्रेवल फ़ोटोग्राफ़ी ब्लॉग है। जहाँ आपको मिलेगी भारत के कुछ अनछुए पहलुओं, अनदेखे स्थानों की सविस्तार जानकारी और उन स्थानों से जुड़ी कुछ बेहतरीन तस्वीरें।
उम्मीद है, आप को मेरा यह प्रयास पसंद आएगा। आपकी प्रतिक्रियाओं की मुझे प्रतीक्षा रहेगी।
आपके कमेन्ट मुझे इस ब्लॉग को और बेहतर बनाने की प्रेरणा देंगे।

मंगल मृदुल कामनाओं सहित
आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त

डा० कायनात क़ाज़ी

Wednesday, 22 July 2015

जोधपुर का मंडोर गार्डन एक ट्रैवलर को ज़रूर देखना चाहिए



वर्षों से जोधपुर राजपुताना वैभव का केन्द्र रहा है। जिसके प्रमाण आज भी जोधपुर शहर से लगे अनेक स्थानों पर प्राचीन इमारतों के रूप में मिल जाते हैं। जोधपुर से 9 किलोमीटर की दूरी पर एक ऐतिहासिक स्थान मौजूद है जिसको मंडोर गार्डन के नाम से पुकारा जाता है। इसी के नाम पर एक ट्रैन का नाम भी रखा गया है-मंडोर एक्सप्रेस जोकि दिल्ली से जोधपुर के लिए चलती है। मैंने भी जोधपुर पहुंचने के लिए इसी ट्रेन का रिजर्वेशन करवाया था। यह ट्रैन शाम को पुरानी दिल्ली से चलती है और सुबह सात बजे जोधपुर पहुंचा देती है।



मण्डोर का प्राचीन नाम माण्डवपुरथा। जोधपुर से पहले मंडोर ही जोधपुर रियासत की राजधानी हुआ करता था। राव जोधा ने मंडोर को असुरक्षित मानकर सुरक्षा के लिहाज से चिड़िया कूट पर्वत पर मेहरानगढ़ फोर्ट का निर्माण कर अपने नाम से जोधपुर को बसाया था तथा इसे मारवाड़ की राजधानी बनाया। वर्तमान में मंडोर दुर्ग के भग्नावशेष ही बाकी हैं, जो बौद्ध स्थापत्य शैली के आधार पर बने हैं। इस दुर्ग में बड़े-बड़े प्रस्तरों को बिना किसी मसाले की सहायता से जोड़ा गया था।



मैंने अपने होटल के मैनेजर से यहां से जुड़ी कुछ जानकारियां जुटाईं। जोधपुर के आसपास ही कई देखने लायक ऐतिहासिक स्थल हैं जिसमे मंडोर अपनी स्थापत्य कला के कारण दूर-दूर तक मशहूर है। मंडोर गार्डन जोधपुर शहर से पांच मील दूर उत्तर दिशा में पथरीली चट्टानों पर थोड़े ऊंचे स्थान पर बना है।

ऐसा कहा जाता है कि मंडोर परिहार राजाओं का गढ़ था। सैकड़ों सालों तक यहां से परिहार राजाओं ने सम्पूर्ण मारवाड़ पर अपना राज किया। चुंडाजी राठौर की शादी परिहार राजकुमारी से होने पर मंडोर उन्हें दहेज में मिला तब से परिहार राजाओं की इस प्राचीन राजधानी पर राठौर शासकों का राज हो गया। मन्डोर मारवाड की पुरानी राजधानी रही है|



यहां के स्थानीय लोग यह भी मानते हैं कि मन्डोर रावण की ससुराल था। शायद रावण की पटरानी का नाम मन्दोद्री होने के कारण से ही इस जगह का नाम मंडोर पड़ा. यह बात यहां एक दंत कथा की तरह प्रचलित है। लेकिन इस बात का कोई ठोस प्रमाण मौजूद नहीं है।
मण्डोर स्थित दुर्ग देवल, देवताओं की राल, जनाना, उद्धान, संग्रहालय, महल तथा अजीत पोल दर्शनीय स्थल हैं।



