दुर्गा पूजा- यह पर्व
नहीं परम्परा है
हार श्रृंगार
के पेड़ों पर कलियाँ चटख़ने लगी हैं, सूर्य देव भी
थोड़े थके से जान पड़ते हैं, हवा में रात
की रानी की खुशबु बहने लगी है, तन को जलाने
वाली गर्म हवाएँ अब शान्त हो गई हैं, शाम होते ही
सूरज टप्प से छुपने लगा है। यह आहत है शरद ऋतु के आगमन की और देश भर
में त्यौहारों की।
दुर्गा पूजा
भले ही बंगाल से शुरू हुई हो पर आज यह पर्व पूरे देश में बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है।
यह पर्व किसी धर्म तक सीमित नहीं है बल्कि यह एक पूरी संस्कृति का वाहक है। भला हो
इन मल्टीनेशनल कंपनियों का जिन्होंने एक तो अच्छा काम किया है कि क्षेत्रों की
सीमाओं को तोड़ा है।
दुर्गा पूजा कभी सिर्फ बंगाल में मनाया जाता था अब यह देश के हर हिस्से में मनाया जाता है। आज दिल्ली में
ही मिनी बंगाल देखना है तो चित्ररंजन पार्क हो आइये। यहाँ पर दुर्गा पूजा की
तैयारियाँ महीनो पहले से होने लगती हैं।
दुर्गा की मुर्तिया बनाने वाले कारीगर
पश्चिम बंगाल के कोने-कोने से अपना हुनर दिखाने यहाँ आते हैं। और साथ लाते हैं
पीढ़ियों से चले आ रहे अपने फन को।
दुर्गा पूजा से जुडी सारी जानकारी आपके साथ जल्द ही साझा करुँगी
तबतक खुश रहिये ,घूमते रहिये
आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त
डा० कायनात क़ाज़ी
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