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कुछ पंक्तियां इस ब्लॉग के बारे में :

प्रिय पाठक,
हिन्दी के प्रथम ट्रेवल फ़ोटोग्राफ़ी ब्लॉग पर आपका स्वागत है.….
ऐसा नहीं है कि हिन्दी में अच्छे ब्लॉग लिखने वालों की कमी है। हिन्दी में लोग एक से एक बेहतरीन ब्लॉग्स लिख रहे हैं। पर एक चीज़ की कमी अक्सर खलती है। जहां ब्लॉग पर अच्छा कन्टेन्ट है वहां एक अच्छी क्वालिटी की तस्वीर नहीं मिलती और जिन ब्लॉग्स पर अच्छी तस्वीरें होती हैं वहां कन्टेन्ट उतना अच्छा नहीं होता। मैं साहित्यकार के अलावा एक ट्रेवल राइटर और फोटोग्राफर हूँ। मैंने अपने इस ब्लॉग के ज़रिये इस दूरी को पाटने का प्रयास किया है। मेरा यह ब्लॉग हिन्दी का प्रथम ट्रेवल फ़ोटोग्राफ़ी ब्लॉग है। जहाँ आपको मिलेगी भारत के कुछ अनछुए पहलुओं, अनदेखे स्थानों की सविस्तार जानकारी और उन स्थानों से जुड़ी कुछ बेहतरीन तस्वीरें।
उम्मीद है, आप को मेरा यह प्रयास पसंद आएगा। आपकी प्रतिक्रियाओं की मुझे प्रतीक्षा रहेगी।
आपके कमेन्ट मुझे इस ब्लॉग को और बेहतर बनाने की प्रेरणा देंगे।

मंगल मृदुल कामनाओं सहित
आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त

डा० कायनात क़ाज़ी

Wednesday, 30 December 2015

प्रातःकाल का शहर-ऑरोविल



Matrimandir

पांडिचेरी से 12 कि.मी. दूर स्थित ऑरोविल (इसे प्रातःकाल का शहर भी कहते हैं) एक ऐसा शहर है जहाँ विभिन्न राष्ट्रीयताएँ और संस्कृतियाँ मिलती हैं। यह शहर विभिन्न देशो से आए लोगों का घर है और यह सही अर्थों में एक अंतर्राष्ट्रीय शहर है। श्री अरबिन्दो  की साथी “दा मदर” ने एक ऐसे शहर की कल्पना की थी जिस पर कोई भी राष्ट्र अपना दावा ना कर सके, एक ऐसा शहर जो मानवता को समर्पित हो।

Image Source www.auroville.org



 "माँ" नाम से अधिक प्रसिद्ध मीरा अल्फासा द्वारा स्थापित ऑरोविले  शहर का निर्माण 1968 में श्री अरबिंदो सोसायटी की एक परियोजना के रूप में शुरु किया गया था। इस शहर की स्थापना का आधार एक सार्वभौमिक स्थान बनाने का विचार था जहाँ सभी देशों और संस्कृतियों के पुरुषों और महिलाओं में सदभावना बनी रहे और विश्व प्रगति का सपना साकार हो सके।

ऑरोविल शहर में विभिन्न क्षेत्र सम्मिलित हैं जैसे- शांति क्षेत्र, औद्योगिक क्षेत्र, आवासीय क्षेत्र, इंटरनेशनल ज़ोन, सांस्कृतिक क्षेत्र और ग्रीन बेल्ट। इस शहर का मुख्य आकर्षण है मातृमंदिर जो इसकी भव्यता के कारण सैलानियों को अपनी ओर खींचता है। मात्र मन्दिर सोने की गोल आकृतियों से बना एक गुम्बद है, जिसके अन्दर बैठ कर लोग ध्यान लगते हैं। पर्यटकों को अन्दर  जाने की इजाज़त नहीं है. मात्र मन्दिर में अन्दर जाने के लिए अलग से अनुमति लेनी होती है। आप जब ऑरोविल जाएं तो 10 मिनट की विडिओ फिल्म ज़रूर देखें जिससे आपको इस स्थान की अधिक जानकारी मिलेगी। 


Auro the swimming Beach

यही नज़दीक में ऑरो बीच स्थित है, यह एक स्विमिंग बीच है। जो अपनी खूबसूरती के कारण यात्रियों और पर्यटकों को आकर्षित करता है।



 