मंडोर गार्डन एक विशाल उद्धान है। जिसे सुंदरता प्रदान करने के लिए कृत्रिम नहरों से सजाया गया है। जिसमें 'अजीत पोल', 'देवताओं की साल' 'वीरों का दालान', मंदिर, बावड़ी, 'जनाना महल', 'एक थम्बा महल', नहर, झील व जोधपुर के विभिन्न महाराजाओं के समाधि स्मारक बने है.  लाल पत्थर की बनी यह विशाल इमारतें स्थापत्य कला के बेजोड़ नमूने हैं। इस उद्धान  में देशी-विदेशी पर्यटको की भीड़ लगी रहती है। यह गार्डन पर्यटकों के लिए सुबह आठ से शाम आठ बजे तक खुला रहता है।



जोधपुर और आसपास के स्थान घूमने का सबसे अच्छा साधन है यहां चलने वाले टेम्पो। आप थोड़ी बार्गेनिंग करके पूरे दिन के लिए टेम्पो वाले को घुमाने के लिए तय कर सकते हैं। मैंने भी टेम्पो को पूरे दिन के लिए तय कर लिया। मैं टेम्पो में बैठ कर मंडोर गार्डन पहुंची। यहां काफी लोग आते हैं। आप खाने पीने का सामान गार्डन के गेट से खरीद कर अंदर ले जा सकते हैं। पर थोड़ी सावधानी ज़रूरी है। यहां पर बड़े-बड़े लंगूर रहते हैं जोकि खाना छीन कर भाग जाते हैं। इस जगह को देखने से पहले यहां के इतिहास के बारे में थोड़ी जानकारी ज़रूरी है। यहां का इतिहास जो थोड़ा बहुत  मुझे यहां के लोगों से पता चला है। मैं आपके साथ साझा करती हूं।



मंडोर गार्डन का इतिहास
उद्धान में बनी कलात्मक भवनों का निर्माण जोधपुर के महाराजा अजीत सिंह व उनके पुत्र महाराजा अभय सिंह के शासन काल के समय सन् 1714 से 1749 ई. के बीच हुआ था। उसके पश्चात् जोधपुर के विभिन्न राजाओं ने इस उद्धान की मरम्मत आदि करवाई और समय समय पर इसे आधुनिक ढंग से सजाया और इसका विस्तार किया। आजकल यह सरकारी अवहेलना और भ्रष्टाचार की मार झेल रहा है। इस स्थान के रख रखाव पर ध्यान दिया जाना बहुत ज़रूरी है। रखरखाव की कमी से पानी की नहर कचरे से भर चुकी है। जिसे देख कर मुझे काफी अफ़सोस हुआ।

The Ek Thamba Mahal At Mandore Garden.


यह स्मारक पूरे राजस्थान में पाई जाने वाली राजपूत राजाओं की समाधि स्थलों से थोड़ा अलग हैं। जहां अन्य जगहों पर समाधि के रूप में विशाल छतरियों का निर्माण करवाया जाता रहा है। वहीँ जोधपुर के राजपूत राजाओं ने इन समाधि स्थलों को छतरी के आकर में न बनाकर ऊंचे चबूतरों पर विशाल मंदिर के आकर में बनवाया।
मंडोर उद्धान के मध्य भाग में दक्षिण से उत्तर की ओर एक ही पंक्ति में जोधपुर के महाराजाओं के समाधि स्मारक ऊंची पत्थर की कुर्सियों पर बने हैं, जिनकी स्थापत्य कला में हिन्दू स्थापत्य कला के साथ मुस्लिम स्थापत्य कला का उत्कृष्ट समन्वय देखा जा सकता है। जहां एक ओर राजाओं की समाधि  स्थल ऊंचे पत्थरों पर मंदिर के आकार के बने हुए हैं वहीं रानियों के समाधि स्थल छतरियों के आकर के बने हुए हैं। यहां पत्थरों पर की हुई नक्कारशी देखने लायक है। यहां मूर्तिकला के उत्कृष्ट नमूने देखने को मिलते हैं। यह समाधि स्थल बाहर से जितने विशाल हैं अंदर से भी उतने ही सजाए गए हैं। गहरे ऊंचे नक्कार्शीदार गुम्बद, पत्थरों पर उकेरी हुई मूर्तियों वाले खम्बे और दीवारें उस समय के लोगों की कला प्रेमी होने का प्रमाण प्रस्तुत करती हैं।



 इनमें महाराजा अजीत सिंह का स्मारक सबसे विशाल है। यह उद्धान रोक्स पर बनाया गया था। उसके बावजूद यहां पर पर्याप्त हरयाली नज़र आती है। लाल पत्थरों की एकरूपता को खत्म करने के लिए यहां हरयाली का विशेष ध्यान रखा गया था जिसके लिए उद्धान के बीचों बीच से नहर निकाली गई थी। स्मारकों के पास ही एक फव्वारों से सुसज्जित नहर के अवशेष हैं, इन्हें देख कर लगता है कि कभी यह नहर नागादडी झील से शुरू होकर उद्धान के मुख्य दरवाजे तक आती होगी तो कितनी सुन्दर और कितनी सजीली दिखती होगी। नागादडी झील का निर्माण कार्य मंडोर के नागवंशियों ने कराया था, जिस पर महाराजा अजीत सिंह व महाराजा अभय सिंह के शासन काल में बांध का निर्माण कराया गया था।



यहां एक हॉल ऑफ हीरों भी है। जहां चट्टान पर उकेर कर दीवार में तराशी हुई आकृतियां हैं जो हिन्दु देवी-देवतीओं का प्रतिनिधित्व करती है। अपने ऊंची चट्टानी चबूतरों के साथ, अपने आकर्षक बगीचों के कारण यह प्रचलित पिकनिक स्थल बन गया है।



मैंने  उधान में घूमते घूमते अजीत पोल, 'देवताओं की साल', 'वीरों का दालान', मंदिर, बावड़ी, 'जनाना महल', 'एक थम्बा महल', नहर, झील व जोधपुर के विभिन्न महाराजाओं के स्मारक देखे। मंडोर गार्डन को तसल्ली से देखने के लिए कमसे कम आधा दिन तो लग ही जाता है। इसलिए यहां के लिए समय निकाल कर आएं। क्यूंकि यहां चलना अधिक पड़ता है इसलिए आरामदेह जूते पहन कर आएं और तेज़ धूप से बचने के लिए स्कार्फ या छतरी साथ लाएं।



जोधपुर कैसे पहुँचें?
जोधपुर शहर का अपने हवाई अड्डा और रेलवे स्टेशन हैं जो प्रमुख भारतीय शहरों से अच्छी तरह से जुड़े हैं। नई दिल्ली का इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा निकटतम अंतरराष्ट्रीय एयरबेस है। पर्यटक जयपुर, दिल्ली, जैसलमेर, बीकानेर, आगरा, अहमदाबाद, अजमेर, उदयपुर, और आगरा से बसों द्वारा भी यहां तक पहुंच सकते हैं।

कब जाएं?
इस क्षेत्र में वर्ष भर एक गर्म और शुष्क जलवायु बनी रहती है। ग्रीष्मकाल, मानसून और सर्दियां यहां के प्रमुख मौसम हैं। जोधपुर की यात्रा का सबसे अच्छा समय अक्टूबर के महीने से शुरू होकर और फरवरी तक रहता है।