यहाँ कई बीच रिसोर्ट, गैस्ट हाउस और रेस्टोरेन्ट  भी मौजूद हैं। अगर आप ऐसे बीच पर जाना चाहते हैं जहाँ बहुत शान्ति हो तो सेरेनिटी बीच जाएं।

पॉन्डिचेरी क्योंकि कई सभ्यताओं  का संगम है इसलिए यहाँ खाने पीने की बड़ी वेरायटी मिलती है। शुद्ध दक्षिण भारतीय शाकाहारी भोजन से लेकर, चेट्टीनाड  मांसाहारी भोजन, उत्तर भारतीय भोजन और फ्रैंच फ़ूड सब कुछ मिल जाता है।जब आप यहाँ आएँ तो एक्टेसी कैफे का पिज़्ज़ा ज़रूर टेस्ट करें। पॉन्डिचेरी में बैकवाटर का मज़ा भी लिया जा सकता है।

फिर मिलेंगे दोस्तों, भारत दर्शन में किसी नए शहर की यात्रा पर,तब तक खुश रहिये,और घूमते रहिये,
एक शेर मेरे जैसे घुमक्कड़ों को समर्पित 
"सैर कर दुनियाँ की ग़ाफ़िल ज़िन्दिगानी फिर कहाँ, ज़िन्दिगानी  गर रही तो नौजवानी फिर कहाँ "
आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त 
डा० कायनात क़ाज़ी 

Monday, 7 December 2015

एक सांझ मेहरानगढ़ फ़ोर्ट में बैठी कठपुतली वाली के साथ.....


एक सांझ मेहरानगढ़ फ़ोर्ट वाली  कठपुतली वाली के साथ.....  
जोधपुर के मेहरानगढ़ फ़ोर्ट की आन बान और शान के बारे में आप मेरी पिछली पोस्ट  में पढ़ ही चुके हैं। इस वैभव पूर्ण किले में आपको राजपूती कला और संस्कृति की झलक कई रूपों में देखने को मिलती है। जहां क़िले में एक छोटा सा बाजार है जहां से आप लहरिया दुपट्टे,पगड़ियाँ, राजस्थानी जूतियां और आभूषण खरीद सकते हैं वहीँ क़िले के बाहर की बॉन्ड्री से सटे खुले अहाते में एक पेड़ की छांव तले एक राजस्थानी आदिवासी महिला अपनी रंग बिरंगी कठपुतलियों से राजस्थान की गौरव गाथा सुनाती दिख जाएगी। 




जनाब यह रंगों से सजी बेजान कठपुतलियां भर नहीं है। आप दम भरने को ठहरें तो जान पाएंगे कि वह आदिवासी महिला इन रंगबिरंगी कठपुतलियों को नचा नचा कर राजस्थान के राजपूतों की गौरव गाथा अपने बंजारे गीत के बोलों से सुना रही है। 



इन गीतों में राजा है, प्रजा है और है उनके शौर्य की गाथा। एक ऐसी गाथा जिसमे ऊंटों का एक विशेष स्थान है। इन गीतों में प्रेम है तो वियोग भी है। साहस है तो त्याग भी है। 


राजपूताने की सरज़मीन की इन कहानियों में शौर्य अपने चरम पर देखने को  मिलता है। इसमें महिलाऐं भी पुरुष के साथ बराबरी से हिस्सा लेती हैं। 


और संगीत तो यहाँ के कण कण में बसा हो जैसे।


इन कठपुतियों का नाच देख कर आने जाने वाले बरबस ही ठहर जाते हैं। अपने हाथों से कपड़े और गोटे से कठपुतली बनाने की हज़ारों वर्ष पुरानी इस कला को आप भी सराहे बिना नहीं रह पाएंगे। मैंने अपने घर के लिए और अपने मित्रों के लिए राजस्थान की निशानी बतौर कई कठपुतलियां खरीदीं। 
आप जहां भी जाएं वहां के लोकल कलाकारों द्वारा बनाई हुई चीज़ें ज़रूर खरीदें। ऐसा करके आप उस स्थान से जुड़ी कलाओं को तो सपोर्ट करेंगे ही साथ ही उन कलाकारों को भी प्रोत्साहन मिलेगा। और इन सबके बदले में जो आपको मिलेगा उसका आप अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते। 
मैं देश के जिस भी हिस्से में जाती हूँ वहां से जुड़ी कला का एक नमूना ज़रूर साथ लाती हूँ और आज हालत यह है कि मेरे घर के हर एक कोने में पूरा भारत बसता है। 
मेरे घर आने वाले मेहमान आश्चर्य से पूछते है कि मैं वह सब चीज़ें लाती कहाँ से हूं ? तो मैं बड़ी शान से बताती हूं हर उस जगह का नाम जहाँ से मैंने उसे चुना था। 
आप ऐसे ही बने रहिये मेरे साथ 


आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त 

डा० कायनात क़ाज़ी 

 “I am blogging for #ResponsibleTourism activity by Outlook Traveller in association with BlogAdda

The holy river Ganges without water

गंगा: एक दिन बिना पानी के 

भोर का नीला उजालापूरब में सिंदूरी लालिमा, वायु में सुगन्धी अगरबत्तियों की महक, मंदिर की घंटियाँ, दूर से आती शंखनाद, हर हर गंगे की स्वर लहरी, कलकल बहता गंगाजल और घाटों पर जुटती श्रद्धालुओं की भीड़ जैसे मेला लगा हो। यह महान द्रश्य है हरिद्वार स्थित हर की पौड़ीका जहाँ की सुबह रोज़ ही आध्यात्म की ऊर्जा से भरी होती है।

The Holy River Ganges


Har Ki Paudi,Haridwar

लोग देश के कोने-कोने से हरिद्वार आते हैं। यह वह पवित्र स्थान है जहाँ पर गंगा अपने स्त्रोत गौमुख-हिमनद से निकल कर लम्बी और पथरीली यात्रा पार कर समतल भूमि को स्पर्श करती है। यहीं से गंगा मैदानी क्षेत्रों में प्रवेश कर समृद्धि और जीवन लाती है।

करोड़ों श्रद्धालु देश विदेश से इस मेले में माँ गंगा में स्नान करने आते हैं। ऐसी मान्यता है कि गंगा में डुबकी लगाने से सारे पाप धुल जाते हैं। पूरी दुनिया से करोडों तीर्थयात्री, भक्तजन और पर्यटक यहां इस समारोह को मनाने के लिए एकत्रित होते हैं और गंगा नदी के तट पर शास्त्र विधि से स्नान इत्यादि करते हैं। जहाँ सूरज की पहली किरण के आने से पहले से लेकर देर रात तक श्रद्धालुओं की भीड़ जुटी रहती है। जन्म और मृत्यु से जुड़े अनेक संस्कार यही आकर संपन्न किये जाते हैं।

A lady performing rituals at Har Ki Paudi, Haridwar

कोई अपने बच्चे का मुण्डन करवाने आया है ,कोई विवाह के बाद परिवार में आए नए सदस्य को लेकर अपने खानदानी पण्डे द्वारा पूजा संपन्न करवाने आया है तो कोई किसी अपने की अस्थियाँ गंगा जी में विसर्जित करके उनके लिए मोक्ष की कामना कर रहा है। कोई हाथों में फूल और दीपक लिए अपने पुरखों की आत्मा की शान्ति के लिए पूजा में लीन है।


A day without water:The Holy River Ganges

इस सुंदर नज़ारे को देखना कितना सुखद है। पर क्या हम कभी यह सोचते हैं कि हम जब गंगा में होली डिप लगाने जाते हैं तो अपने पीछे अनजाने में ही कितनी ही ऐसी चीज़ें हैं जिसे गंगा में बहा आते हैं। क्या कभी कोई यह सोचता है कि उनके द्वारा बहाई हुई चीज़ें गंगा को कितना प्रदूषित करती हैं। गंगा में सैंकड़ों टन मलबा जमा हो रहा है। अगली बार जब आप गंगा या किसी और नदी में कुछ बहाएं तो एक बार जरूर सोचें।

Polluted Ganges



Polluted Ganges


Polluted Ganges



ऐसे ही घूमते रहिये और स्वच्छता का ध्यान रखिये। 

आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त 
डा ० कायनात क़ाज़ी 

Wednesday, 2 December 2015

डल लेक पर तैरती फ्लोटिंग वेजिटेबल मार्केट-श्रीनगर

कश्मीर पांचवां दिन 

इस श्रंखला की पिछली पोस्ट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें : कश्मीर चौथा दिन 