कहां ठहरें ?
मंडोर से जोधपुर 8 किलोमीटर दूर है। इसलिए ठहरने के लिए जोधपुर एक अच्छा विकल्प है। जोधपुर में ठहरने के हर बजट के होटल हैं। अगर आप राजस्थानी संस्कृति और ब्लू सिटी का फील लेने जोधपुर जा रहे हैं तो ओल्ड सिटी में ही रुकें। यह स्टेशन से ज़्यादा दूर नहीं है। विदेशों से आए सैलानी यहां ओल्ड ब्लू सिटी में बड़े चाव से रुकते हैं। ब्लू सिटी मेहरानगढ़ फोर्ट के दामन  में बसा पुराना शहर है। जहां कई होटल और होम स्टे मिल जाते हैं। पर यहां ठहरने के लिए पहले से बुकिंग करवालें क्यूंकि विदेशियों में ब्लू सिटी का अत्यधिक क्रेज़ होने के कारण यह वर्ष भर भरे रहते हैं।

कितने दिन के लिए जाएं?
जोधपुर और उसके आसपास के स्थान सुकून से देखने के लिए कमसे कम 3-4 दिन का समय रखें।



फिर मिलेंगे दोस्तों, अगले पड़ाव में राजस्थान के कुछ अनछुए पहलुओं के साथ,

तब तक खुश रहिये, और घूमते रहिये,

आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त




डा० कायनात क़ाज़ी




Monday, 20 July 2015

एक दिन भागसूनाग वाटर फॉल के नाम




way to Bhagsu Waterfall, McLeod ganj, Dharamshala

बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा का निवास होने के कारण मैक्लॉडगंज में लोगों का आना जाना हमेशा ही लगा रहता है। पर यहां आने वाले ज़्यादातर लोगों को एक अनोखे स्थान के बारे में कम ही मालूम होता है। इस जगह का नाम है-भागसूनाग वाटर फॉल, यह मनोरम झरना भागसूनाग मंदिर के नज़दीक ही थोड़ी-सी ट्रेकिंग करने के बाद देखा जा सकता है। 



Bhagsu Waterfall, McLeod ganj, Dharamshala

भागसूनाग जल प्रपात की ऊंचाई लगभग 20 मीटर है। और आगे बढ़ कर यह जलधारा लगभग 100 फिट नीचे उबड़ खाबड़ पत्थरों पर गिरती है। बरसातों में इस जल प्रपात में अचानक कभी जल स्तर बढ़ने की ख़बरें भी आती रही हैं.


Bhagsu Waterfall, McLeod ganj, Dharamshala

इस जल प्रपात का पानी बहुत निर्मल और साफ़ है। सैलानी पूरा दिन इस झरने के पास बिता देते हैं। इस झरने के नज़दीक ही एक चाय की दुकान है। जहां से जलपान की व्यवस्था भी हो जाती है। लोग यहां आकर इस झरने के पानी से बने गर्म गर्म नूडल्स  खाना बहुत पसंद करते हैं। 


Bhagsu Waterfall, McLeod ganj, Dharamshala

हम ट्रैक करके पहाड़ी की तलहटी तक गए जहां से इस वॉटरफॉल का पूरा द्रश्य दिखाई दे रहा था। 


KK@Bhagsu Waterfall, McLeod ganj, Dharamshala
यहीं नज़दीक में भागसूनाग स्विमिंग पूल भी है। मई जून की तेज़ गर्मी में भी यहां बर्फ जैसा ठंडा पानी होता है.यहां रिलेक्स करते हुए सुन्दर वादी को देखना बहुत सुहाना अनुभव है। 

फिर मिलेंगे दोस्तों, अगले पड़ाव में हिमालय के कुछ अनछुए पहलुओं के साथ,

तब तक खुश रहिये, और घूमते रहिये,

आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त




डा० कायनात क़ाज़ी


Friday, 10 July 2015

मैकलॉडगंज में इन पांच जगहों पर ज़रूर जाएं

मैकलॉडगंज-हिमाचल प्रदेश 

Mcleodganj, Dharamshala, Himachal Pradesh



Budha Statue, Gyuto Karmapa Temple

हिमाचल प्रदेश को आप हिमालय का पैरहन कह सकते हैं। यह दा ग्रेट हिमालय की सबसे नई पहाड़ियों को खुद में समेटे हुए है। यह 55,673 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। हिमाचल प्रदेश नैसर्गिक सौंदर्य और समृद्धि का प्रतीक  है। यह एक ऐसा प्रदेश है जहाँ वर्ष में किसी भी समय जाया जा सकता है हर मौसम का अपना अलग रूप और रंग है। हिमाचल प्रदेश इतना बड़ा और विविधता लिए हुए है कि एक बार में पूरा नहीं देखा जा सकता है। पर्यटन के लिहाज़ से और लोगों की आसानी के लिए हिमाचल के अलग-अलग अंचलों को सर्किट में बांटा गया है। यह सर्किट हैं :

Himachal Pradesh- Tourism circuits 



ब्यास सर्किट :  जैसे कुल्लू और मनाली

Important Places in The Beas circuit: Swarghat - Bilaspur - Mandi - Rewalsar - Kullu - Manali - Rohtang - Naggar - Manikaran

धौलाधार सर्किट : जैसे धर्मशाला और मैकलॉडगंज, डलहौज़ी, चम्बा, पालमपुर

  Important Places in The Dhauladhar circuit: Chintpurni - Jwalamukhi - Kangra - Dalhousie - Khajjiar - Chamba - Dharamsala - Chamunda - Palampur - Jogindernagar 

सतलुज सर्किट:  जैसे परवाणू, कसौली, सोलन, चैल 

Important Places in The Satluj circuit: - Parwanoo - Kasauli- Barog - Solan - Chail - Hatkoti - Rampur - Sarahan - Narkanda - Naldehra - Tattapani - Shimla - Kiarighat -  Renuka, Paonta Sahib and Nahan

ट्राइबल सर्किट: केलांगकाज़ा, रोहतांग पास

 Important Places in The Tribal circuit: Shimla - Sarahan - Sangla - Kalpa - Nako - Tabo - Dhankar - Pin Vally - Kaza - Losar - Kunzum - Koksar - Sissu - Tandi - Udaipur - Trilokpur - Rohtang Pass - Manali 

Dhauladhar Peak


हम पिछली बार ब्यास सर्किट घूम चुके हैं, इस बार हम धौलाधार सर्किट की यात्रा करेंगे। इस सर्किट में सबसे पहले हम जाएंगे मैकलॉडगंज (MCLEODGANJ) मैकलॉडगंज धर्मशाला से लगा हुआ एक क़स्बा है। यह हिमाचल के काँगड़ा जनपद में आता है। दिल्ली से मैकलॉडगंज जाने के लिए हमने रात को ड्राइव किया। आप हिमाचल राज्य परिवाहन की बस ले सकते हैं। इस रुट पर बहुत सी वॉल्वो चलती हैं। दिल्ली से मैकलॉडगंज 492 किलोमीटर दूर है, जिसे राष्ट्रीय राजमार्ग एक से बड़ी आसानी से कवर किया जा सकता है। पंजाब निकलते ही हमने जैसे ही हिमाचल में प्रवेश किया दूर-दूर तक फैले देवदार के पेड़ों और हिमालय पर्वत श्रृंखला की ऊंची-नीची चोटियां और उनके ऊपर जमकर पिघल चुकी बर्फ के निशानो ने हमारा स्वागत किया। बड़ी बड़ी चट्टानों पर फैले चीड़ और देवदार के हरे-भरे जंगल किसी का भी मन मोह लेंगे।