Floating Vegetable Market on Dal Lake

श्रीनगर की पहचान मानी जाने वाली डल लेक यहां के लोगों की ज़िन्दगी का अभिन्न हिस्सा है। इस लेक में शिकारा राइड लेने वाले सैलानी सिर्फ़ इसके बाहरी हिस्से का चक्कर लगा कर चले आते हैं। बाहर से छोटी दिखने वाली डल लेक अपने भीतर एक दुनियां समेटे हुए है, एक ऐसी दुनिया जिसमे घर है, पानी पर तैरते फ्लोटिंग खेत हैं, लोटस के बाग़ हैं, मीना बाजार है और कश्मीरी हस्थकला से जुड़ी छोटी छोटी इकाइयां भी हैं। इस दुनियां की झलक आपको किसी टूर पैकेज में नहीं मिलेगी। यह दुनियां है इन कश्मीरियों की और उनकी प्यारी डल लेक की। डल लेक इन कश्मीरियों की जान है। इसे देखने के लिए आपको थोड़ा भीतर जाना होगा। इनके रंग में रंगना होगा, और एक सैलानी का चोला उतारना होगा। मैंने महसूस किया है कि जो लोग कश्मीर जाते हैं उनके भीतर कहीं न कहीं एक आशंका पलती रहती है, एक अनकहा अविश्वास उनके साथ चलता है। अगर आप कश्मीर को नज़दीक से देखना चाहते हैं तो उसका एक  मन्त्र है। वह है विश्वास। 


On the way to Floating Vegetable Market on Dal Lake

आप इन कश्मीरियों पर भरोसा कीजिये फिर देखिये कैसे यह लोग आपको अपनी दुनिया से रूबरू करवाते हैं। मेरे दिल में भी एक अरसे से तमन्ना थी कि जब कश्मीर जाउंगी तो डल लेक के अंदर बसने वाली दुनियां देखूंगी। सो मैंने तय किया कि एक सुबह डल के भीतर लगने वाली वेजिटेबल मार्केट देखा जाए। यहां तक पहुंचने के लिए आपको शिकारा से जाना होगा। जिसे आपको एक रात पहले ही तय करना होगा। डल के अंदर लगने वाली यह मार्केट सुबह-सुबह ही लगती है। 


Vegetable sellers rushing to the market 


Lush green surroundings inside the Dal Lake will take your breath away

इसको देखने आपको सूर्योदय से पहले निकलना होगा। मैंने एक रात पहले ही शिकारा वाले गुलज़ार भाई से तय कर लिया। यह लोग पैसे बहुत मांगते हैं इसलिए थोड़ा मोल भाव ज़रूर करें। गुलज़ार भाई मुझे 600 रूपए में वेजिटेबल मार्केट लेकर जाने को राज़ी हो गए। तय हुआ की वह सुबह पांच बजे शिकारा लेकर घाट नंबर पांच पर मेरा इन्तिज़ार करेंगे। डल के भीतर की दुनियां देखने की इतनी बेचैनी थी की मैं रात भर आराम से सो भी न सकी और अलार्म बजने से पहले उठ गई। जल्दी जल्दी अपना कैमरा उठाया, जूते  पहने और कमरे  से बाहर आ गई। नीचे आकर देखा तो होटल का गेट बंद था। इधर उधर ढूंढा पर कोई न था। और सड़क के उस पार गुलज़ार भाई खड़े थे। क्या करूं कुछ समझ नहीं आया। अब तो बस गेट पर चढ़ कर फलांगना होगा। बहुत अरसे से ऐसा कुछ किया नहीं था सोचा आज यह भी हो जाए। मैंने पांच फुट की ऊंचाई का गेट चढ़ा और गुलज़ार भाई ने सहारा देकर मुझे नीचे उतरने में मदद की, मुझे जल्दी इस बात की हो रही थी कि डल में सुबह सुबह लगने वाली यह वेजिटेबल मार्केट कुछ ही देर में ख़त्म हो जाती है। इसलिए अगर समय से न पहुंची तो मुझे अच्छी तस्वीरें नहीं मिलेंगी। देख रहे हैं न आप एक फोटोग्राफर को एक अच्छी तस्वीर के लिए क्या क्या करना होता है। 