Monk


धर्मशाला से 9 किमी दूर, समुद्र तल से 1830 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मेकलॉडगंज एक छोटा-सा कस्बा है। यहाँ हर जगह आपको तिब्बती लोग मिल जाएंगे, तिब्बती लोगों के धर्म गुरु दलाई लामा का वर्तमान में निवास यही है। इसलिए भी शायद इस जगह को मिनी ल्हासा कहा जाता है।

दलाई लामा मंदिर

Prayer Wheels

यहां दुकानें, रेस्तरां, होटल और सड़क किनारे लगने वाले बाजार सब कुछ हैं। गर्मी के मौसम में भी यहां खासी ठंडक रहती है। यहां का सबसे प्रमुख आकर्षण दलाई लामा का मंदिर है जहां शाक्य मुनि, अवलोकितेश्वर एवं पद्मसंभव की मूर्तियां विराजमान हैं। हमने सबसे पहले वही जाने का प्लान बनाया। यह मंदिर मुख्य बाजार से थोड़ी-सी दूरी पर ही है। ऊंचाई पर बना यह मंदिर हमेशा सैलानियों से भरा रहता है। पर यहां अंदर कैमरा लेजाने की मनाही है। हमने मंदिर के बहार से ही घाटी की तस्वीरें खींची। देवदार के जंगल नीचे दूर तक फैले हुए थे। जिनके आगे बादल भी छोटे जान पड़ते थे। रुई के फायों की तरह उड़ते बादलों को इन पेड़ों ने जैसे ज़बरदस्ती थाम रखा हो। दलाई लामा के मंदिर से सनसेट का नजारा देखना अपने आप में अद्भुत होता है। यह दृश्य देखने के लिए लोग दूर-दूर से यहां आते हैं। यहां आने वाले सैलानी यहां शाम के समय तक जरूर रुकते हैं। यहां से धौलाधार पीक का नज़ारा बहुत शानदार दीखता है।

भागसूनाग मंदिर और झरना

Bhagsu water fall, McLeod Ganj.

मेकलॉडगंज के आस-पास बने मंदिर लोगों को खासे आकर्षित करते हैं। यहां से लगभग 10 किमी की दूरी पर स्थित है भागसूनाग मंदिर। यह भव्य तो नहीं लेकिन प्रसिद्ध जरूर है। स्थानीय लोग दिखावे में यकीन नहीं करते इसलिए इसे ज्यादा चमकाया नहीं गया। कई दूसरे मंदिर भी हैं जहां सैलानी दर्शन करने के लिए जरूर आते हैं। हमने एक नज़र मंदिर पर डाली और भागसूनाग झरने की और रुख किया। मंदिर के आगे एक पतला रास्ता भागसूनाग झरने की ओर जाता है।

way to Bhagsu water fall, McLeod Ganj.

 उस पतले रस्ते पर चलते हुए हम एक घाटी में पहुंच गए जहां दूर एक सुन्दर झरना बह रहा था। उस झरने तक पहुंचने के लिए पहाड़ को काट कर पतली पगडण्डी बनाई गई है। हम लगभग 15 मिनट के बाद झरने के बहुत नज़दीक पहुंच गए। इसका पानी एकदम निर्मल और ठंडक भरा हुआ था। यहां लोग घंटों पत्थरों पर बैठकर झरने की फुहारों का आनंद लेते हैं। यहां नज़दीक में ही एक चाय की दुकान है, झरने की ठंडी फुहार के साथ चाय की चुस्कियों का अपना अलग ही आनंद है।

ग्युटो तान्त्रिक मॉनेस्ट्री-Gyuto Karmapa Temple

Gyuto Karmapa Temple

ग्युटो तान्त्रिक मॉनेस्ट्री मैक्लॉडगंज से 16 किमी पहले पड़ती है। यहां भारत और तिब्बत की संस्कृतियों का संगम देखने को मिलता है। तिब्बती संस्कृति और सभ्यता को प्रदर्शित करता एक पुस्तकालय भी स्थित है। इस मोनेस्ट्री में महात्मा बुद्ध की एक विशाल प्रतिमा है।


सेंट जॉन चर्च-St. John in the Wilderness

St. John in the Wilderness-McLeod Ganj

मेक्लॉयड गंज के रस्ते में पड़ने वाला सेंट जॉन चर्च सन 1852 में बना था.काले पत्थर की बनी यह नियो गोथिक स्टाइल की बिल्डिंग इतनी मज़बूत है कि भूकम्प भी इसका कुछ नहीं बिगाड़ पाए हैं। यहां बहुत शांति फैली हुई थी।

यहां घूमने आने के लिए कम से कम दो-तीन दिन का समय निकालकर जरूर आएं, ताकि आप प्रकृति की गोद में बैठकर शांति का अनुभव कर सकें। दूर-दूर तक फैली हरियाली और पहाड़ियों के बीच बने पतले, ऊंचे-नीचे व घुमावदार रास्ते ट्रैकिंग के लिए आकर्षित करते हैं। यहां पास ही बहुत सरे ट्रेक्किंग स्पॉट्स हैं। लोग एडवेंचर स्पोर्ट्स जैसे पैराग्लाइडिंग, पैरासेलिंग आदि के लिए यही नज़दीक ही बीड नामक स्थान पर आते हैं।
पहाड़ी रास्तों पर आप बाइकिंग का मजा लेना चाहते हैं तो आपको यहां किराए पर मोटर साइकिल मिल जाएगी। मार्च से जुलाई के बीच यहां ज्यादा संख्या में सैलानी आते हैं। इन दिनों यहां का मौसम बेहद सुकून भरा होता है।

मैक्लॉडगंज मुख्य बाजार 


Main Street, McLeod Ganj

अगर आप शॉपिंग के शौक़ीन है तो मैक्लॉडगंज के मुख्य बाजार  ज़रूर जाएं। यहाँ बहुत सारे तिब्बती लोग हाथ के बने गर्म कपडे बेचते हैं। यहां पर केम्पिंग और  ट्रेक्किंग का सामान बड़ी आसानी से मिल जाता है। इस बाजार में ही कुछ बेहतरीन कैफ़े भी मौजूद हैं। जहां आप तिब्बतियन खाने का मज़ा उठा सकते हैं। यहां कई अच्छी बेकरी भी हैं। जैसे :
Woeser Bakery
Nick's Italian Kitchen
Taste Of India

यहां के बाजार में रोड साइड फ्राइड मोमो जरूर ट्राई करें। 

Main Street, McLeod Ganj

कैसे पहुंचे:

दिल्ली से मैकलॉडगंज की दूरी लगभग 492  किलो मीटर है। रेल गाड़ी से आने वालों को पठानकोट से सड़क मार्ग चुनना पड़ता है। बस और टैक्सी यहां से आसानी से मिल जाती हैं। सड़क मार्ग से जाने वाले चंडीगढ़ होते हुए सीधे धर्मशाला और वहां से मेकलॉडगंज पहुंच सकते हैं। हवाई जहाज से जाने के लिए नज़दीकी एयरपोर्ट गगल है जोकि धर्मशाला से 15 किमी दूर है।

कहां ठहरें:

यहां ठहरने की भी कोई समस्या नहीं है। हर बजट के होटल और गेस्ट हाउस मौजूद हैं। हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम के होटलों में भी पहले से बुकिंग कराई जा सकती है। हां, गर्मी के मौसम में कमरों का किराया कुछ बढ़ जाता है। बाकी साल भर कम दामों पर ही बुकिंग होती है।

कब जाएं:  

Best time
मार्च से जून
सितम्बर से नवंबर

फिर मिलेंगे दोस्तों, अगले पड़ाव में हिमालय के कुछ अनछुए पहलुओं के साथ,

तब तक खुश रहिये, और घूमते रहिये,

आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त




डा० कायनात क़ाज़ी