A good bargainer will win

बुलावार्ड रोड पर अभी भी रात का सन्नाटा पसरा हुआ है. हवा में ठंडक है। मैंने जल्दी जल्दी घाट की सीढ़ियां पार कीं सावधानी से शिकारा में जा बैठी और हम डल के भीतर, और भीतर की ओर बढ़े चले जा रहे थे। फ़िज़ा में ठंडी हवाओं के साथ मस्जिदों से आती एक के बाद एक आज़ानों की आवाजें घुल रही थीं। हम डल के पानियों पर तैरती होउसबोटों से आती अलसाई पीली रोशनियों को जगाते हुए आगे बढ़ रहे थे। यह नज़ारा बड़ा ही दिलफरेब था। समंदर-सा गहरा डल का पानी अपने दामन पर कितनी ही बड़ी-बड़ी हाउस बोट का वज़न सेहता है और मुस्कुराता है। हम जैसे-जैसे डल के अंदरुनी इलाक़े में जाते जाते हैं हमे बड़े बड़े लिली के फ्लोटिंग खेत नज़र आते हैं। कुछ दूरी पर सब्ज़ियों के फ्लोटिंग खेत शुरू हो जाते हैं। 


Floating lilly fields inside the Dal Lake


खेतों के पार कहीं कहीं छोटे छोटे लकड़ी के घर बने हुए हैं। जिनके बाहर आंगन भी हैं। मुझे बड़ी  हैरानी हुई। जिस डल लेक की गहराई देख कर थोड़ी सिहरन पैदा होती है उसके बीचों बीच लोग बड़े आराम से रहते हैं। हमने लगभग बीस मिनट का फासला तय किया होगा कि हमें छोटी छोटी नावों पर कश्मीरी लोग सब्ज़ियां लेजाते हुए दिखने लगे। यह सभी डल में मुख्तलिफ दिशाओं में फैले हुए खेतों से सब्ज़ियां तोड़ कर लाते हैं और यहां बेचते हैं। कोई अपनी नाव में हरी सब्ज़ियां बेचने आया है तो कोई कद्दू और लौकी बेचने आया है। 


A pumpkin seller on the way to floating market


Sometimes exchange offer works better


किसी की नाव फूलों से भरी हुई है तो कोई टमाटर की सौदेबाज़ी में बिजी है। यह एक अद्भुत नज़ारा था। ऐसा भारत में कहीं और नहीं दिखाई देता। बाजार की यह हलचल कुछ ही देर में निपट जाती है और लोग वापसी की राह लेते हैं। आसमान पर घने बादल छाए हुए हैं। यहां डल में एक बेकरी भी है। कश्मीरी लोग चाय के साथ तंदूरी रोटी खाते हैं। वापसी में मैंने देखा कि एक जगह 4-5 किश्तियों को रोक कर यह सब्ज़ी व्यापारी गप्पें लड़ा रहे हैं और कश्मीरी चाय का आनंद ले रहे हैं। कश्मीरियों में कश्मीरी क़ेहवा के अलावा कई तरह की चाय मशहूर हैं। जिसमे नून चाय प्रमुख है। यह चाय नमकीन होती है।  



Relaxing hours

डल लेक जहां एक तरफ़ श्रीनगर की पहचान माना जाता है वहीँ इनलोगों का भावनात्मक जुड़ाव भी है इस जगह से, इसलिए भूल कर भी इन लोगों के सामने डल के पानी को गन्दा न कहें। 
वैसे इस वेजिटेबल मार्किट तक आप बाई रोड भी जा सकते हैं, यह मुझे वहां पहुंच कर ही मालूम पड़ा। सब्ज़ी मार्केट का एक सिर किसी सड़क से जुड़ा हुआ था। मैंने मालूम किया तो पता चला कि यह सड़क हज़रतबल तक जाती है। यह बात आपको कोई शिकारा वाला नहीं बताएगा। लेकिन मेरी सलाह है कि यह रास्ता सड़क के बजाए शिकारा से ही तय करना अच्छा है। 

Beautiful house inside the Dal Lake

डल  लेक में  यहां वहां बिखरे कई ख़ूबसूरत नज़ारे आपको देखने को मिल जाएंगे। कोई फूलों से भरा शिकारा आपके नज़दीक ले आएगा जिसमे मौसमी फूल होंगे, तो कोई हाथ का बना कश्मीरी कालीन बेचना चाहेगा। इनलोगों के लिए डल लेक में शिकारा चलाना बिलकुल वैसा ही है जैसा हमारे लिए सड़क पर कार चलाना। 




 यह था कश्मीर का एक और रंग। आप ऐसे ही बने रहिये मेरे साथ। 


Flowers will make everyone happy



तब तक के लिए खुश रहिये और घूमते रहिये।


आपकी हमसफर आपकी दोस्त


डा० कायनात क़ाज़ी